स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
Friday 21 December 2012 07:37:22 AM
नई दिल्ली। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री गुलाम नबी आजाद ने आज स्वास्थ्य विज्ञान से संबंधित राष्ट्रीय उपायों पर रिपोर्ट जारी की। इसमें पैरामेडिकल से लेकर संबंधित स्वास्थ्य विज्ञान व्यवसायिकों पर चर्चा की गई है। इसके बाद में एक बैठक में हुई चर्चा में भाग लेते हुए स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के विशेष सचिव केशव देसीराजू, महानिदेशक स्वास्थ्य सेवाएं डॉ माणिका चौधरी, आप्टोमीटरी विभाग और प्रोफेसर के श्रीनाथ रेड्डी, अध्यक्ष सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठान ने पहले सत्र को संबोधित किया। सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठान के वरिष्ठ सलाहकार डॉ सुभाष सालुंके ने इस विभाग की खास बातों के बारे में एक प्रजंटेशन भी दिया।
रिपोर्ट की कुछ खास-खास सिफारिशों के अनुसार स्वास्थ्य से जुड़े व्यवसायिकों की परिभाषा और व्याख्या अलग-अलग प्रकार से की जाती है। भारत में इन्हें आमतौर पर पैरामेडिक कहते हैं और इसका मतलब दुनिया भर में आपातकालीन और एंबुलेंस सेवा देने वाला समझा जाता है। इनका मानक तय किया जाना चाहिए और सेवाकाल, वेतन तथा संवर्ग आदि से संबंधित विवरण स्पष्ट किये जाने चाहिएं।
देश में भारतीय चिकित्सा परिषद (मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया) जैसी संस्थाएं शिक्षा और प्रशिक्षण के मानकीकरण के लिए स्थापित की गई हैं। उद्देश्य यह है कि चिकित्सा क्षेत्र में बिना योग्यता प्राप्त व्यावसायिक न आ पाएं, लेकिन कोई केंद्रीय नियामक तंत्र न होने के चलते ऐसा नहीं हो पाता। रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि संबंधित स्वास्थ्य विज्ञान का एक राष्ट्रीय बोर्ड गठित किया जाए, जो क्षमता वृद्धि और व्यवसायिक श्रमशक्ति के विस्तार के लिए काम करे।
मौजूदा परियोजना के अंतर्गत एक हजार संस्थानों का अध्ययन किया गया और संबद्ध साहित्य की समीक्षा की गई। पता चला कि देश भर में अनेक संस्थान तरह-तरह के कोर्स चला रहे हैं, लेकिन कोई सुनियोजित पाठ्यक्रम और संस्थान न होने के चलते सभी पाठ्यक्रमों में समानता नहीं है। कहा गया कि इन पाठ्यक्रमों को उनकी अवधि, विषय वस्तु प्रशिक्षण के तौर-तरीके की जरूरत के हिसाब से मानकीकृत किया जाना चाहिए।
शहरी और ग्रामीण आबादी को आधार बनाकर किये गये विश्लेषण से पता चला कि देश भर में लगभग 64 लाख व्यवसायिकों की कमी है। सबसे ज्यादा कमी उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, बिहार और आंध्र प्रदेश में पाई गई। इसे दूर करने के लिए देश भर में एक राष्ट्रीय और 8 क्षेत्रीय संस्थान खोले जाएंगे। क्षमता वृद्धि के लिए भागीदारी संबद्धता और अन्य मॉडलों पर भी ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। इसके लिए सिफारिश की गई है कि स्वास्थ्य विज्ञान से जुड़े हुए विभिन्न ग्रुपों की वृद्धि के लिए मौजूदा श्रेष्ठता केंद्रों का उपयोग किया जाना चाहिए।
वर्तमान संस्थाओं के प्रबंधन के लिए सिफारिश की गई है कि संबंधित स्वास्थ्य विज्ञान के राष्ट्रीय और क्षेत्रीय संस्थानों की स्थापना पूरी तरह से स्वयतशासी निकायों की तरह की जाए और इन पर होने वाला सारा खर्च भारत सरकार दे।