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Monday 24 December 2012 06:16:49 AM
नई दिल्ली। श्रमिक कानूनों में व्यापक संशोधनों के लिए संसदीय सलाहकार समिति के सदस्यों ने सरकार से जोर देकर कहा है कि शिकायतों को समय पर दूर करने के साथ श्रमिक कानूनों को तेजी से और कारगर ढंग से लागू किया जाए। समिति की कल हुई बैठक में सदस्यों ने ठेका श्रमिक कानून में सुधार के साथ-साथ बाल श्रम कानूनों का मामला उठाया। केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्री मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस बैठक की अध्यक्षता की इन मामलों पर गंभीरता से विचार करने का आश्वासन दिलाया।
खड़गे ने कहा कि श्रम का विषय समवर्ती सूचि में शामिल है और केंद्र और राज्य सरकार दोनों को इस संबंध में कानून बनाने का अधिकार है। उन्होंने सदस्यों को बताया कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान पारिश्रमिक भुगतान अधिनियम-1936 में संशोधन किए गए है, जिनके परिणामस्वरूप पारिश्रमिक का भुगतान 1100 रूपये मासिक से बढ़ाकर पहले 6500 समय प्रतिमाह और बाद में 10,000 रूपये मासिक कर दिया गया।
इसके अलावा अन्य पिछड़ें वर्गों को आरक्षण उपलब्ध कराने के उद्देश्य से अप्रिंटिसेज अधिनियम-1961 में संशोधन किया गया है। यही नहीं बल्कि मातृत्व लाभ अधिनियम-1961 में भी संशोधन करके चिकित्सा बोनस की राशि 250 रूपये से बढ़ाकर 1000 रूपये कर दी गयी है। गजट अधिसूचना के माध्यम से इस राशि को 20000 रूपये तक करने के लिए केंद्रीय सरकार को अधिकृत किया गया है। इसके साथ ही श्रमिक मुआवजा कानून में भी संशोधन करके इसमें स्त्री-पुरूष के लिंग भेद को खत्म दिया गया है। अब इस कानून के कर्मी मुआवजा कानून -1923 का शीर्षक दिया गया है।
श्रम मंत्री ने यह भी बताया कि उनके मंत्रालय ने श्रमिक राज्य बीमा कानून- 1948 में संशोधन करके इस योजना के अंतर्गत उपलबध कराए गए लाभों के स्तर में सुधार के साथ असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को स्वास्थ्य देखभाल की सुविधा उपलब्ध कराये जाने के उद्देश्य से कर्मचारी राज्य बीमा संस्थान की ढांचागत सुविधाओं को सशक्त बनाया है। इसके साथ ही ग्रैच्युटी भुगतान अधिनियम-1972 में भी संशोधन करके ग्रैच्युटी भुगतान की राशि 3.5 लाख रूपये से बढ़ाकर 10 लाख रूपये कर दी गई है और अब इसमें शैक्षिक संस्थानों के अध्यापकों को भी शामिल किया गया है।