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शिक्षा की दुर्दशा पर विद्वानों में चिंता

विद्यांत हिंदू कॉलेज का स्थापना दिवस

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विक्टर नारायण विद्यांत-victor narayan vidyant

लखनऊ।विद्यांत हिंदू स्नातकोत्तर महाविद्यालय के स्थापना दिवस पर हुई शिक्षा के समक्ष चुनौतियां विषय पर संगोष्ठी में विद्वानों का यह अभिमत सामने आया है कि प्राचीन चिंतन पर आधारित शिक्षा से ही अराजकता का अंत संभव है। संगोष्ठी में वक्ताओं ने जहां महाविद्यालय के इतिहास और उसमें विभिन्न्‍ा हस्तियों के विभिन्न रूपों में सहयोग पर प्रकाश डाला गया वहीं इस बात पर चिंता भी सामने आई कि वर्तमान शिक्षा में कहीं न कहीं ऐसी चीजे छूटती जा रही हैं जिनसे नैतिक मूल्यों और संस्कारों का पोषण हुआ करता है। इस अवसर पर कई हस्तियां मौजूद थीं जिन्होंने अपने विचार और सुझाव पेश किए।
संगोष्ठी में वक्ताओं का कहना था कि प्राचीन काल में भारत विश्व गुरू के पद पर आसीन था। जिस समय विश्व के अन्य हिस्सों में मानव सभ्यता का प्रारम्भिक विकास नहीं हुआ था, उस समय भारत में शिक्षा का व्यापक प्रसार हो चुका था। यहां गांव-गांव में प्रचलित प्राथमिक शिक्षा से लेकर तक्षशिला और नालन्दा जैसी विश्वविद्यालय स्तर की व्यवस्था थी। यह शिक्षा व्यक्तिगत स्वार्थो को पूरा करने का माध्यम नहीं थी, इससे समाज और राष्ट्र के प्रति समर्पित व्यक्ति का निर्माण किया जाता है।
वक्ताओं ने कहा कि इस शिक्षा व्यवस्था के बल पर ही भारत विश्‍वगुरू बना था, लेकिन इसका प्रभाव घटने के बाद देश को दुर्दिन देखने पड़े, व्यक्तिगत हित महत्वपूर्ण हो गये और समाज के हित महत्वहीन हो गये। इसलिए देश को गुलामी का लम्बा दौर देखना पड़ा। मैकाले की शिक्षा पद्धति बाबुओं के निर्माण के लिए थी। विक्टर नारायण विद्यांत जैसे समाजसेवियों ने उस पद्धति को चुनौती देने के लिए ही शिक्षण संस्थाओं की स्थापना की थी। इसके लिए उन्होंने अपनी संपूर्ण सम्पत्ति दान कर दी थी। ऐसे महान लोगों से प्रेरणा लेकर देश को वास्तविक अर्थो में आगे बढ़ाया जा सकता है। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि नगर प्रमुख डा दिनेश शर्मा थे। अध्यक्षता लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो मनोज कुमार मिश्र ने की।
लविवि के कुलपति प्रो मनोज कुमार मिश्र ने कहा कि शिक्षा को भारतीय परिवेश और आवश्यकताओं के अनुकूल बनाना होगा। उन्होंने भगवत गीता से उदाहरण देकर विद्यांत शब्द की व्याख्या की-विद्यांत अर्थात किताबी विद्या का अंत। लेकिन यह विद्या का अंत नहीं है, किताबी विद्या का अंत अपरा विद्या का प्रारम्भ है। इस स्तर पर पहुंचने के पहले किताबी विद्या उपयोगी है। इसके बाद व्यवहार, ध्यान और कर्म संबंधी अपरा विद्या के चरण प्रारम्भ होते हैं। इसके माध्यम से ज्ञान यात्रा पूरी होती है। व्यक्तिगत स्तर पर यह ज्ञान मोक्ष की ओर ले जाती है लेकिन इसमें समाजहित भी समाहित है। विक्टर नारायण विद्यांत ने इसे अपने जीवन से प्रमाणित किया।
महापौर डा दिनेश शर्मा ने कहा कि पाश्चात्य शिक्षा, सभ्यता और संस्कृति के प्रभाव से देश की सामाजिक संरचना विगड़ रही है। नैतिक मान्यताओं, मूल्यों का अवमूल्यन हो रहा है। इस अराजकता की स्थिति को शिक्षा के माध्यम से ही दूर किया जा सकता है। लेकिन स्वतंत्रता के बाद ब्रिटिश शिक्षा से मुक्ति का कारगर प्रयास नहीं किया गया। वर्तमान शिक्षा पद्धति में आदर्श व्यक्तित्व का निर्माण संभव ही नहीं है। यह समस्या केवल भारत की ही नहीं है। विश्व के सभी हिस्सों में सामाजिक विसंगति खतरनाक बिंदू को पार कर रही है। पश्चिमी देश इससे बचने के लिए उपाय तलाश रहे हैं। उन्हें भारतीय चिंतन में ही समाधान नजर आ रहा है। वह भारतीय मूल्यों को अपना रहे हैं। भारत में शांति की खोज कर रहे हैं। ऐसे में भारत के युवाओं का पश्चिमी शिक्षा, सभ्यता की ओर दौड़ना गलत है।
गोष्ठी के मुख्य वक्ता प्रो मुज्जमिल ने कहा कि शिक्षा का व्यवसायीकरण घातक है। कम्पनियों की भांति निजी विश्वविद्यालय खुल रहे हैं। पूंजीपति उसके कुलपति हैं। उनकी नजर और प्राथमिकता मुनाफा कमाना है। आज की शिक्षा से व्यक्तित्व निर्माण संभव नहीं रह गया है। महामना मदन मोहन मालवीय ने राजा से रंक तक सभी का सहयोग लेकर बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय बना दिया। आज किसी राजनेता में ऐसी क्षमता नहीं है। उन्होंने कहा कि उच्च शिक्षा रोजगार की दृष्टि से भी सार्थकता खोती जा रही है। पच्चीस वर्ष तक के करीब नौ करोड़ युवा शिक्षा से वंचित हैं, जिन्हें उच्च शिक्षा मिल रही है, उसमें भी 90 फीसदी को रोजगार नसीब होना मुश्किल है। विश्वविद्यालय और विद्यालयों की संख्या बहुत बढ़ी लेकिन उनकी गुणवत्ता, उपयोगिता और समाज-राष्ट्र जीवन में महत्व तलाशने की आवश्यकता है।
संगोष्ठी में सतदल मिश्रा, राजीव शुक्ला, हसन, मुकेश कुमार श्रीवास्तव, पंकज कुमार, सुभाष सरकार, डीके शर्मा, बृजेन्द्र पाण्डेय, अमित वर्धन सहित बड़ी संख्या में छात्र, शिक्षक और अतिथि उपस्थित थे। संगोष्ठी के संयोजक डा एलके अस्थाना थे। संचालन डा ब्रिजेश ने किया और आगन्तुकों का स्वागत प्राचार्या डा धर्म कौर ने किया और अमलेन्दु दत्ता ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

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