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लखनऊ।भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह पर उम्र का असर आ गया है और याददाश्त भी कमजोर हो गई है। यह रहस्योद्धाटन उन्होंने स्वयं ही कर डाला जब एक संवाददाता ने उन्हें शिष्टाचार स्वरूप अभिवादन किया। अवसर था उनके लखनऊ में कालीदास मार्ग स्थित आवास पर भोज का जिसमें उन्होंने राजधानी के पत्रकारों को आमंत्रित किया था। राजनाथ सिंह ने औपचारिक वार्ता के दौरान जब संवाददाताओं से मिलना शुरू किया तो ऐसा अवसर भी आया जब अपने चिर-परिचित पत्रकारों को भी नहीं पहचान पाए। तब उनकी याददाश्त को लेकर आई एक टिप्पणी पर वे असहज हो गए और उन्होंने स्वीकार किया कि 'हां याददाश्त भी कमजोर हो गई है और उम्र का भी असर आ गया है।'
भारतीय जनता पार्टी को दो साल तक अपनी अध्यक्षता में नचाने वाले राजनाथ सिंह ने अपनी 'याददाश्त' और न पहचानने की समस्या के कारण भारतीय जनता पार्टी को जिस अवस्था में पहुंचाया है उसका चर्चा न केवल उत्तर प्रदेश में प्रमुखता से होता है अपितु भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय परिदृश्य पर भी उसका असर साफ दिखाई पड़ता है। जब राजनाथ सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तो भारतीय जनता पार्टी का उत्तर प्रदेश से सफाया हुआ और जब वे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हुए तो भाजपा दुर्दशा को प्राप्त हो गई। राजनाथ सिंह और उनकी मंडली आज भी इस सच्चाई को स्वीकार करने को तैयार नहीं है कि यदि इस मंडली के निजी एजेंडे भाजपा पर नही थोपे गए होते तो भाजपा की वह हालत नही होती जिस पर आज भारतीय जनता पार्टी का कार्यकर्ता मुंह छुपा कर रो रहा है।
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव या उपचुनाव, लोकसभा चुनाव हो या निकाय और परिषद चुनाव हो सब जगह भाजपा मुंह की खाती आ रही है। राजनाथ सिंह ने अपनी राजनीतिक दिलचस्पी का केंद्र उत्तर प्रदेश को ही बनाया हुआ था लेकिन उत्तर प्रदेश में उनकी रणनीतियां पूरी तरह से फ्लॉप साबित हुई। जहां तक देश में भाजपा की मजबूती का सवाल है तो राज्यों में भी उन्होंने जहां जहां दखल दिया और वहां वहां भाजपा का नुकसान ही देखा गया। वे काफी समय बाद उत्तर प्रदेश की राजधानी में उस तरह से प्रकट हुए कि जैसे उन्हें अब केंद्र से लौटकर अपने उत्तर प्रदेश की ही राजनीति करनी है। चार जनवरी को लखनऊ में अपने आवास पर पत्रकारों को दिए गए भोज का दृश्य भी कोई उत्साहजनक नहीं था। भाजपा के कुछ नेता दिखाई दिए और पत्रकार। पत्रकारों में भी केवल वह ज्यादा थे जो रोज़ाना ऐसे आयोजनों की प्रतीक्षा में रहते हैं।
राजनाथ सिंह एक दिन पहले लखनऊ पहुंचे तो उनकी मंडली तो दावा कर रही है कि उनका लखनऊ पहुंचने पर जोरदार स्वागत किया गया लेकिन भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं का कुछ और ही कहना था। उनका कहना है कि राजनाथ सिंह के कारण ही तो आज भाजपा की यह दुर्दशा है। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी को नहीं चलाया बल्कि वे कोई प्राइवेट लिमिटेड कंपनी चला रहे थे। राजनाथ सिंह को लखनऊ में यह देखने को मिला कि भाजपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी से हटने के बाद उनकी सही स्थिति क्या है। लखनऊ में भाजपा के कार्यकर्ताओं ने उनमें अपनी ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई और कई नेता और जाने-माने कार्यकर्ता उनके स्वागत में पहुंचे ही नहीं। इस पद से हटने के बाद शायद ही किसी पूर्व अध्यक्ष की ऐसी स्थिति देखी गई हो।
भारतीय जनता पार्टी का नेतृत्व अब उत्तर भारत के हाथों से चला गया है। उत्तर भारत में भारतीय जनता पार्टी ने अपने कई परंपरागत और प्रभावशाली नेताओं को अपने से खोया है। कई ऐसे अवसर आए जब भारतीय जनता पार्टी की मजबूती के लिए उनकी वापसी की जरूरत थी लेकिन राजनाथ सिंह इस मामले में अत्यंत कमजोर और फिसड्डी साबित हुए। कार्यकर्ताओं का नेतृत्व पर हमेशा से यह दबाव था कि भाजपा नेतृत्व कार्यकर्ताओं की भावनाओं को समझकर के निर्णय ले और प्रत्याशी मैदान में उतारे लेकिन राजनाथ सिंह ने उन भावनाओं को सिरे से दरकिनार कर दिया। पार्टी की बैठकों में कई बार यह प्रश्न आया कि नेतृत्व देखे कि पार्टी के शुभचिंतक आखिर क्या चाहते हैं लेकिन राजनाथ सिंह ने अपनी चिर-परिचित शैली को नही छोड़ा और जो वह और उनकी मंडली यूपी में करती थी वही राष्ट्रीय स्तर पर भी किया।
कहनेवाले कहते हैं कि राजनाथ सिंह के लिए यह एक गंभीर मंथन का समय आया है जब उन्हें न केवल अपनी कार्यशैली और मंडली पर सोचना होगा बल्कि इसका भी उपचार करना होगा कि उनकी याददाश्त बनी रहे। जहां तक उम्र के असर की बात है तो भारतीय जनता पार्टी के पितामह अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी जैसे कई नेता हैं जिन पर अभी भी उम्र का असर नही दिखाई देता खासतौर से तब जब भाजपा के जुझारू कहलाने वाले कार्यकर्ताओं का वही जुनून आज भी कायम है।