नरेश भारद्वाज
हरिद्वार।उत्तराखंड के मुख्यमंत्री डॉ रमेश पोखरियाल 'निशंक' ने महाकुंभ में अतिविशिष्ट लोगों के पहुंचने पर मेला प्रबंधन और अथाह भीड़ के नियंत्रण में अचानक संभावित समस्याओं पर अपनी जागरुकता और जिम्मेदारी का एहसास कराते हुए एक पंथ दो काज किए। मौनी अमावस्या और सूर्यग्रहण के मौके पर ब्रह्म-मुहुर्त में मुख्यमंत्री बिना पूर्व सूचना और सुरक्षा ताम-झाम के सपत्नीक हर की पौड़ी पहुंचे और चुपचाप अपने स्नान ध्यान को पूर्ण कर एक सामान्य नागरिक की तरह मेले की व्यवस्था का जायजा भी ले लिया। निशंक ने उन विशिष्टजनों को यह सीख और प्रेरणा दी जो ऐसे मेलों में जनसमूह की सुख-सुविधा की उपेक्षा करते हुए अपने लिए विशिष्ट प्रबंध से आते हैं और जिनके कारण कभी-कभी बड़े-बड़े हादसे हो जाते हैं।
उन्होंने अपनी पत्नी कुसुम कांता पोखरियाल के साथ ब्रह्मकुंड में स्नान किया। इसके बाद उन्होंने हर की पौड़ी और अन्य स्नान घाटों का नंगे पांव ही दौरा किया और व्यवस्था का जायजा लिया। इस दौरान उन्होंने स्नानार्थियों से भी उनका हालचाल और यहां की व्यवस्था के बारे में पूछा। अपने परंपरागत लिबास पर स्वेटर और जैकेट पहने मुख्यमंत्री के कुंभ मेले में आगमन की मेला प्रशासन को कोई पूर्व सूचना नहीं थी। इस कारण उन्हें भी कई स्थानों पर अन्य राज्यों से आ रहे तीर्थ यात्रियों की तरह विभिन्न स्थानों पर सुरक्षा जांच से गुजरना पड़ा। पहचाने जाने पर और वायरलैस से सूचना प्रसारित होने पर कुंभ मेले के कुछ अधिकारी मौके पर पहुंच गए। मुख्यमंत्री ने स्नान और पूजा के बाद इनके साथ नंगे पांव ही घाटों का भ्रमण किया और सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लिया और अधिकारियों को आवश्यक निर्देश भी दिए। विभिन्न मंदिरों के बाहर जमा श्रद्दालुओं और घाटों पर घूम रहे पर्यटकों से भी उन्होंने कुंभ की व्यवस्था के बारे में बातचीत की और समस्याओं को जाना। मुख्यमंत्री ने वहां ड्यूटी दे रहे पुलिस कर्मियों और उनके अधिकारियों से भी बातचीत करके उनकी समस्याओं पर चर्चा की। मुख्यमंत्री के साथ उनके अपर सचिव दीपम सेठ और कुंभ मेला की उपाधीक्षक श्वेता चौबे मौजूद थीं।
मुख्यमंत्री की इस बात के लिए सराहना हो रही है कि उन्होंने लाखों लोगों के पुण्य अर्जन में अपने को विशिष्टजनो जैसी बाधा नही बनने दिया और वे तीर्थ यात्रियों से भी एक सामान्य नागरिक की तरह मिले। इससे मुख्यमंत्री को कुंभ मेले की अच्छी-खराब वयवस्था का भी पता चला। मुख्यमंत्री इस बात से संतुष्ट दिखे कि इस महाकुंभ में सुरक्षा और प्रबंध का सही तालमेल है हालांकि इसकी बड़ी परीक्षा तो और आगे होनी है जब हरिद्वार में करोड़ों तीर्थ यात्रियों का आगमन होगा। निशंक से मिलकर बहुत से तीर्थ यात्री बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने मेला प्रशासन को अपने आने की कोई सूचना नही दी थी जिससे उनका स्नान ध्यान भी एक तीर्थ यात्री की तरह संपन्न हुआ। आम तौर पर विशिष्टजनों की मेलों मे मौजूदगी से प्रशासन का ध्यान भीड़ को नियंत्रित करने की वयवस्था से न केवल हट जाता है अपितु भीड़ की सुविधाओं की भारी उपेक्षा भी हो जाती है। शायद इसी को मुख्यमंत्री ने अपनी प्राथमिकता पर रखा और एक पंथ दो काज किए।
महाकुंभ में सूर्यग्रहण और मौनी अमावस्या के मौके पर करीब पांच लाख लोगों ने हर की पौड़ी पर डुबकी लगाई। प्रात: काल से ही लोग मोक्ष की प्राप्ति के लिए आने शुरू हो गए थे। देखते ही देखते वहां लाखों नर-नारी और बच्चे जमा हो गए। सूर्य को संकट में जानकर श्रद्धालुओं ने अपनी भक्ति पद्धति के हिसाब से पूजा अर्चनाएं की और दान किया। जगह-जगह हनुमान चालीसा का पाठ किया और ग्रहण काल में गंगा में डुबकी लगाई। महाकुंभ का मकर संक्रांति के बाद यह दूसरा स्नान था जो कुशलता से संपन्न हुआ। उधर सूर्यग्रहण को देखते हुए कनखल में दक्ष प्रजापति के कपाट बंद रहे। महाकुंभ में प्रशासन काफी सक्रिय दिखाई दिया।