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यूपी में मीडिया को धमका रही है माया सरकार

'डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट' पर सरेआम प्रयोग

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लखनऊ। मुख्यमंत्री मायावती के जन्म दिवस की पूर्व संध्या पर लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ पर राज्य के सरकारी तंत्र ने हमला बोल दिया जिसमे लखनऊ का मीडिया हिल गया। मायावती सरकार के इस हमले को बाकी मीडिया ने दूसरे चश्मे से देखा है लेकिन मीडिया यहां सरकार की असली मंशा समझने में नाकाम रहा है। सच्चाई तो यह है कि मीडिया को हैसियत में रखने का मायावती सरकार का यह एक रिहर्सल था जो कामयाब होता दिखाई दिया। माया सरकार और उसके भ्रष्टाचार जनित अत्याचारों का अनवरत खुलासा करने वाले लखनऊ के हिंदी समाचार पत्र 'डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट' के चेयरमैन एवं प्रबंध संपादक डॉ निशीथ राय का राजभवन स्थित 31 नंबर सरकारी आवास चौदह जनवरी की शाम जबरन खाली करा लिया गया। डॉ राय शहर से बाहर थे। आवास खाली कराने के दौरान मकान में अकेले मौजूद उनकी पत्नी अनीता राय के साथ अभद्रता की गई। सरकार के एक अधिकारी ने न्यायालय के आदेश का हवाला दिया और कोई मौका दिए बिना घर का सामान सड़क पर फिंकवा दिया गया। डॉ राय के पास इस मकान को खाली न करने का 28 जनवरी तक अदालत का स्थगनादेश था, लेकिन संबंधित अधिकारियों ने कूटरचित सांठ-गांठ के चलते मामले की 'अर्ली हियरिंग' करवाकर आवास खाली कराने का आदेश करा लिया।
डॉ राय को यूं तो यह सरकारी आवास लखनऊ विश्वविद्यालय के रीजनल सेंटर फॉर अर्बन एंड एनवायरमेंटल स्टडीज का निदेशक होने के नाते मिला था लेकिन इस आवास में रहते हुए उन्होंने लखनऊ से हिंदी समाचार पत्र 'डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट' निकाला जोकि मायावती सरकार और उसके कुछ ख़ास शीर्ष अधिकारियों की आंख की किरकिरी बना हुआ था। इस अख़बार की कई बार बिजली-पानी भी काट दिया गया और प्रबंध संपादक को सरकार से न टकराने की चेतावनियां भेजी गई। इससे ज्यादा क्या होगा कि सरकार ने समाचार पत्र का आरएनआई रजिस्ट्रेशन न होने देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया ने उत्तर प्रदेश सरकार की इस बदले की भावना के लिए प्रदेश सरकार की कड़ी आलोचना तक की है, लेकिन मीडिया में कुछ लोगों ने इस घटनाक्रम की किसी और ही तरह से रिपोर्टिंग की है और निशीथ राय को किसी अख़बार का प्रबंध संपादक भी नहीं लिखते हुए समाजवादी पार्टी का नेता लिखा है। लखनऊ में मीडिया का एक बड़ा वर्ग इस समय मायावती के अत्याचारों को आंख मूंदकर संरक्षण दे रहा है। यह सभी जानते हैं कि मीडिया के इस वर्ग में मायावती सरकार के अनाचारों की बात कहने की हिम्मत नहीं है क्योंकि इनमें से कई ने अपने शुगरमिल चला रखे हैं, कई ने स्कूल या मॉल चला रखे हैं और कई के ऐसे धंधे हैं कि जो सरकार की कृपा पर ही चल सकते हैं। इसीलिए इस निशीथ राय के मामले को मीडिया से इतर का मामला साबित करने की कोशिश की गई है।
जरा इस घटनाक्रम पर नज़र डालें- चौदह जनवरी की शाम निशीथ राय के लखनऊ में 31 राजभवन कॉलोनी आवास पर भारी पुलिस बल के साथ राज्य सम्पत्ति विभाग के दर्जनों अधिकारी एवं कर्मचारी मकान खाली कराने पहुंचे। उस वक्त डॉ राय की पत्नी अनीता राय घर पर अकेली थीं। अधिकारियों ने न्यायालय के आदेश का हवाला देकर वह आवास खाली करने की बात कही। डॉ राय की पत्नी ने कहा कि उनके पति शहर से बाहर हैं और कोर्ट का स्टे आर्डर है जिस कारण उन्होंने आवास खाली करने से मना कर दिया। इसके बाद राज्य सम्पत्ति विभाग के अधिकारी और कर्मचारी जबरन आवास के भीतर घुस गए और घर का सामान बाहर सड़क पर फेंकने लगे। इस कार्रवाई से पशोपेश में आई अनीता राय ने इसकी जानकारी अपने परिजनों और रिश्तेदारों समेत अखबार वालों को दी। अख़बार वाले भी वहां पहुंच गए। अधिकारी श्रीमती राय की किसी भी बात को सुनने को तैयार नहीं थे। उन्हें डॉ राय का सामान बाहर कर मकान में राज्य संपत्ति विभाग का ताला लगाने की जल्दी थी। इस एक तरफा कार्रवाई के दौरान किसी बवाल की आशंका को ध्यान में रखते हुए वहां भारी पुलिस बल और यहां तक कि महिला पुलिस कर्मियों को भी तैनात किया गया था। इतनी पुलिस देखकर आस-पास के लोग भी सकते में थे। किसी ने कहा कि सरकार से भिड़ने वालों के मकान ऐसे ही खाली कराए जाते हैं।
मीडिया के तमाम लोगों का जमावड़ा देख वहां मौजूद अधिकारी सकते में आ गए और आधा-अधूरा सामान बाहर कर आवास पर ताला डालकर वहां से खिसक लिए। पुलिसकर्मियों को भी इस बात की जानकारी नहीं थी कि उन्हें अचानक राजभवन कॉलोनी क्यों बुलाया गया है? उन्हें बाद में पता चला कि राजभवन कॉलोनी का कोई आवास खाली कराया जा रहा है। कोई अधिकारी इस कार्रवाई पर मीडिया के सामने बोलने को तैयार नहीं हुआ। ऐसा लग रहा था कि अगर कोई मीडिया के सामने बोला तो उसकी भी खैर नहीं है इसलिए मकान खाली कराने आए दस्ते के अधिकारी असहाय थे और उनके मुंह पर ताला पड़ा था। कोई बोला भी तो केवल इतना कि मामला ऊपर से जुड़ा है। समाचार पत्र के प्रबंध संपादक डॉ निशीथ राय से का कहना है कि इस आवास का मामला न्यायालय में विचाराधीन है और अठ्ठाईस जनवरी तक स्थगनादेश है लेकिन अर्ली हियरिंग कराकर रातों-रात मकान खाली कराने की रणनीति बना डाली गई जबकि अभी तक उन्हें इस फैसले की कापी भी उपलब्ध नहीं कराई गई।
डॉ राय ने कहा है कि अख़बार को कमजोर करने के लिए सोची समझी रणनीति के तहत मायावती सरकार और उसके चारण नौकरशाहों ने काम किया है, जिससे वे न डरें हैं और न डरेंगे, बल्कि मायावती सरकार के पोलखोल अभियान को और प्रखरता और प्रमुखता से आगे बढ़ाएंगे। उन्होंने कहा है कि भ्रष्ट नेताओं और अफसरों के दबाव में वह कभी नहीं आएंगे। उनके परिवार को अपमानित करते हुए राज्य सरकार ने उनके घर में सरेआम डकैती डाली है। उन्होंने राज्य सम्पत्ति और मुख्यमंत्री के सचिव नवनीत सहगल को इस घटनाक्रम का सूत्रधार बताया है और कहा है कि कुछ समय पहले नवनीत सहगल उनसे मिले थे और उन्होंने उन्हें यह चेतावनी दी थी कि मुख्यमंत्री ने कहा है-'अखबार को नियंत्रित कर लो अन्यथा जीवन तबाह कर दिया जाएगा।' डॉ राय ने यह भी कहा कि बिना अपील का मौका दिए उनका मकान खाली करवाया गया और यह कार्रवाई सायं 5 बजे के बाद की गई जो कि नियम विरुद्ध है। इस मामले की हाईकोर्ट ने विशेष सुनवाई करते हुए सरकार को निर्देश दिया है कि वह अगली सुनवाई तक इस आवास का किसी को आवंटन नहीं करेगी। सुनवाई 10 फरवरी को होगी।
यह मामला मीडिया को चिल्ला-चिल्ला कर चेतावनी दे रहा है कि मीडिया के बाकी लोगों के साथ भी देर सवेर ऐसा ही होने वाला है। जिन लोगों ने इसे दूसरा रूप देने की कोशिश की है उनकी अपनी मजबूरियां हो सकती हैं। जहां तक पत्रकारिता के पेशे से जुड़े लोगों का मानना है तो वे इसे प्रेस पर ही हमला मान रहे हैं। इस बात की पुष्टि प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के फैसले से हो जाती है जिसमे प्रेस काउंसिल ने इस अख़बार के आरएनआई के मामले में उत्तर प्रदेश सरकार की कड़ी आलोचना की है। राजधानी में प्रेस यूं भी भारी दबाव में काम कर रहा है क्योंकि मायावती सरकार के भ्रष्टाचार पर लिखने और मायावती या उनके अफसरों के संवाददाता सम्मेलनों में मर्जी के सवाल पूछने पर अघोषित पाबंदी महसूस की जाती है। कई संवाददाता यदि कुछ लिखना भी चाहें तो उनके सामने कई संकोच हैं जिनमें एक संकोच उनकी नौकरी को लेकर भी है जोकि उनकी रोजी-रोटी है।

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