स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
मुरादाबाद (उप्र)| उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती के राज में अब अवैध धनवसूली की इंतेहा हो गई है। फर्क इतना है कि उसका तरीका बदल गया है। औरैया के इंजीनियर मनोज गुप्ता की मायावती के लिए बहुचर्चित धन-वसूली का मामला अभी प्रदेश के लोग भूले भी नही थे कि उससे मिलती-जुलती एक घटना फिर सामने आई है। यह एक लोम-हर्षक मामला है जो बवंडर की तरह मुरादाबाद के जिला कारागार से बाहर निकला है। यूं तो ऐसी अनगिनत घटनाएं हैं, जो जिला कारागार में होती रहती हैं और कैदियों से यातनापूर्वक धन वसूली उन्हें धमकियों से चुप कराकर कारागार की चारदीवारी में ही दबा दी जाती हैं, लेकिन इस घटना में जिला कारागार में कैदियों से जाति-गत भेद-भाव और अवैध धन-वसूली के लिए शारीरिक यातनाएं देने का भांडा-फोड़ हुआ है। उल्लेखनीय है कि मायावती राज्य की मुख्यमंत्री होने के साथ-साथ राज्य की कारागार मंत्री भी हैं और इनके कार्यकाल में राज्य की जेलों में कैदियों पर अत्याचार करके उनके परिजनों से भारी धन वसूली की चर्चाएं आम हैं।
प्राप्त जानकारी के अनुसार दहेज उत्पीड़न के मामले में एक साल की सजा पाए करीब तीस वर्षीय युवक अनुज को जिला कारागार में पांच हजार रूपये की वसूली नहीं देने और उसके पंडित होने के अपराध में जेल सुप्रीटेंडेंट एसके मैत्रेय के मुंह लगे बंदी रक्षक संजीव ने जेल के भीतर पेड़ से बांधकर और उस पर निर्ममता पूर्वक लाठियां बरसा कर मार डाला। पोस्टमार्टम रिपार्ट में उसकी मौत निर्ममता पूर्वक पिटाई से बताई गई है। उसे यातनापूर्वक इतना पीटा गया था कि उसके शरीर पर चोटों के निशान दिखाई पड़ रहे थे और जैसा कि पोस्टपार्टम रिपोर्ट कह रही है निर्मम पिटाई से युवक के पेट के भीतर के हिस्से फट गए और उसके भीतर फैले भारी रक्त स्राव से उसकी मौत हो गई। जिला कारागार में बंद कैदियों में इस घटना से दहशत है और जेल में मुलाकात करने जाने वाले उनके परिजन भी ख़ौफ खाए हैं। मुलाकात करके बाहर आने वाले मुलाकातियों को धमकाया जा रहा है कि वे जेल के भीतर का हाल बाहर बयान करेंगे तो उनके बंदी को ठिकाने लगा दिया जाएगा।
जेल में यातना से मरे कैदी का नाम अनुज शर्मा पुत्र कामेश्वर शर्मा बताया गया है जोकि मुरादाबाद जनपद के मैनाठेर थाना क्षेत्र के गांव बघी गोवर्द्धनपुर का रहने वाला था और दहेज के मामले में कोर्ट से एक साल की सजा सुनाए जाने के बाद 14 जनवरी को जिला कारागार मुरादाबाद लाया गया था। बताया जाता है कि अठ्ठाईस जनवरी को उसकी जमानत पर रिहाई होनी थी। पता चला है कि उससे रिहा होने से पहले पांच हजार रूपए मांगे गए और नही देने पर उसे जेल में जान बूझकर मैले की सफाई पर लगा दिया गया इस पर भी जब वसूली में सफलता नही मिली तो उसकी संजीव नाम के बंदी-रक्षक ने निर्ममतापूर्वक पिटाई की और परिणाम स्वरूप अनुज शर्मा जेल से बाहर आया तो मगर एक क्षत-विक्षत लाश के रूप में।
इस मामले में जो तथ्य प्रकाश में आए हैं वे अत्यंत निर्मम और दहला देने वाले हैं। अनुज के परिजनों पर मामले को रफादफा करने के लिए दबाव बनाया जा रहा है। जिला प्रशासन और संबंधित थाने की पुलिस लगाई गई है कि अनुज के परिजन जेल प्रशासन के अनुसार बयान दे दें और वसूली और पिटाई से मौत के आरोप को वापस ले लें। अनुज के परिजन जिलाधिकारी रवींद्र कुमार के पैरों में गिर गए और उन्होंने न्याय की गुहार लगाते हुए आरोप लगाया कि अनुज से पांच हजार रूपए मांगे गए थे जो नही देने पर अनुज को गंदी नालियों से मैला साफ करने के लिए लगा दिया गया था। बताते हैं कि अनुज को संजीव नाम के बंदी-रक्षक ने जातिगत रूप से काफी प्रताड़ित किया और जेल अधीक्षक एसके मैत्रेय ने इस पर कोई ध्यान नही देकर पंडितों की मजाक उड़ाई। बंदी-रक्षक संजीव और वरिष्ठ जेल अधीक्षक एसके मैत्रेय दलित जाति से हैं जबकि मरने वाला ब्राह्मण जाति से है। संजीव बंदी-रक्षक के बारे में कहा जाता है कि वह वरिष्ठ जेल अधीक्षक का काफी मुंह लगा हुआ है और उसका काम जेल में कैदियों से इसी प्रकार की धन-वसूली करने का है। इससे पहले वह बरेली जेल में तैनात था और वहां भी उसकी गंभीर शिकायते रही हैं। वरिष्ठ जेल अधीक्षक एसके मैत्रेय से जब इस घटना के बारे में जानकारी चाही गई तो उनका कोई भी उत्तर संतोषजनक नही था। उनका कहना था कि उन्हें नही पता कि अंदर क्या हुआ है, न्यायिक जांच होगी-बयान लिए जाएंगे-यदि कोई दोषी होगा तो कार्रवाई होगी। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि उन्होंने घटना की न्यायिक जांच कराई जा रही है।इस घटना को कितनी गंभीरता से लिया है।
इस मामले को रफा-दफा करने की कोशिश की जा रही है। बताते हैं कि जेल प्रशासन ने उसे सरकारी अस्पताल में जबरन जिंदा रूप में भर्ती दर्ज कराने की कोशिश की लेकिन वह जेल के भीतर से ही मरा हुआ लाया गया था जिसे अस्पताल के डॉक्टरों ने देखकर मृत घोषित कर दिया। जिला अस्पताल प्रशासन का कहना है कि वह मृत था इसलिए उसके उपचार की स्थिति ही नही आई। जिलाधिकारी मुरादाबाद रवींद्र कुमार ने शव का पोस्टमार्टम तीन डाक्टरों की टीम से कराया है। इस कारण शव का करीब तीस घंटे बाद पोस्टमार्टम हो सका। जेल प्रशासन के अधिकारी चाहते थे कि एक ही डाक्टर इसका पोस्टमार्टम करे।