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असम राइफल्स को सैल्यूट

राइफल्स की वर्षगांठ पर कार रैली

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असम राइफल्स-assam rifles

असम राइफल्स-assam riflesगुवाहाटी। देश के सबसे पुराने सुरक्षा बल असम राइफल्स ने अपनी वीर गाथाओं के साथ देश में कार रैली आयोजित की है जो कि 4 मार्च से दिल्ली से शुरू होगी और तीन हजार किलोमीटर का सफर तेरह दिन में तय करते हुए 16 मार्च को इम्फाल में समाप्त होगी। यह रैली देश में शांति का संदेश वीरता का जज्बा, देश की आन-बान के प्रति समर्पण और सुरक्षा बलों के अदम्य साहस से दूसरों को प्रेरित करने के लिए समर्पित है। रैली देश के कई शहरों से गुजरेगी जिनमें दिल्ली, आगरा, लखनऊ, वाराणसी, बक्सर, पटना, खगरिया, पूर्णियां, न्यू जलपाईगुड़ी, कूचविहार, गुवाहाटी, शिलांग, दीमापुर और इम्फाल पहुंचेगी। रैली में असम राइफल्स के वरिष्ठ अधिकारी और जवान शामिल हैं।
असम राइफल्स का इतिहास और उसके वीरता के किस्से जग प्रसिद्ध हैं। सन् 1835 में कछार लेवी के नाम से 750 लड़ाकू पुलिस की एक टुकड़ी बनाई गई थी, जिसका उद्देश्य पूर्वोत्तर राज्यों में आदिवासियों को लूटमार करने से रोकना और चाय बागान की रक्षा करना था। समय के साथ यह बल धैर्यपूर्वक कठिनाइयों का सामना करते हुए दुर्गम सरहदी इलाकों को प्रशासन के नियंत्रण में लाया। इस बल के नाम को कई बार बदला गया जैसे-कछार लेवी, फ्रंटियर पुलिस, असम मिलिटरी पुलिस।
प्रथम विश्‍व युद्ध के दौरान इस बल ने भारतीय सेना के गोरखा रेजिमेंट को 23 ऑफिसर और 3174 जवान दिए थे, जिन्होंने भारतीय सेनाओं के साथ यूरोप तथा मध्य पूर्व के युद्ध में भाग लिया और वीरता पुरस्कार एवं विशिष्ट सेवा सहित 76 पदक प्राप्त करने में कामयाब हुए। इसके अतिरिक्त 11 ऑफिसरों और 130 अन्य रैंकों को पदोन्नति दी गई। इस बल को उचित सम्मान देने के लिए केंद्र सरकार ने सन् 1917 में इसे असम राइफल्स का नाम दिया, जो अभी तक चल रहा है। प्रथम विश्‍व युद्ध के बाद असम राइफल्स ने सेना के साथ देश की शांति व्यवस्था कायम करने में महत्वपूर्ण कार्य किए जैसे- सीमा पार बर्मा में की गई फौजी कार्रवाईयों में हिस्सा लिया, सन् 1917 में दंगा ग्रस्त पटना में शांति-व्यवस्था कायम की, सन् 1924 में मालाबार में जो मद्रास प्रेसिडेंसी का हिस्सा था, मोपले बागियों के खिलाफ सफल कार्रवाई की।
भारत-बर्मा सीमा पर असम राइफल्स को जापानी हमले और उनके मजबूत संचार साधनों को विफल करने के लिए प्रतिरोधी दस्ते बनाए गए, इसकी सारी योजना प्लान 'वी' में निहित थी इसलिए इस प्रतिरोधी वाहिनी को 'वी' फोर्स का नाम दिया गया था, जो अपने बेमिसाल काम की वजह से गौरवान्वित हुई। असम राइफल्स ने बर्मा इलाके के काफी भीतर स्थित दुश्‍मन की नियंत्रण सीमा रेखा पर बहादुरी से फौजी कार्रवाईयां कीं, बाद में उसने कोहिमा से उखरूल तक बनाई गई दुश्मनों की सुरक्षा चौकियों का भी कड़ा मुकाबला किया। लुशाई ब्रिगेड की पहली बटालियन ने जोखिम उठाकर चीनी पहाड़ियों में जापानियों का डटकर मुकाबला किया। इस प्रकार इन सैन्य अभियानों में इस फौज ने सहयोगी सेना की तरह कार्य किया। युद्ध के समाप्त होने तक पांचों बटालियनों के ऑफिसरों और जवानों ने अपनी श्रेष्ठता और शौर्य के प्रदर्शन से 48 पुरस्कार प्राप्त करते हुए अपनी पहचान बना ली थी। उत्तर पूर्वांचल के आदिवासी इलाकों में लंबी तैनाती की वजह से यह बल यहां के लोगों में बहुत लोकप्रिय हो गया। इस बल ने शिक्षा, निर्माण, कृषि और पशुपालन जैसी कई विकास संबंधी कार्य किए और यहां अल्पविकसित जनता को राष्ट्रजीवन की मुख्य धारा में शामिल किया।
असम राइफल्स के जवान अपनी जोखिम भरी जिंदगी खतरनाक जंगलों और पहाड़ी इलाकों में गुजारते हैं। जोखिम उठाने की इस भावना से असम राइफल्स को हिमालय में पर्वतारोहण के लिए प्रेरित किया गया जिनमें सन् 1980 में ग्रुर्दोगमा शिखर और 1984 में कामेत शिखर का सफल अभियान प्रमुख है। असम राइफल्स सन् 1947 तक असम के पुलिस महानिरीक्षक के अधीन हुआ करती थी और स्वतंत्रता के बाद पुलिस के एक महानिरीक्षक को इस बल का अध्यक्ष बनाया गया। सन् 1948 में सेना के एक ऑफिसर को प्रतिनिधि के तौर पर इस बल का महानिरीक्षक बनाया गया और यही परंपरा आज तक चली आ रही है। इस बल का नागालैंड में अपना प्रशिक्षण केंद्र है। आजादी के बाद असम राइफल्स ने 879 पदक हासिल किए जिनमें 4 अशोक चक्र, 24 कीर्ति चक्र, 5 वीर चक्र, 4 अतिविशिष्ट सेवा मेडल, 72 शौर्य चक्र, 232 गवर्नर द्वारा दिए गए मेडल तथा 379 प्रशंसा पत्र शामिल है।
असम राइफल्स कानून और व्यवस्था को बनाए रखते हुए सीमा की चौकसी में भी प्रगति करती जा रही है। इसका आदर्श अपनी तरह का अकेला है। असम के राज्यपाल के जनजातियों से संबंधित मामलों के एक भूतपूर्व सलाहकार डा बैरियर एल्विन के अनुसार 'असम राइफल्स के लोग कानून और व्यवस्था के संरक्षक दूर-दराज के इलाकों में जाने में अगुवाई करने वाले हमारी सरहदों के पहरेदार और पर्वतवासियों के मित्र हैं जिन्होंने विनम्रता और बिना शोर शराबे के हर तरह की कठिनाईयां और मुश्किलें झेली हैं। बीहड़ से बीहड़ इलाकों के हजारों गांव वाले उनके लिए स्नेह और कृतज्ञता की भावना रखते हैं।'

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