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परमाणु क्षति विधेयक नहीं चाहिए- ग्रीनपीस

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नई दिल्ली। ग्रीनपीस ने सांसदों से आग्रह किया है कि वे राजनीतिक क्षितिज के पार अपने सामाजिक दायित्‍वों को पूरा करते हुए प्रस्तावित परमाणु क्षति के नागरिक दायित्व विधेयक को खारिज करके भारत के सच्‍चे जन प्रतिनिधियों के रूप में अपनी जिम्मेदारी निभाएं।
ग्रीनपीस की परमाणु ऊर्जा अभियान की प्रचारक करुणा रैना ने कहा कि 'जनता को अपने नेताओं से आम आदमी की जान का मोल 39 पैसे से बेहतर आंकने की उम्‍मीद है। हमने सांसदों को पत्र लिखकर इस तथ्य से आगाह किया है कि इस बजट सत्र में लोकसभा में परमाणु क्षति नागरिक देयता का जो विधेयक पेश होने जा रहा है यदि वह पारित हो जाता है तो कोई परमाणु दुर्घटना होने पर मुआवजे के मामले में अमेरिकी कंपनियां अपना पल्‍ला झाड़ कर अलग हो जाएंगी। मुआवजे की राशि हमारे और आप जैसे भारतीय करदाताओं के पैसे से वसूली जाएगी। भारत में इन परमाणु कंपनियों के हिस्से में बस शत प्रतिशत मुनाफे की लहलहाती फसल आएगी। वास्तव में यह विधेयक सप्लायर को खुली छूट देते हुए केवल आपरेटर पर पूरा दायित्व तय करने जा रहा है।
करूणा रैना का कहना है कि भोपाल त्रासदी झेल चुकने के बाद केवल वही नेता इस विधेयक का समर्थन कर सकता है जिसकी आत्‍मा मर चुकी हो। ऐसे में सांसदों से ग्रीन पीस का आग्रह है कि वे इस बिल को पारित होने से रोकें। ग्रीनपीस ने पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी से भी इस विधेयक के कानूनी निहितार्थ पर राय ली है। उन्होंने भी इस विधेयक की समीक्षा करके इसे पूरी तरह असंवैधानिक करार दिया है। सुप्रीम कोर्ट में वकील प्रशांत भूषण, केके वेणु गोपाल, पीपी राव, बीबी सिंह, एईआरबी के पूर्व अध्यक्ष ए गोपाल कृष्‍णन जैसे जाने-माने विधि विशेषज्ञों की भी यही राय है। मानव अधिकार कानून नेटवर्क के दायरे में 200 वकील इसके विरोध में हैं ही।
करुणा ने कहा कि सरकार, नेताओं को यह कहकर बेवकूफ बनाने की कोशिश कर रही है कि परमाणु क्षति के नागरिक देयता विधेयक और परमाणु समझौते की देयताओं के लिए अनुपूरक मुआवजे के लिए धन सरकार को अंतर्राष्ट्रीय कोष से मिलेगा। दरअसल सीएससी अभी कानूनी तौर पर लागू नही है और अगर यह लागू होता है तो भी अमेरिका ने सीएससी के विवाद निपटान तंत्र के आरक्षण पर अपनी असहमती व्यक्त की हुई है जो सही मुआवजे के लिए लंबी और अंतहीन लड़ाई की ओर ले जाएगा।
विधेयक के दायित्व खंड में ऑपरेटर के दायित्‍व की अधिकतम सीमा 2385 करोड़ रुपए तय है जबकि अमेरिका में यह अधिकतम सीमा 70,000 करोड़ डॉलर है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की घोर अवज्ञा करके विधेयक पारित करके इस दायित्‍व की कम सीमा निर्धारित किये जाने का मतलब साफ है- कांग्रेस पार्टी ने आम आदमी को उसके हाल पर छोड़ दिया है।

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