स्वतंत्र आवाज़
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कश्मीर में जलता ध्वज और छज्जे पर बैठी बिल्ली

आशीष चड्ढा

कश्मीर

श्रीनगर। यह भारत ही है जहां कुछ भी करने की आज़ादी है, यहां तक कि अपनी मांगों को मनवाने के लिए राष्ट्रीय ध्वज तक जलाने से आपको कोई नहीं रोक सकता। जम्मू-कश्मीर में तो यह रिवाज़ बन चुका है कि भारतीय ध्वज को जलाइए और जम्मू-कश्मीर की सरकार में एवं सीमा पार के आतंकवादी शिविरों में अपने नंबर बढ़वाने के‍ लिए फोटो खिचवाइए। यहां पर कई गुट यही काम करते है और बदले में सीमा पार से मोटी पगार लेते हैं। वास्तव में जो आप देख रहे हैं वह भारतीय समाचार चैनल और दीगर मीडिया वाले भी देखते आ रहे हैं लेकिन भारत के अभिन्न अंग कहे जाने वाले कश्मीर में उनके लिए यह ब्रेकिंग ख़बर नहीं है। ब्रेकिंग ख़बर उन्हें गुजरात से मिलती है जहां मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ कोई भी अफवाह एक बड़ी ख़बर बन जाती है। यदि कोई भारतीय नागरिक भारतीय झंडे को जलाने का विरोध करना चाहे या उस पर अपनी प्रतिक्रिया भी देना चाहेगा वह नक्कारखाने में तूती की आवाज़ ही होगी।
श्रीनगर में विघटनकारी शक्तियों के मंसूबे इतने खतरनाक हो चुके हैं कि भारतीय सुरक्षाबल भी ऐसे मामलों में केवल अभियान के तहत ही कार्रवाई कर सकते हैं अन्यथा इनका सामना करने की दो-चार की हिम्मत नहीं है। अब तो स्थानीय लोग भी भारतीय झंडे को इस तरह जलाते हुए बस देखते और मज़ा लेते हैं। इन विघटनकारी शक्तियों में विदेशी आतंकवादी छद्म वेष में मौजूद होते हैं और वे कश्मीर के लोगों को भारत के खिलाफ उकसाने के तरह-तरह के हथकंडे अपनाते हैं।

जम्मू-कश्मीर सरकार की नज़र में यह कोई बड़ी समस्या नहीं है, वह इसे आंख मूंदकर होने देती है। यहां की भी सरकार रही हो ऐसी घटनाएं रोजमर्रा की बात होती जा रही हैं। श्रीनगर में लालचौक पर यह दुस्साहस किसकी शह पर हो सकता है इसे आसानी से समझा जा सकता है। यदि भारतीय सुरक्षाबल इसके खिलाफ कार्रवाई करते हैं तो उन पर मानव अधिकार के अलंबरदारों के हमले शुरू हो जाते हैं। यहां पर विघटनकारियों की ऐसी हरकतों से निपटना आम जनता के लिए तो कत्तई नामुमकिन है- सुरक्षाबलों के लिए तो बहुत मुश्किल रहता है।
विघटनकारियों की ऐसी करतूतों को मीडिया का एक वर्ग भले ही नज़रंदाज करता आ रहा हो लेकिन जो भारतीय भी ऐसे मामले देखते आ रहे हैं उनकी नज़र में भारत सरकार की कश्मीर पर ढुल-मुल नीति का पर्दाफाश जरूर होता है। यूं तो श्रीनगर सहित और इलाकों में बहुतों की इन विघटनकारियों के कोई सहानुभूति नहीं है क्योंकि वे निर्दोष लोगों को भी सताते हैं लेकिन उनकी मजबूरी है कि वे चुप रहें और जो हो रहा है उसे बस देखते रहें।

क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर के ध्वज वाला केक काटने पर तूफान खड़ा किया गया हो या क्रिकेट मैच के दौरान मंदिरा बेदी को भारतीय ध्वज जैसी साड़ी पहनने पर निंदा का सामना करना पड़ा हो, यदा-कदा बंगलौर और अन्य कुछ जगहों ध्वज के गलती से उलटा फहराने पर अफसरों को दंडित किया गया हो, अपने कार्यालय में टेबिल पर भारतीय फ्लैग की दिशा उलटी होने पर उत्तराखंड मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल तुरंत खेद प्रकट करना पड़ता हो तो अंदाज़ा लगाइए कि जब जम्मू-कश्मीर में सरेआम भारतीय ध्वज को जलाकर पाकिस्तान के झंडे फहराए जा रहे हों तो राष्ट्रवादी भारतीयों को कैसा लगेगा और उनकी स्थानीय सरकार और केंद्र सरकार के बारे क्या प्रतिक्रिया होगी?

किसीछज्जे पर फंसी बिल्ली और किसी कमिश्नर का कुत्ता चैनल वालों के लिए ब्रेकिंग ख़बर हो सकती है लेकिन कश्मीर में इस तरह से जलाए जा रहे भारतीय ध्वज पर उनकी नज़र नहीं जाती है। कम से कम बाकी भारतीयों और विश्व समुदाय को यह तो पता लगना चाहिए कि कश्मीर में विघटनकारी और आतंकवादी मिलकर किस तरह का खेल खेल रहे हैं। (स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम को ये तस्वीरें एक दर्शक और पाठक ने ई-मेल की हैं। तस्वीरें और प्रतिक्रियाएं कुछ ऐसी ही हैं जिन्हें आप भी जरूर देखना चाहेंगे)

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