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लखनऊ। चौदह अप्रैल को डॉ अम्बेडकर का जन्मदिन है और समाजवादी पार्टी ने आरोप लगाया है कि कांग्रेस और बसपा ने डॉ भीमराव अम्बेडकर के जन्मदिन को भी अपने तुच्छ सत्ता स्वार्थ में विवादास्पद बना दिया है। बसपा को तो अब दलितों का या दलित महापुरूषों का नाम लेने का भी कोई हक नहीं रह गया है।
सपा का कहना है कि भारत के संविधान निर्माण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के लिए पूरा देश उनका कृतज्ञ है। यह दिन उनकी शिक्षाओं पर चलने का संकल्प लेने का है किन्तु कांग्रेस ने इस दिन रथ यात्राएं निकालने का तो बसपा ने देशव्यापी आन्दोलन चलाने का ऐलान किया है। यह अम्बेडकर के मिशन के साथ स्पष्ट धोखाधड़ी और उनका मजाक उड़ाना है। भाजपा भी इनके साथ खड़ी हो गई है, जिसका दलितों के इस महान नेता से कभी कुछ लेना देना नहीं रहा है। मंहगाई, भ्रष्टाचार और आतंकवादी गतिविधियों से निबटने में पूर्णतः नाकारा साबित कांग्रेस नीत केन्द्र की यूपीए सरकार और राज्य में सत्तारूढ़ बसपा ने मिलीभगत के तहत डॉ अम्बेडकर के जन्म दिन पर ही झूठे मुद्दों पर भरमाने का कपट पूर्ण कार्य किया है जिसकी जितनी निन्दा की जाए कम है।
सपा ने गड़े मुर्दे उखाड़ते हुए कहा है कि आजादी के 63 वर्ष बाद कांग्रेस और बसपा दोनों ढोंग कर रहे हैं जब कि आजादी के पहले और आजाद भारत में भी कांग्रेस ने डॉ अम्बेडकर को सेंट्रल असेम्बली और लोकसभा में न जाने देने के लिए कुछ उठा नहीं रखा था। वह तो समाजवादियों के समर्थन से ही लोकसभा का चुनाव मुम्बई से जीत पाए थे। समाजवादी नेता डॉ राममनोहर लोहिया के साथ उनका वैचारिक जुड़ाव काफी आगे बढ़ गया था। बसपा ने डॉ अम्बेडकर की पहली सीख शिक्षा से ही किनारा कर रखा है।
मायावती और काशीराम बड़े फख्र से कहते रहे हैं कि उनके वोटर (दलित) निरक्षर हैं। केन्द्र ने शिक्षा अधिनियम लागू किया है तो उसको लागू करने के लिए मुख्यमंत्री मायावती पैसों का रोना ले बैठी हैं। पार्को, स्मारकों एवं पत्थरों पर अरबों रूपए खर्च करने वाली मायावती को बाबा साहब के मिशन पर एक पाई भी खर्च करना बर्दाश्त नहीं है। उन्होंने बसपा सरकार ने बाबा साहब को अपमानित करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी है। ऊंची-ऊंची प्रतिमाएं मुख्यमंत्री ने अपनी और काशीराम की लगवाई हैं। वे अपने मंदिर बनवा रही हैं और खुद 'देवी' बनकर पुजवाने का काम करना चाहती हैं। जबकि डॉ अम्बेडकर की उपेक्षा की जा रही है।
सपा ने कहा है कि दरअसल, हकीकत यह है कि मायावती ने अपनी सरकार में बाबा साहब की कीर्तिरक्षा के लिए कुछ किया ही नहीं है। वे तो मुलायम सिंह यादव की सरकार के समय किए गये कामों पर अपना नाम लिखवाने का ही स्याह धंधा करने में लगी हैं। विधानसभा के मुख्य मार्ग का नामकरण डॉ अम्बेडकर मार्ग मुलायम सिंह यादव ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में ही किया था। विधानसभा के सामने एक बड़े भवन में डॉ अम्बेडकर महासभा का कार्यालय उन्होंने ही आवंटित किया था। उसके पुस्तकालय के लिए अनुदान दिया था। अम्बेडकर ग्राम योजना के तहत 10 हज़ार गांवों को अम्बेडकर ग्रामों में चिन्हित करने का काम भी समाजवादी पार्टी की सरकार के समय ही हुआ था। जनपद कुशीनगर में मैत्रेय परियोजना के अन्तर्गत 660.57 एकड़ भूमि का अधिग्रहण कर महात्मा बुद्ध की विशालतम मूर्ति की स्थापना का निर्णय, अनुसूचित जाति के छात्र-छात्राओं को छात्रवृत्ति, पुत्रियों की शादी के लिए अनुदान आदि की व्यवस्था समाजवादी पार्टी की सरकार की ही देन है।
सपा ने एक बयान में कहा कि कांग्रेस के नेता राहुल गांधी अगर एक निगाह पुराने रिकार्ड पर डॉल लें तो उन्हें पता चलेगा कि कांग्रेस के राज में एक भी दलित उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री नहीं बना, कोई पिछड़ा भी मुख्यमंत्री नहीं बन पाया। उनका दलित प्रेम महज एक नाटक ही है। बसपा के राज में भी डॉ भीमराव अंम्बेडकर के नाम का इस्तेमाल सिर्फ दिखावटी तौर पर किया गया है। इस राज में दलितों का सबसे ज्यादा उत्पीड़न हुआ है। दलित फरियादी मुख्यमंत्री के कार्यालय या आवास के इर्दगिर्द भी नहीं फटक सकता है। दलित मायावती के भ्रष्टाचार से सबसे ज्यादा पीड़ित है। कांग्रेस और बसपा दोनों को ही डॉ अम्बेडकर के नाम का अपने स्वार्थ के लिए दुरूपयोग नहीं करना चाहिए।