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लखनऊ।समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव को उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक झटका देते हुए उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने संसद में पेश होने वाले कटौती प्रस्ताव पर केन्द्र की यूपीए सरकार को समर्थन दे दिया है। यह राजनीतिक घटनाक्रम ऐसे समय पर घटित हुआ है जब मायावती आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में भारी दबाव में हैं और उन्हें लग रहा है कि केंद्र में अब उनका कोई मददगार नहीं है और जो हैं भी वे अब आगे उनकी मदद की स्थिति में नहीं होंगे। विपक्ष के कटौती प्रस्ताव का विरोध करके मायावती को केंद्र सरकार से संबंध सुधारने का एक मौका मिला है। अब देखना है कि वे इस अवसर का कितना लाभ उठाती हैं। इससे मायावती को यह राहत तो मिली है कि केंद्र उनके प्रति तब तक आक्रामक नहीं होगा जब तक वे कोई हल्ला नहीं मचाती हैं। दूसरी राहत यह है कि मुलायम सिंह यादव का संघर्ष और उनकी राजनीतिक कठिनाईयां बढ़ गईं हैं, भले ही वामपंथी दल फिर से उनके साथ खड़े हो गए हैं।
मायावती ने कहा है कि यूपीए सरकार को संसद में समर्थन देने के बावजूद बीएसपी आम जनता से जुड़ी रोजमर्रा की वस्तुओं, पेट्रोल-डीजल की लगातार बढ़ती कीमतों और केन्द्र सरकार के प्रदेश की बसपा सरकार के साथ हर मामले में लगातार अपनाये जा रहे पक्षपात वाले रवैये के खिलाफ पूर्व की भांति आगे भी अपना संघर्ष जारी रखेगी। अपने सरकारी आवास 5-कालिदास मार्ग पर मीडिया से वार्ता करते हुए उन्होंने कांग्रेस और यूपीए को लोक दिखावे के लिए जमकर कोसा और बाद में उस मुद्दे पर आ गईं जिसके कारण वह अपने और अपनी सरकार के लिए बड़ा खतरा महसूस करती हैं। उनके आरोपों और तर्को से लगा कि मायावती ने कटौती प्रस्ताव का समर्थन करने के एवज में केंद्र सरकार से आय से अधिक सम्पत्ति और कुछ अन्य मामलों में सकारात्मक भरोसा हासिल किया है। मायावती ने आय से अधिक सम्पत्ति मामले को तूल देकर एक तरह से इसकी पुष्टि भी की है।
मायावती ने अफसोस जताते हुए कहा कि केन्द्र सरकार ने उत्तर प्रदेश में विकास की गति बढ़ाने, क्षेत्रीय असन्तुलन दूर करने, बुंदेलखंड और पूर्वांचल की समस्या का स्थाई समाधान करने तथा बिजली आदि जैसी समस्या के निदान के लिए राज्य मांगे गये अस्सी हज़ार करोड़ रूपये के विशेष पैकेज पर आज तक कोई ध्यान नहीं दिया है इसके बावजूद उनकी सरकार ने प्रदेश में गरीबी की समस्या से लड़ने और किसानों की आय दुगनी करने के लिए अनेक महत्वाकांक्षी योजनाएं शुरू की हैं। बसपा कटौती प्रस्ताव पर यूपीए को क्या इसलिए समर्थन दे रही हैं कि उनके विरूद्ध आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में सीबीआई की कार्यवाही समाप्त की जा रही है या इसलिए कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के माध्यम से सीबीआई का उन पर दबाव है या फिर यूपीए के साथ इस विषय में कोई समझौता है? इसका मायावती ने खंडन किया और विस्तार से कहा कि बीएसपी ने मई 2004 में यूपीए सरकार को समर्थन दिया था जोकि जुलाई 2008 तक रहा, इस बीच उनके विरूद्ध सीबीआई की कार्यवाही बराबर चलती रही। वर्ष 2008 में यूपीए सरकार को संसद में समर्थन देने का दबाव दिया गया परन्तु बीएसपी ने उसे नहीं माना और अपने सिद्धांतों एवं पार्टी की नीति के अनुसार वर्ष 2008 में यूपीए की सरकार से समर्थन वापस लिया गया। इस प्रकार बीएसपी किसी भी राजनैतिक अथवा अन्य दबाव में कार्य नहीं करती है।
मायावतीने कहा कि हालाकि आय से अधिक सम्पत्ति के मामले को वर्ष 2008 में ही बन्द कर दिया जाना चाहिए था परन्तु सीबीआई ने इस मामले को इस आधार पर बन्द नहीं किया जबकि उनकी समस्त आय वैध है। मायावती ने कहा कि इस मामले को गैर-कानूनी तरीके से भाजपा की सरकार ने शुरू किया था और अब इसे यूपीए की सरकार चला रही है। बीएसपी ने साम्प्रदायिक शक्तियों को बाहर रखने एवं उन पर अंकुश लगाए जाने के उद्देश्य से मई 2009 में यूपीए सरकार को बाहर से समर्थन दिया था, जो कि अभी भी उसी कारणवश चल रहा है और इसी आधार पर बीएसपी ने कटौती के प्रस्ताव के विरूद्ध यूपीए सरकार को समर्थन दिया है। उधर भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस और बसपा को एक-दूसरे का पूरक समर्थक और सहयोगी बताते हुए कहा कि दोनों ही दल अपनी-अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए उत्तर प्रदेश में नूराकुश्ती लड़ते हैं और बुनियादी समस्याओं से जनता का ध्यान हटाते हैं। भाजपा के प्रवक्ता हृदयनारायण दीक्षित ने मंगलवार को संवाददाताओं से वार्ता करते हुए वित्त विधेयक के प्रश्न पर बसपा के समर्थन को आय से अधिक सम्पत्ति मसले जोड़कर कहा है कि ये बसपा और कांग्रेस के बीच हुई ताजा डील से जुड़ा हुआ है। वैसे दोनों की सरकारें भ्रष्ट हैं। दोनों एक-दूसरे की गलतियों पर पर्दा डालते हैं।
ध्यान रहे कि केंद्र की यूपीए सरकार को समाजवादी पार्टी का भी समर्थन है यह विचित्र बात है कि सपा, यूपीए सरकार को समर्थन देकर संसद में कटौती प्रस्ताव का समर्थन कर रही है। पिछले कुछ महीनों से सपा का यूपीए सरकार से टकराव बढ़ गया है जिसका प्रमुख कारण महिला बिल है और दूसरे यूपीए बसपा का भी साथ लिए हुए है। उत्तर प्रदेश की राजनीति में ये दोनों ही दल कांग्रेस के लिए चिंता का विषय हैं लेकिन कांग्रेस यूपी में कभी बसपा के और कभी सपा के साथ खड़े दिखाई देकर अपना राजनीतिक उल्लू सीधा करती रहती है। इस बार कटौती प्रस्ताव को प्रभावहीन करने के लिए यूपीए ने मायावती का समर्थन ले लिया है लेकिन बदले में एक राहत देने की कोशिश की है जोकि मायावती के आय से अधिक सम्पत्ति मामले से जुड़ी है। कहा नही जा सकता कि इस मामले में आगे क्या होगा लेकिन यह संदेश पूरे देश में चला गया है कि यूपीए ने मायावती के भष्टाचार से मुंह मोड़ते हुए अपनी सरकार को बचाया है बजाय इसके कि वह वामदलों और सपा को कटौती प्रस्ताव न लाने के लिए तैयार करती। राजनीतिक प्रेक्षकों का कहना है कि यूपीए का मायावती से समझौता करना उसके लिए आत्मघाती है क्योंकि ऐसा करके कांग्रेस भ्रष्टाचार के खिलाफ नहीं बोल सकती।