मुजामिल जलील
लाल बाजार, श्रीनगर।मकबूल शाह की दुनिया बदल गई है। वह घंटों बैठकर अपने पुश्तैनी दो मंजिला मकान के बरामदे से आकाश की तरफ निहारता रहता है। घर के परिसर में चहलकदमी के लिए उठता है। उस चारदीवारी में गुलाब की एक झाड़ खिली हुई है, उसके एक कोने में लगा है अखरोट का मोटा पेड़ जो पिता की याद दिलाता है, पर वहां तक जाने के लिए उसे मशक्कत करनी पड़ती है। उसका कहना है कि मैं खुद चल नहीं सकता। सालों से बिना किसी के सहारे मैं चला नहीं। मैं खुद कोशिश कर रहा हूं। मुझे गली पार करने के बारे में भी सोचना पड़ता है। बहुत समय पहले मैंने ऐसा कभी नहीं सोचा था, आज मेरी हालत एक बंदर की तरह हो गई है जो इशारे पर चलने का आदी हो गया है।
मकबूल शाह की कहानी वाकई काफी उतार-चढ़ाव से भरी है। दिल्ली पुलिस ने उसे 17 जून 1996 को सुबह तीन बजे गिरफ्तार किया था, तब वह केवल सत्रह साल का था। उसे पुलिस ने जंगपुरा में किराए के घर से गिरफ्तार किया था। उस पर लाजपत नगर धमाके में शामिल होने का आरोप था। उस समय वह बारहवीं का छात्र था और अपने भाई से मिलने दिल्ली आया था जो वहां कश्मीरी कलाकृतियों का कारोबार करता था।
इसके बाद अगले तेरह साल, दस महीने और तीन हफ्ते उसने दिल्ली की तिहाड़ जेल में गुजारे। इस आठ अप्रैल को इस मामले में अदालती फैसला आया और दिल्ली कोर्ट ने उसे सभी दोषों से मुक्त कर रिहा करने के आदेश दिए। इस मामले में दस लोग दोषी थे, जिसमें चार लोगों के खिलाफ सबूत नाकाफी थे, इन्हीं में मकबूल शाह भी है। दो आरोपी शस्त्र और विस्फोटक कानून के तहत दोषी पाए गए हैं लेकिन वे इसके लिए पहले ही सजा काट चुके हैं। मुजरिमों में से एक दिल्ली का है जिसे मौत की सजा सुनाई गई और एक को उम्रकैद मिली है।
करीब तेरह साल पहले यानी मकबूल शाह की गिरफ्तारी के बाद, पुलिस ने धमाके में इस्तेमाल सफेद मारूति के दूसरे टायर के जंगपुरा वाले उसके कमरे से बरामद होना बताया था लेकिन कार के मालिक अतुल नाथ ने उस टायर के उसी कार का होने से इनकार कर दिया। उस टायर की पहचान भी वे नहीं कर सके। पुलिस ने दूसरे दोषियों की कुछ तस्वीरें और कपड़े भी बरामद करने का दावा किया था जो कि अदालत में कभी नहीं पेश किए गए। इस समय मकबूल शाह इक्तीस साल का है। वह कहता है कि 'उसे आजादी' बोझ सरीखी लगती है, सब कुछ तो बदल गया है।
उसकी आंतरिक पीड़ा उसे देखकर महसूस की जा सकती है, घर बाहर की एक-एक याद जेल से भी बड़ी यातना बनी हुई है। रिहाई का इंतजार करते-करते मेरे पिता और बहन की मौत हो गई, परिवार के कई बुर्जुग और पड़ोसी गुजर चुके हैं, मुझे अपने दोस्तों को देखकर झटका सा लगता है-वे सब मुझे बदले-बदले से नज़र आते हैं, उनकी शादियां हो गईं हैं और उनके बच्चे भी हैं, चौदह साल का समय काफी होता है।' मकबूल शाह आगे कहता है- 'उसने जेल में अपने जीवन के बारे में सोचना ही बंद कर दिया था, पहले के तीन महीने मैं हर रोज चिल्लाया लेकिन समय बीतने के साथ यही दिनचर्या बन गई। मैंने जमानत के लिए दर्जनों बार अर्जी दीं। अपनी बेगुनाही के बारे में कई बार पत्र लिखे। मेरे परिवार ने हर दर पर दस्तक दी, लेकिन कहीं सुनवाई नहीं हुई।'
इस बीच अदनान नाम का पांच साल का एक बालक कमरे में आता है। शाह उसकी ओर देखकर बताता है कि यह मेरी बहन का लड़का है, वह अब इस दुनिया में नहीं है, चार साल पहले उसका इंतकाल हो चुका है, अंतिम बार वह मुझसे मिलने तिहाड़ जेल आई थी, लेकिन उससे फोन पर ही बात हो पाई। वह मेरा हाथ छूना चाहती थी, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। मैं उस लम्हे को हमेशा, हर रोज याद करता हूं। मकबूल शाह को लगता है कि वह भी एक समय था जो बीत गया। अपनी जेब से निकालकर नोकिया फोन दिखाते हुए वह कहता है कि उन्होंने यह छोटा सा डिब्बा दिया है। इसे कैसे इस्तेमाल किया जाता है, मै नहीं जानता। मुझे याद है, 1996 में केवल एक लैंडलाइन हमारे मुहल्ले में था। आज मोबाइल हर बच्चे के पास है। मेरे भाई ने इसके इस्तेमाल के बारे में मुझे बताया है।
मकबूल शाह का भाई सैयद हसन बताता है कि वह अब एक सामान्य बिस्तर पर नहीं सो सकता। वह तख्ते पर सोने के लिए कहता है। जेल में उसकी यह आदत और जरूरत बन गई है। शाह कहता है कि उसकी मांसपेशियों में बेहद दर्द होता है, क्योंकि उसने जेल में सोने के लिए कभी गद्दे का इस्तेमाल नहीं किया। सैयद हसन से सीमेंट की फर्श पर कंबल बिछाकर सोने को कहता है हसन बताता है कि वह सभी काम के लिए मेरा इंतजार करता है यहां तक की खाने के लिए भी। वह न तो किसी चीज की मांग करता है और कभी नहीं कहता कि वह भूखा है, केवल इंतजार करता है।
क्या मकबूल शाह नाराज़ है? 'मैंने एक झूठ के लिए जीवन के चौदह साल गुजार दिए, मैं गुस्सा क्यों नहीं होऊं? लेकिन मेरी समझ में आ गया। मैं कश्मीर का हूं। सन् 1996 में मैं नौजवान था और गलत समय में दिल्ली में था, जो मेरे साथ हुआ वह किसी के साथ हो सकता है। मुझे एहसास होता है कि मैं एक छोटी जेल से बड़ी जेल में आ गया हूं। मैं फिर से चलना सीख रहा हूं। मुझे जीविका भी चलानी है, लेकिन कुछ समझ में नहीं आ रहा। अब अदालत के फैसले से लगता है कि मेरे साथ कुछ न्याय हुआ है।' (जनसत्ता)