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नई दिल्ली। माँ केवल दिवस मनाने का विषय नहीं, वह संस्कृति की सृजनकर्ता है। मानव सभ्यता के विकास का अत्यंत समृद्धशाली स्रोत है। जीवन शैली और नैतिक मूल्यों का उससे ज्यादा पोषण कहीं से नहीं मिलता। वह ममतामयी है तो वह ही प्रारंभिक पाठशाला भी है जहां से मनुष्य के राजसमाज में प्रगति का मार्ग प्रशस्त होता है। उसका धैर्य और विश्वास संतान के प्रति एक चट्टान की तरह है, वह स्वयं कष्ट सहती है लेकिन संतान को कभी दुखी नहीं देख सकती। संतान के लिए उसका यह सुरक्षा कवच अभेद्य है। यह कितना रोमांचकारी रहस्य है कि वह अपने गर्भ में भी बच्चे को शिक्षा देती है। ये विभिन्न विचार सेक्युलर हाउस, नई दिल्ली में कविता-छायाचित्र प्रदर्शनी में सामने आए। एक अलग तरह की इस प्रदर्शनी में हर कोई एक संतान के रूप में खड़ा था और माँ के विभिन्न रूपों को निहार रहा था।
भोपाल के रचनाकार अनिल गोयल की इस जनप्रिय प्रदर्शनी का उद्घाटन भारत सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री मुकुल वासनिक ने किया। विशिष्ट अतिथि के रूप में मध्यप्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुरेश पचौरी उपस्थित थे। एक सौ पचास चित्रों से सजी इस श्वेत-श्याम प्रदर्शनी में नदी, गाय, पृथ्वी, प्रकृति सब पर मार्मिक चित्र और कविताएं प्रदर्शित की गईं। जैसे-धर्म शर्मिंदा, मज़हब ख़ामोश, पंथ, जाति, धर्म नदारद, माएं थीं वहां, सारे जहां से ठुकराई हुईं। इसके साथ वृद्धाश्रम और विधवाश्रम के चित्र और माँ के साथ किये जा रहे व्यवहार पर ये टिप्पणी-मर्म भेदी थी, लोरियां सुनाकर, सुलाती थी जिसे, जागती है उसी की घुड़कियां सुन।
स्वतंत्रता सेनानी और पूर्व सांसद शशि भूषण की अध्यक्षता में आयोजित परिसंवाद में मध्यप्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और पूर्व मंत्री सुरेश पचौरी ने इस प्रयास की सराहना की। उन्होंने कहा कि इस तरह के निस्वार्थ और मूल्यों की पुर्नस्थापना के सकारात्मक आंदोलनों की आज बेहद ज़रूरत है। मुकुल वासनिक ने कहा कि देश में स्त्री के प्रश्नों की अब उपेक्षा संभव नहीं है। मातृ सत्ता का सम्मान भी बढ़ेगा और पार्लियामेंट में महिला आरक्षण विधेयक भी पारित होकर रहेगा।
पूर्व राज्यपाल डॉ एआर किदवई ने भोपाल की अंतर्नाद संस्था और इसके संयोजक अनिल गोयल के प्रयास की प्रशंसा करते हुए कहा कि माँ की प्रतिष्ठा वस्तुतः संस्कृति और परंपरा की भी प्रतिष्ठा है। सर्वानंद सरस्वती ने कहा कि इस प्रदर्शनी को नौजवानों के बीच और विश्व विद्यालयों में ले जाना चाहिए। हमारी संस्कृति माँ को ही संबोधित है। दिल्ली विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर पुरुषोत्तम गोयल ने कहा कि ऐसे प्रयास हमारी संवेदना के लिए जीवनदान जैसे हैं। प्रोफेसर सविता सिंह ने कहा कि श्रम के आधार पर विभाजन करके मातृ सत्ता के अधिकार छीने गये। प्रकृति ने उसे माँ बनाया लेकिन श्रम विभाजन ने पराधीन। शशिभूषण ने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम और विश्व शांति के लिए किये गए मातृ शक्ति के कार्यों को अनदेखा नहीं किया जा सकता। भोपाल के रामप्रकाश त्रिपाठी ने विषय प्रर्वतन किया। फ्रांसिस फैन्थम, चेतन पाटीदार ने भी परिचर्चा में भाग लिया। संचालन प्रदर्शनी के परिकल्पनाकार और कवि अनिल गोयल और आभार अख़लाक़ अहमद ने किया।