लिमटी खरे
सिवनी, मप्र। किसी तमिल संत ने कहा था कि जो राजा अपने यहां प्रजा को जल भी न उपलब्ध करा सके या जल संचय में अक्षम हो तो उसका राज्य करना बेकार है, वह राज्य शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। इस नसीहत का असर राजनेताओं या जनसेवकों पर नही दिखता है मगर कुछ ऐसे हैं जो ऐसी नसीहतों को अपना आदर्श बना लेते हैं। अस्सी के दशक तक, सुबह और शाम दो समय नल के आदी थे शहरवासी। इसके बाद पानी की किल्लत दिनों-दिन बढ़ती गई। ऐसा नहीं कि सिवनी में पानी के स्त्रोत नहीं हैं। पानी के पर्याप्त स्त्रोत होने के बाद भी जनसेवकों की अदूरदर्शिता का खामियाजा भगवान शिव की नगरी में रहने वालों को भोगना पड़ा है। एशिया के सबसे बड़े मिट्टी के बांध होने का गौरव पाने वाली संजय सरोवर परियोजना के होते हुए भी सिवनी शहरवासियों के कंठ सूखे ही रह जाते हैं। अपने आंचल में बबरिया, दलसागर, बुधवारी और मठ जैसे विशाल जलसंग्रह क्षमता वाले तालाबों के अलावा रेलवे स्टेशन से सटे हुए दो छोटे तालाब सहेजने के बाद भी अगर सिवनी में नागरिकों को निस्तार के लिए भी पर्याप्त पानी न मिल सके तो इसे और क्या कहेंगे?
नब्बे के दशक तक सिवनी शहर को पानी प्रदाय के लिए इकलौती पानी की टंकी टिग्गा मोहल्ला में हुआ करती थी, जिसे बबरिया और लखनवाड़ा के तट से पानी लाकर भरा जाता रहा है। कालांतर में पानी की टंकियों की संख्या बढ़ी और भीमगढ़ बांध से सुआखेड़ा से सिवनी तक लंबी पाइप लाइन बिछा दी गई। इसे सिवनी शहर की आबादी को 2025 तक का आंककर दोनों समय पानी देने की गरज से बनाया गया था। कांग्रेस के शासनकाल में स्थापित इस परियोजना की गुणवत्ता पर उसी वक्त प्रश्न चिन्ह लग गया था। परीक्षण के दौरान ही कलेक्टोरेट के सर्किट हाउस वाले गेट के पास पाईप लाईन, पानी का दवाब नहीं सह पाई और उसने आसमान की ओर मुंह कर दिया था। आज यह नल जल योजना माह में आधे दिन ही लोगों का साथ दे पाती है।
हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि सरकार चाहे कांग्रेस की रही हो या भाजपा की, किसी भी जनसेवक ने इस घटिया, स्तरहीन नल जल योजना के बारे में कभी भी कोई प्रश्न विधानसभा में उठाने की जहमत नहीं उठाई। यह नल जल योजना सिवनी के माथे पर तत्कालीन लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री ठाकुर हरवंश सिंह के स्वर्णिम कार्यकाल का एक बदनुमा दाग कही जाती है। इस योजना के बारे में न तो कोई जनहित याचिका ही दायर करने का साहस जुटा पाया और न ही मध्य प्रदेश की सबसे बडी पंचायत अर्थात विधानसभा में ही इसको चुनौती दी जा सकी है। यह क्यों नहीं किया जा सका, यह बात भी आईने के मानिंद साफ ही है, कि कौन किसके एहसानों तले बुरी तरह दबा हुआ है, किसने किस कारण अपना मुंह बंद रखा है! कौन जान बूझकर ही अपने नयनों पर काली पट्टी बांधे हुए हैं। ये सारे जतन बेमानी हैं। नेता सोच रहे हैं कि शतुरमुर्ग के मानिंद वे रेत में अपनी गर्दन गाड़कर सोच रहे होंगे कि उन्हें कोई देख नहीं रहा है, पर सच्चाई इससे इतर ही है। जनता नेताओं की नूरा कुश्ती समझ चुकी है। समय-समय पर किसी महाबली विशेष के विरोध का दिखावा भी अपना उल्लू सीधा करने की एक रणनीति का ही हिस्सा है।
जबसे नगर पालिका परिषद में चुनी हुई परिषद विराजी है तब से याद नहीं पड़ता कि किसी गरमी के मौसम में पानी की किल्लत के बिना गुजारा हुआ हो। पिछले पांच सालों के कार्यकाल में तो सारे रिकार्ड ही ध्वस्त हुए हैं। सत्ता के मद में चूर परिषद ने लोगों को तीन-तीन चार-चार दिन तक पानी नहीं दिया, और मजे से अपने अपने घरों में फायर ब्रिगेड बुलाकर काम चलाया। भगवान शिव की नगरी सिवनी की भोली-भाली जनता ने सब कुछ देखा सुना और सहा है। नागरिकों को लगने लगा था कि ग्रीष्मकाल आरंभ होने के पहले ही फरवरी से अगस्त तक के सात माह पानी की किल्लत से आम जनता को गुजरना ही होगा। वस्तुतः हर साल ऐसा होता भी रहा है।
पानी की मारामारी के मामले में इस साल की गरमी का मौसम अपेक्षाकृत कम परेशानी भरा रहा है। अनेक मौकों पर हमने खुद भी देखा है कि नगर पालिका के अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी ने खुद ही गांधी भवन के पीछे पानी के स्त्रोत पर खड़े होकर टैंकर्स में पानी भरवाया। इतना ही नहीं टैंकर पर खुद ही सवार होकर गली मोहल्लों में पानी की सप्लाई भी करवाई। देखा जाए तो सिवनी के इतिहास में यह पहला मौका होगा जबकि नगरपालिका के किसी अध्यक्ष ने जनता के पानी के दुख-दर्द को समझा हो। इस साल शहर में पानी की किल्लत की खबरें बहुत ही कम प्रकाश में आई हैं। यह राजेश त्रिवेदी का भाग्य ही माना जाएगा कि इस साल गरमी के मौसम में सुआखेड़ा जलावर्धन योजना की पाईप लाईन भी ज्यादा नहीं फटी। नगर पालिका में कोई नया चमत्कार नहीं हुआ है। उतने ही टैंकर, फायर ब्रिगेड, फायर फायटर हैं, उतनी ही तादाद में वे बिगड़े पड़े हैं, चालू हालत में उतने ही बल्कि कुछ कम ही ट्रैक्टर्स और टैंकर्स हैं। वही कर्मचारी हैं, सिवनी में प्रश्न उछला है कि फिर इस बार पानी की किलकिल क्यों नहीं हुई?
जाहिर सी बात है कि आज से पहले प्रबंधन का अभाव हुआ करता था। अगर कुशल प्रबंधन में काम किया जाए तो संसाधन महत्वपूर्ण नहीं रह जाते फिर संसाधन भले ही कम क्यों न हों, लक्ष्य की प्राप्ति कठिन जरूर होती है, पर मुश्किल नहीं। राजेश त्रिवेदी ने इस बार गरमी में लोगों को पानी के लिए तरसने से बचाकर एक अनुकरणीय उदाहरण कायम किया है, जिसकी हर शहर वासी को मुक्त कंठ से प्रशंसा की जानी चाहिए। पूर्व में एक राजेश त्रिवेदी के द्वारा किए जा रहे मोक्षधाम के जीर्णोंद्धार के बारे में लिखकर हमने मुक्त कंठ से प्रशंसा की थी, तब राजेश त्रिवेदी नगर पालिकाध्यक्ष नहीं थे। आज वे सिवनी शहर के पहले नागरिक हैं। शहर की कमान उनके हाथ में है।
राजेश त्रिवेदी की दूरंदेशी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अध्यक्ष बनने के उपरांत उन्होंने मीडिया से भी पहली बात यही पूछी थी, कि सिवनी शहर को किस दिशा में आगे बढ़ाया जा चुका है। शहर आज वाकई में अंदर ही अंदर भर चुका है। चारों दिशाओं में नाकों के बाहर जाने से लोग कतरा रहे हैं। सिवनी की नगर पालिका प्रदेश की पहली नगरपालिका है, जहां ड्रेस कोड लागू किया गया है। आम आदमी आज पालिका कार्यालय जाता है तो उसे वे ही कर्मचारी मान सम्मान देकर उसका काम कर रहे हैं। कम उमर में राजेश ने जिस तरह अनुभवी कदमतालों के जरिए शहर को सलीके से लाने और करीने से सजाने का प्रयास किया है, वह प्रशंसनीय है। सिवनी शहर वासियों को चाहिए कि छोटी मोटी भ्रांतियों और अफवाहों पर कान न देकर राजेश त्रिवेदी के नगर पालिकाध्यक्ष रहते हुए अपने शहर को संवार में सहयोग दें।