चंदन भाटी
बाड़मेर। राजस्थान के मरुधरा के गौरव बाड़मेर जिले की समृद्ध कला, लोकगीत, संगीत और लोक संस्कृति का बखान अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हो रहा है। यहां के लोक कलाकार झोपड़ों से निकल कर अलबर्ट हॉल तक जा पहुंचे हैं। जिले की लोकगीत गायन की अपनी विशिष्ट शैली ने मांगणियार लोक कलाकारों को एक नई पहचान दी है।सामाजिक, पारिवारिक और लौकिक जीवन का यहां कोई एक पहलू नहीं हैं, जो लोक गीतों की स्वर लहरियों से अछूता रह हो गया। जीवन का आनंद, उत्साह और मानवीय सम्बन्धों का अपना प्रवाह इन लोकगीतों में मुखर हुआ है। प्रकृति और मनुष्य के संबंधों में हास्य और रूदन की भावपूर्ण अभिव्यक्ति से लोक जीवन के सभी रंगों और रसों को लोकगीतों में पाया जाता है। नारी पुरूष के कोमल कंठों से निकले मरूधरा के लोकगीत श्रोताओं को अभिभूत कर देते हैं। व्यंग्य और जीवन के आदेश भी लोकगीतों में मिल जाते हैं।
प्रकृति के विभिन्न उपादानों को इन गीतों में बड़ी करूण अभिव्यक्ति मिली है। चमेली, मोगरा, हंजारा, रोहिडा के फूल भी और कुरजा, कोआ, हंस, मोर (मोरिया), (तोता) सुवटिया, सोन चिड़िया, चकवा-चकवी जैसी प्रेमी-प्रेमिका प्रियतमाओं, विरही-विरहणियों आदि के सुख-दुख की स्थितियों में संदेश वाहक बने हैं। विश्व भर में अपनी जादुई आवाज़, खड़ताल वादन के माध्यम से अपनी धाक जमाने वाले कलाकारों ने थार नगरी का नाम दुनिया में ऊंचा किया है। बाड़मेर जिले के कण-कण में लोकगीत रचे बसे हैं।
माटी की सोंधी महक इन लोकगीतों के स्वर को नई ऊंचाईयां प्रदान करती है। फागोत्सव के दौरान फाग गाने की अनूठी परम्परा, बालकों के जन्म के अवसर पर हालरिया, विरह गीत, मोरूबाई, दमा दम मस्त कलन्दर, निम्बुड़ा-निम्बुड़ा, बींटी महारी, सुवटिया, इंजन री सीटी में मारो मन डोले, बन्ना गीत, अम्मादे गाड़ी रो भाड़ो, कोका को बन्नी फुलका पो सहित सैंकडों लोकगीत राजस्थान की समृद्धशाली परम्पराओं का निर्वाह कर रहे हैं।