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लखनऊ। उत्तर प्रदेश में नए उद्योगों का लगना लगभग कम हो गया है। जिस प्रदेश में औद्योगिक रफ्तार और राज्यों के मुकाबले सबसे तेज और आगे थी वह राज्य आज औद्योगिक विस्तार में सबसे पिछड़ा हुआ है। यह इस बात का प्रमाण है कि राज्य सरकार उद्योग जगत को विश्वास और अनुकूल वातावरण देने में विफल है। एक जानकारी के अनुसार उत्तर प्रदेश में एक साल के दौरान कारखानों की संख्या में केवल 0.27 फीसदी ही बढ़ सकी उसमें भी कोई बड़ा उद्योग नहीं है, जबकि यहीं से कटकर अलग राज्य का दर्जा पाए उत्तराखंड में यह वृद्धि 28.17 प्रतिशत दर्ज की गई है जो कि इस राज्य के विकास की प्रगति में भारी आशा कही जा सकती है। उद्योगों के विकास की तस्वीर दर्शाते यह आंकड़े बताते हैं कि औद्योगिक विकास के मामले में उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश से भी पिछड़ गया है। बिहार में यह प्रगति 11.30 और मध्य प्रदेश में 3.13 फीसदी दर्ज हुई है। वर्ष 2006-07 के मुकाबले वर्ष 2007-08 के इन आंकड़ों को भारत सरकार के केंद्रीय सांख्यिकी विभाग ने लखनऊ में उत्तर प्रदेश के लोगों के सामने रखा।
औद्योगिक विकास पर गोमतीनगर में आयोजित एक कार्यशाला में वक्ताओं ने उन कारणों को रखा जो औद्योगिक विकास में बाधक हैं और जिन पर सरकार गंभीर नहीं है। इसके साथ ही राज्यों के स्तर पर भी औद्योगिक उत्पादन सूचकांक तैयार करने पर जोर दिया गया। कार्यशाला में मध्य और पूर्व क्षेत्र के सात राज्यों उप्र, उत्तराखंड, मप्र, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड और उड़ीसा सहित जम्मू-कशमीर के अर्थ एवं संख्या निदेशालय के अधिकारियों को आमंत्रित किया गया था। इसमें से उड़ीसा और झारखंड को छोड़कर बाकी राज्यों के प्रतिनिधि शामिल हुए। कार्यशाला में तय हुआ कि एकरूपता लाने के लिए मध्य और पूर्व क्षेत्र के प्रदेशों में वर्ष 2004-05 को आधार माना जाएगा, जिससे राज्यों की अर्थव्यवस्था में होने वाले संरचनात्मक परिवर्तन को सक्षम तरीके से प्रस्तुत किया जा सके। कार्यशाला का उद्घाटन लघु उद्योग विभाग के मंत्री चंद्रदेव राम यादव ने किया। इस मौके पर प्रमुख सचिव अरुण कुमार सिन्हा, निदेशक बी चौधरी, अपर महानिदेशक आशीष कुमार, उप महानिदेशक हरिश्चंद्र, बीके गिरी और अजयदीप सिंह सहित अन्य गणमान्य लोग भी मौजूद थे।