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सरबजीत को रिहा कराएं, नहीं तो वोट गवाएं

बेटियों ने कहा- ‘देश की कीमत पर पापा नहीं चाहिएं’

गुरदीप सिंह

सरबजीत सिंह-sarabjit singh

नई दिल्ली। पाकिस्तान में लाहौर की कोट लखपत जेल में सजा-ए-मौत का इंतजार कर रहा वह भारतीय बंदा सरबजीत सिंह हो या मंजीत सिंह, भारत सरकार ने जब लंगर डाल ही दिया है तो उसकी प्रतिष्ठा दांव पर आ गई है कि वह उसे फांसी के फंदे से उतार कर लाए, नहीं तो भारत में सत्तारुढ़ दल इसके राजनीतिक परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहे। पाकिस्तान में लंबे समय से बंद अकेले कश्मीर सिंह की रिहाई से लग गया था कि सरबजीत सिंह की रिहाई में कोई बड़ा पेंच फंसा है और वही हुआ कि कुछ ही दिन बाद उसकी फांसी की तारीख तय कर दी गई। भारत में राजनीतिक दलों की लोकसभा चुनाव की तैयारियों के दरमयान सरबजीत सिंह की फांसी की तारीख आ पड़ने से मामला और ज्यादा तूल पकड़ गया है। यह ऐसा मामला है जिसमें विभिन्न कारणों से भारतवासियों की गहरी दिलचस्पी है। सरबजीत सिंह की बंदी और उसके परिवार वालों की उसे छुड़ाने की कोशिशों से यह मामला देश के अधिकांश लोगों की जानकारी में है इसलिए वे हर हाल में सरबजीत सिंह की रिहाई चाहते हैं। दूसरी ओर सरबजीत सिंह की बेटियों स्‍वप्‍नदीप और पूनम ने देशभक्‍ति की मिसाल कायम करते हुए यह कहकर देश में भावनात्‍मक लहर पैदा कर दी है कि यदि उनके पापा के बदले भारत से आतंकवादियों को छोड़ने की पाकिस्‍तान ने कोई शर्त रखी हो तो उन्‍हें पापा नहीं चाहिएं क्‍योंकि हमारे पापा से देश से बडे़ नहीं हैं।
एक तरफ संसद पर हमले के आरोप में मौत की सजा पाए मोहम्मद अफजल को फांसी पर नहीं लटकाए जाने के कारण भारत सरकार की भारी आलोचना होती आ रही है तो दूसरी ओर भारत सरकार पाकिस्तान जेल में बंद सरबजीत सिंह को फांसी से बचाने में नाकाम साबित हो रही है। इसे मुद्दा बनाकर केंद्र सरकार को घेरा जा रहा है। पाकिस्तान में सरबजीत सिंह को यदि फांसी दे दी जाती है तो भारत में इसके राजनीतिक परिणाम सामने आएंगे। लोकसभा चुनाव में तब फिर भाजपा के लिए यह एक बड़ा चुनावी मुद्दा होगा। उस हालत में कांग्रेस को पंजाब और देश के दूसरे इलाकों में सिखों का समर्थन खोना पड़ सकता है।
देश का स्वतंत्रता आंदोलन हो या अपनी सिख कौम की रक्षा का सवाल, उसमें सिखों के पराक्रम और बलिदान का एक शानदार इतिहास रहा है। पंजाब में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के एक दुर्भाग्यपूर्ण समय को अगर छोड़कर देखें तो दुनिया में सिखों की सहानुभूति भारत के साथ ही प्रकट होती है। इसलिए भारत के लोग सरदार भगत सिंह की फांसी के मामले में ढुलमुल नीति अपनाने पर आज भी महात्मा गांधी की आलोचना करने से नहीं चूकते हैं। सरबजीत सिंह का मामला यदि किसी और देश का होता तो शायद भारत के लोग इसे इतनी गंभीरता से न लेते। चूंकि यह पाकिस्तान से जुड़ा मामला है, जहां न जाने कितने निर्दोष भारतीय अपने भारत के लिए वर्षों से वहां की जेलों में बंद हैं और यातनाएं झेल रहे हैं इसलिए सरबजीत सिंह की फांसी पर पूरे भारत के तेवर चढ़े हुए हैं।
यदि सरबजीत सिंह को पाकिस्तान में फांसी दे दी जाती है तो कांग्रेस सहित उन राजनीतिक दलों को इसकी भारी राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ सकती है जिनका इस मामले में ढुलमुल रवैया देश के सामने रहेगा। पाकिस्तान जेल में सत्रह साल से बंद सरबजीत सिंह पर आरोप है कि वह पाकिस्तान के शहर में बम विस्फोटों में शामिल था जिसमें कई लोगों की जाने गईं। इस पर उसे मौत की सजा सुनाई गई है। पाकिस्तान सरकार कहती आ रही है कि वह सरबजीत सिंह नहीं लेकिन मंजीत सिंह है जबकि भारत सरकार अपने उच्चायोग के मार्फत यह पुष्टि कर चुकी है कि वह मंजीत सिंह नहीं बल्कि सरबजीत सिंह ही है जिसको रिहा करने के लिए भारत सरकार ने पाकिस्तान सरकार से अनुरोध किया हुआ है।
पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ सरबजीत सिंह की क्षमादान याचिका खारिज कर चुके हैं जिसके बाद सरबजीत को एक अप्रैल को फांसी दी जानी थी लेकिन पाकिस्तान सरकार ने उसकी मियाद एक महीने बढ़ा दी है। इसे रोकने के लिए भारत के कूटनीतिक मिशन पर काम चल रहा है। मानवाधिकार संगठन और दुनिया के कुछ देशों से सरबजीत को फांसी पर न लटकाए जाने की अपील भी आ रही हैं। इसके पीछे तर्क है कि जब सरबजीत सत्रह साल से जेल में बंद है तो अब उसकी फॉंसी की कोई तुक नहीं है। लेकिन पाकिस्तानी कानून के मुताबिक उसकी फांसी तभी टल सकती है जब बम विस्फोट में मारे गए लोगों के परिजन सरबजीत को माफ कर दें।
पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के प्रमुख का बयान आया है कि सरबजीत के परिवार वालों ने अभी उन पीड़ित परिवारों से माफी के लिए संपर्क नहीं किया है। भारत सरकार पाकिस्तानी सरकार के सामने माफी की औपचारिक अपील पेश कर चुकी है। इस पर पाकिस्तान सरकार को फैसला लेना है। यह देखना होगा कि भारत इस मामले में सरबजीत को बचाने में कामयाब होता है कि नहीं। इतना निश्चित है कि यदि भारत विफल रहा तो सरबजीत का मामला लोकसभा चुनाव को जरूर प्रभावित करेगा। खासतौर से जब आरोप है कि भारत में पाकिस्तान आतंकवादी हरकतों को अंजाम देता आ रहा है जिस कारण भारत के भीतर पाकिस्तान को लेकर भारी तनाव रहता है। हाल के वर्षों में इस तनाव में काफी कमी आई है भारत-पाकिस्तान के रिश्ते जनरल परवेज मुशर्रफ के समय में काफी सामान्य हुए हैं। तनातनी का माहौल भी अब नहीं है। लेकिन सरबजीत सिंह के मामले में फिर से कुछ तनाव के बीज बो दिए हैं।
भारत की भारतीय जनता पार्टी ऐसे मामलों में अपनी स्पष्ट नीति रखती आई है। उसने सरबजीत के पक्ष में खड़े होकर केंद्र सरकार को घेरना शुरू कर दिया है। भाजपा के पंजाब में सत्तारूढ़ अकाली दल से गहरा तालमेल रहता आया है और अकाली दल भारत में सिखों का प्रमुख प्रतिनिधि के रूप में देखा जाता है। कांग्रेस को घेरने के लिए भाजपा को अच्छा मुद्दा मिल गया है। पाकिस्तान में आम चुनाव हो चुके हैं और पीपुल्स पार्टी का गठबंधन सत्ता में आने की तैयारी कर चुका है। पीपीपी के नेता आसिफ जरदारी कुछ ही दिन पहले सार्वजनिक रूप से यह बयान दे चुके हैं कि वह भारत-पाक रिश्तों के सामने कश्मीर को तूल नहीं देंगे। ऐसे में सरबजीत सिंह का मामला इन रिश्तों की कसौटी पर आ गया है। यदि पाकिस्तान सरकार इस पर नरम रुख अपनाती है तो सरबजीत भारत पाकिस्तान के रिश्तों को और भी सामान्य बनाने में काफी मददगार साबित होगा।
इसका मतलब यह नहीं लगाया जा सकता कि सरबजीत दोनो देशों के लिए कोई इतनी बड़ी मजबूरी है। क्योंकि पाकिस्तान की जेलों में अभी न जाने कितने युद्धबंदी हैं जो अपनी रिहाई की प्रतीक्षा में तिल-तिलकर मर रहे हैं। उनके परिवार भारत सरकार से लेकर पाकिस्तान सरकार के सामने गिड़गिड़ा रहे हैं। सरबजीत सिंह के मामले में सरकार इसलिए ज्यादा खड़ी हुई है क्योंकि वह ऐसे राज्य और ऐसी कौम से संबंध रखता है जिसकी कि सभी राजनीतिक दलों को बहुत जरूरत है। सरबजीत को फांसी देने के बाद भारत के भीतर मोहम्मद अफजल सहित उन सभी आतंकवादियों को तुरंत फांसी पर लटकाए जाने का दबाव बढ़ जाएगा जिनको लेकर भारत सरकार अभी शांत है। यही कारण है कि भारत ने सरबजीत के मामले में अपनी सीमित भूमिका प्रकट की है क्योंकि पाकिस्तान की अदालत ने उसे मौत की सजा सुनाई है। अदालत आखिर अदालत होती है चाहे वह हिंदुस्तान की हो या सात समुंदर पार की। इसी प्रकार भारत में भी किसी ऐसे मामले में क्षमादान के लिए संबंधित देश की सीमित भूमिका ही रहेगी।
सरबजीत
की बेटियों ने अपने ‌पिता की रिहाई के बदले आतंकवादियों को छोड़ने की किसी भी शर्त के सामने भारत सरकार से न झुकने की बात कहते हुए कहा पाकिस्‍तान को भी अपनी दृढ़ता का संदेश दे दिया है जिससे अगर भारत से पाकिस्‍तान सरबजीत के बदले कोई शर्त रखता है तो उन्‍हें अपने पापा नहीं चाहिएं। पाकिस्‍तान के सामने यह विकट प्रश्‍न आ गया है कि वह अपने किस फैसले के साथ खड़ा हो क्‍यों‌कि यहां अब किसी के जीवन को बचाने का प्रश्‍न ही समाप्‍त हो गया है।

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