विवेक श्रीवास्तव
नई दिल्ली। माओवादियों के दबाव में नेपाल सरकार की ओर से लिए गए एक निर्णय ने भारत की कानून-व्यवस्था के सामने मुसीबतें और बढ़ा दी हैं। इंडियन सिक्योरिटी प्रेस से कांट्रेक्ट समाप्त कर एक फ्रेंच कंपनी को पासपोर्ट बनाए जाने का जिम्मा सौंपे जाने के बाद से आतंकी गतिविधियों और मादक पदार्थों की तस्करी के काले कारोबार में लिप्त पाकिस्तानी और बांग्लादेशी, नेपाली पासपोर्ट के सहारे भारत में धड़ल्ले से प्रवेश कर रहे हैं। कुछ दिन पूर्व नेपाल के पूर्वी बार्डर पर नेपाली पासपोर्ट के साथ हुई एक पाकिस्तानी आतंकवादी की गिरफ्तारी के बाद भारत सरकार गंभीर हो गई है। काठमांडू स्थित भारतीय दूतावास ने इसके बाद नेपाल सरकार को पत्र लिखकर नए पासपोर्ट जारी करने पर रोक लगाने के साथ ही फ्रेंच कंपनी को नेपाली पासपोर्ट बनाने के दिए गए कांट्रेक्ट पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है। भारत-नेपाल सीमा पर तैनात सुरक्षा बलों को भी इस संबंध में सतर्क किया गया है।
मिली जानकारी के अनुसार कुछ दिन पूर्व पूर्वी नेपाल के झापा जिले में काकरभिट्टा चेक पोस्ट के रास्ते भारत में घुसने का प्रयास कर रहे एक व्यक्ति को पकड़ा गया। पूछताछ करने पर उसने नेपाली पासपोर्ट दिखाया लेकिन सुरक्षा कर्मियों को आश्चर्य तब हुआ जब वह एक भी नेपाली शब्द नहीं बोल सका। इस व्यक्ति ने जो पासपोर्ट पेश किया था वह नेपाल के संसारी जिले से जारी हुआ था। सुरक्षा कर्मियों ने इस संदिग्ध व्यक्ति को संसारी जनपद की पुलिस के हवाले कर दिया। तफ्तीश के दौरान खुलासा हुआ कि वह एक पाकिस्तानी नागरिक है और उसका नाम अशरफ अली है, जोकि अपने देश में आतंकवादी गतिविधियों के संबंध में वांछित चल रहा है। उसकी गिरफ्तारी के लिए इंटरपोल ने भी अलर्ट जारी कर रखा है। वह फर्जी तौर पर नेपाली नागरिकता हासिल कर नेपाल के अलग-अलग जिलों में रह रहा था।
तफ्तीश में जुटी पुलिस ने बीते सोमवार को नेपाल में नगर निगम के एक अधिकारी को गिरफ्तार किया जिसने अशरफ अली का पासपोर्ट स्वीकृत किया था। यह अधिकारी भारत से सटे नेपाल के इनरुआ, दुहाबी और विराटनगर में रह चुका है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 1950 में भारत-नेपाल शांति समझौते के तहत नेपाल सरकार ने इंडियन सिक्योरिटी प्रेस को नेपाली पासपोर्ट बनाकर सप्लाई करने का कांट्रेक्ट दिया था। समझौते के तहत भारत, नेपाली नागरिकों को कई प्रकार की सुविधाएं भी प्रदान करता था जिसके तहत नेपाली पासपोर्ट के जरिए नेपाली नागरिक भारत में कहीं भी जमीन खरीद सकता था, घर बना सकता था, व्यापार कर सकता था और नौकरी भी कर सकता था। लेकिन तीन माह पूर्व माओवादियों के दबाव में नेपाल सरकार ने भारत के साथ हुए इस समझौते को तोड़ते हुए नेपाली पासपोर्ट बनाने का जिम्मा एक फ्रेंच कंपनी को सौंप दिया।
बीती 12 जुलाई को काठमांडू स्थित भारतीय दूतावास की ओर से नेपाल सरकार के विदेश मंत्रालय को जो पत्र लिखा गया है उसमें आग्रह किया गया है कि वह अपने इस निर्णय के बारे में एक बार फिर से विचार कर ले। भारतीय दूतावास की ओर से आग्रह किया गया है कि सुरक्षा कारणों और आतंकवादी गतिविधियों के चलते वह पासपोर्ट जारी करना बंद कर दे। भारतीय दूतावास ने उस मशीन की गुणवत्ता पर भी सवाल उठाया है जिससे फ्रेंच कंपनी पासपोर्ट तैयार कर रही है।
जून में भी भारत नेपाल सीमा पर नेपाल पुलिस ने एक अंतर्राज्यीय शातिर अपराधी को गिरफ्तार किया था जिसकी भारत और बांग्लादेश को तलाश थी। सुब्रत ब्यान नामक यह अपराधी हथियारों की तस्करी के मामले में भारत के पश्चिम बंगाल में पिछले साल गिरफ्तार हुआ था, जमानत पर छूटने के बाद वह नेपाल भाग गया था। उसके पास से भी नेपाली पासपोर्ट बरामद हुआ था। सुब्रत इस समय पूर्वी नेपाल की बहादुरपुर जेल में बंद है। पिछले महीने ही एक अन्य वांछित अपराधी को नेपाल पुलिस ने गिरफ्तार किया था जिसने नेपाल में अपना घर भी बनवा रखा था। अमरीकी मूल के ली स्मिथ नामक इस अपराधी को सन् फ्रांसिस्को इंटरनेशनल एयरपोर्ट से फ्लाइट पकड़ने के बाद काठमांडू एयरपोर्ट पर उतरते समय गिरफ्तार किया गया था।
पिछले तेरह साल से नेपाल में चल रही राजनैतिक अस्थिरता और ब्यूरोक्रेसी में व्याप्त भ्रष्टाचार की वजह से नेपाल, इंटरनेशनल अपराधियों की शरणगाह बन चुका है और इसका खामियाजा भारत को भुगतना पड़ रहा है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण 1988 में गैंगवार के चलते मारा गया मिर्जा दिलशाद बेग है। पाकिस्तानी मूल के मिर्जा दिलशाद बेग को नेपाल में खुला संरक्षण प्राप्त था और वह नेपाल में रहकर खुलेआम भारत के खिलाफ आपराधिक गतिविधियों को संचालित करता था।