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पर्सनल ला बोर्ड को धारा 87 वक्‍फ़ एक्ट नामंजूर

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नई दिल्ली। आल इन्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना सैय्यद निज़ामुद्दीन ने कहा है कि वक्‍फ़ एक्ट संशोधन बिल 2010 जो लोकसभा में पिछले अधिवेशन के अन्तिम दिन 7 मई 2010 को पास कराया गया है, देश के मुसलमानों की आशा और मांग के अनुसार नहीं है।
मौलाना सैय्यद निज़ामुद्दीन ने एक वक्तव्य जारी करके कहा है इस सम्बन्ध में आल इन्डिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड की कार्यकारिणी समिति की 6 जून 2010 को आयोजित बैठक में उपरोक्त वक्‍फ़ संशोधन बिल को जल्दबाज़ी में पास किये जाने और बोर्ड की मांगों को इसमें सम्मिलित न किये जाने पर तशवीश व्यक्त करते हुए भारत सरकार से मांग की गयी थी कि इस बिल में इन सभी संशोधनों को सम्मिलित किया जाये जिनके सम्बन्ध में पर्सनल ला बोर्ड की ओर से पहले भी मेमोरंडम दिये जा चुके हैं। इन मांगों को दोबारा अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री सलमान खुर्शीद को फिर एक बार प्रस्तुत कर दिया गया है और बोर्ड के प्रतिनिधि मण्डल ने जुलाई के प्रथम सप्ताह में अल्पसंख्यक मंत्री से भेंट करके बोर्ड की मांगों से उनको फिर अवगत करा दिया है।
बोर्ड की मांगों में वक्‍फ़ एक्ट 1995 की विभिन्न धाराओं में संशोधन की मांग की गई है। बोर्ड ने अनेक बार भारत सरकार से मांग की है और इस बार फिर इस मांग को दोहराया है कि वक्‍फ़ एक्ट 1995 की धारा 87 को समाप्त कर दिया जाये क्योंकि इस धारा के रहते हुए वक्‍फ़ सम्पत्ति की रक्षा के लिये कोई मुकदमा उस समय तक दायर नहीं किया जा सकता, न ही पहले से चल रहे मुकदमे जारी रह सकते हैं, जब तक सम्बन्धित वक्‍फ़ किसी वक्‍फ़ बोर्ड में दर्ज न हों। इस प्रकार से देश के विभिन्न प्रदेशों में वर्तमान औकाफ़ की सम्पत्तियां इससे प्रभावित होंगी, क्योंकि दूरदराज़ के क्षेत्रों और विशेषकर देहातों और कस्बों में मस्जिदों एवं कब्रिस्तान इत्यादि का कार्य स्थानीय मुसलमान अपने स्रोतों से करते हैं और उनसे आशा नहीं की जा सकती कि वह दूर दराज़ की यात्रा करके एवं हज़ारों रूपए व्यय करके प्रदेशों के केन्द्रीय स्थान पर स्थित वक्‍फ़ बोर्ड के कार्यालय में आकर ऐसी मस्जिदों एवं कब्रिस्तानों आदि को बोर्ड में दर्ज करायें।
वक्तव्य में कहा गया है कि प्रदेशीय सरकारें जब औक़ाफ़ का सर्वे करवाती हैं तो सर्वे से सम्बन्धित कर्मचारी भी इन गांव तथा कस्बों में स्थित ऐसी मस्जिद एवं कब्रिस्तानों का सर्वे करने नहीं जाते हैं जैसा कि पूर्व में देखा जा चुका है। इसलिए धारा 87 वक्‍फ़ एक्ट को तुरन्त समाप्त कर दिया जाना चाहिए एवं वक्‍फ़ एक्ट सन् 1995 में पर्सनल ला बोर्ड की मांगों के अनुसार विभिन्न संशोधन करके वक्‍फ़ बिल को राज्य सभा में प्रस्तुत किया जाना चाहिए।

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