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लखनऊ। मुख्यमंत्री मायावती राज्य की कारागार मंत्री भी हैं लेकिन वे प्रदेश की जेलों से कैदियों के भागने, जेलों में अराजकता, आपत्तिजनक वस्तुएं भीतर जाने की घटनाओं को रोकने में नाकाम हो रही हैं। कारागार विभाग की स्थिति काफी दयनीय है जिसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इन 50 दिन में अब तक 21 कैदी फरार हो चुके हैं। मेरठ जिला जेल में नौ खतरनाक अपराधियों की फरारी की घटना फिर हो गई है जिससे पता चलता है कि मायावती अपना नियंत्रण खोती ही जा रही हैं। पैतालीस दिन के अंतराल में 21 कैदियों के फरार होने की घटनाओं ने राज्य के जेल एवं गृह विभाग की कार्यप्रणाली पर बड़ा सवालिया निशान लगा दिया है। मेरठ जेल से एक रात में सात कैदियों और दो विचाराधीन बंदियों की एक साथ हुई फरारी ने जैसे पिछले सारे रिकार्ड तोड़ दिए हैं। इससे पहले लखनऊ जिला जेल से वर्ष-2002 में एक रात में सात बंदी फरार हुए थे।
कारागार विभाग का यह हाल तब है जब हाल ही में प्रमुख सचिव गृह फतेह बहादुर ने ऐसी घटनाओं पर जेल अधिकारियों को फटकार लगाई थी। दावा किया गया था कि प्रदेश में जेलों की व्यवस्था में सुधार किया जाएगा और मायावती ने इस विभाग की जिम्मेदारी खुद ली थी और अप्रैल 2007 में उन्हीं के निर्देश पर इस विभाग की कमान आईपीएस अधिकारियों को सौंपी गई थी, तब शासन के इस निर्णय का आईएएस संवर्ग के अधिकारियों ने विरोध भी किया था। विभाग को ठीक करने के लिए जो-जो आईपीएस अधिकारी आईजी जेल बनाए गए उनमें कथित ईमानदार सुलखान सिंह के समय में सबसे ज्यादा जेल व्यवस्था का बंटाधार हुआ। ये महाशय मायावती का विश्वासपात्र बनने और प्रमुख सचिव गृह फतेह बहादुर की चापलूसी एवं अपने लिए तमगे इक्कठ्ठे करने में ही लगे रहे और एक दिन उनके खराब जेल प्रबंधन का भंडाफोड़ हो ही गया जिसके बाद इनको हटाकर दूसरे को आईजी जेल की कमान दी गई। सुलखान के समय में जेलों में तेजी से सक्रिय हुए एक रैकेट का ही मेरठ की घटना नतीजा मानी जाती है।
मुख्यमंत्री के पंचम तल पर लगभग रोज ही आईजी जेल देखे जा सकते हैं। कहने वाले तो यहां तक कहते हैं कि जेलों में बंद राजनीतिक विरोधियों को बेड़ियों में जकड़ने के निर्देश प्राप्त कराने के लिए उनकी वहां ज्यादा जरूरत रहती है। जिस समय आईपीएस संवर्ग को जेलों की कमान सौंपने की बात आई थी जब इसका प्रशासनिक वर्ग में बहुत ही विरोध हुआ था लेकिन मायावती की जिद के सामने इस प्रस्ताव को माना गया। शासन के आला अफसरों ने तो इस मामले को कुछ समय तक ठंडे बस्ते में डाले भी रखा। इस नई व्यवस्था के तहत विभाग के विभागाध्यक्ष का पद आईएएस संवर्ग के अधिकारी को और विभाग की कमान आईपीएस को सौंपे जाने का निर्णय लिया गया। महानिदेशक कारागार के पद को सचिव के अधीन कर दिया गया और कारागार मुख्यालय की जिम्मेदारी आईपीएस अधिकारी को सौंप दी गई। जेलों में आए दिन हो रही घटनाओं ने जेल में सुधार की बात को एक किनारे कर दिया। जेल अधीक्षक सीधे पंचम तल से जुड़ गए और समानांतर व्यवस्था में राज्य की जेलें अराजकता और अवैध वसूली का अड्डा बन गईं। बीस जून को मथुरा जिला जेल से चार खूंखार अपराधियों की फरारी की घटना से हड़कम्प मच गया। एक साथ चार बंदियों की फरारी से हरकत में आए शासन ने तुरंत आईजी जेल सुलखान सिंह को हटाकर इनके स्थान पर एडीजी वीके गुप्ता को तैनात कर दिया। प्रमुख सचिव गृह ने 28 जून को जेल अफसरों के साथ बैठक की और हिदायत दी कि जेलों में आपराधिक एवं फरारी की घटनाओं को रोका जाए, मगर स्थिति जस की तस रही। सोमवार की रात मेरठ से जेल से नौ कैदी फिर भाग गए। इस डेढ़ माह के अंतराल में सिद्धार्थनगर से तीन, आजमगढ़ एवं कानपुर जेल से उपचार कराने अस्पताल गए एक-एक बंदी के साथ भदोही और राजधानी की आदर्श कारागार से एक-एक बंदी भाग चुके हैं।
मेरठ जेल में एक साथ नौ कैदियों की फरारी बीते दो दशक में जेलों में फरारी की सबसे बड़ी घटना है। इससे पहले वर्ष-2002 में राजधानी की जिला जेल की बच्चा बैरक से सात विचाराधीन बंदी मेरठ की तर्ज पर पाइप के सहारे फरार हो चुके हैं। यह हकीकत है कि मुख्यमंत्री के नियंत्रण में चल रहे कारागार विभाग की जेलों की व्यवस्था में सुधार नहीं दिखाई पड़ रहा है।