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लंदन। 'ये बहुत सुकून देने वाली बात है कि कथा यूके और एशियन कम्यूनिटी आर्ट्स मिल कर यहां यूके में हिंदी और उर्दू के बीच भाषाई पुल बनाने की पुरज़ोर कोशिश कर रहे हैं लेकिन हमें इस बात को भी देखना होगा कि हमारा आज का पाठक इन कहानियों की विषय-वस्तु कथानक और लोकेल से जुड़ सके और कहानियों से जुड़ाव महसूस कर सके।' ये विचार कथा यूके और एशियन कम्यूनिटी आर्ट्स की प्रकाशित पुस्तक 'ब्रिटेन की उर्दू क़लम' का नेहरू सेंटर में लोकार्पण करते हुए भारतीय उच्चायोग में मंत्री (समन्वय) आसिफ़ इब्राहिम ने व्यक्त किये।
हिंदी के प्रसिद्ध कहानीकार तेजेन्द्र शर्मा एवं ज़कीया ज़ुबैरी द्वारा संपादित 'ब्रिटेन की उर्दू क़लम' में ब्रिटेन में बसे 8 उर्दू कहानीकारों की 16 कहानियों का हिंदी अनुवाद प्रकाशित किया गया है। इस पुस्तक की लम्बी भूमिका कथाकार-पत्रकार एवं कथा यूके की उपाध्यक्षा अचला शर्मा ने लिखी है। इस मौक़े पर प्रोफ़ेसर अमीन मुग़ल ने कहा कि बेशक नेचर के हिसाब से हिंदी और उर्दू बहुत नज़दीकी भाषाएं हैं और दोनों भाषाओं के बीच आदान प्रदान की लम्बी परम्परा है, कथा यूके और एशियन कम्यूनिटी आर्ट्स की इस बात के लिए तारीफ़ की जानी चाहिये कि वे अपने सीमित साधनों से इतने महत्वपूर्ण काम को अंजाम दे रहे हैं।
भारत से विशेष रूप से पधारे कहानीकार-संपादक-प्रकाशक हरि भटनागर ने अपने लम्बे लिखित लेख से श्रोताओं का परिचय करवाया। उनके अनुसार संकलन की कहानियां ग़म की कथा को रो-पीट कर, चिल्ला चोट कर के नहीं बल्कि बहुत ही ख़ामोश ढंग से व्यक्त करती हैं। कथा का कलात्मक वैभव कहीं भी क्षतिग्रस्त नहीं होता और सबसे बड़ी बात यह कि उस निज़ाम का चेहरा बेनक़ाब होता है जो भेदभाव की राजनीति कर के लोगों में फूट डालता है और उन्हें कहीं का नहीं छोड़ता।
कथा यूके के महासचिव, कथाकार ओर किताब के संपादक द्वय में से एक तेजेन्द्र शर्मा का कहना था कि हमें पहले समस्या को स्वीकार करना होगा। अब समय आ गया है कि हम मान लें कि हिन्दी और उर्दू दो भाषाएं हैं और हमें उनके बीच की दूरी को पाटना है। उन्होंने इस किताब और इस तरह की दूसरी किताबें प्रकाशित किये जाने की ज़रूरत बताई और कहा कि उनकी कोशिश रहेगी कि कहानी के अलावा, कविता, ग़ज़ल और इतर साहित्य का भी दोनों भाषाओं में अनुवाद कराते रहें।
नेहरू सेंटर की निदेशक मोनिका मोहता ने इस अवसर पर नेहरू सेंटर और कथा यूके के लम्बे समय से चले आ रहे सार्थक रिश्तों की बात कही और उम्मीद की कि ये सिलसिला आगे भी चलता रहेगा। भारत से आए पत्रकार अजित राय ने कहा कि इस पुस्तक का प्रकाशित होना एक ऐतिहासिक घटना है क्योंकि पहली बार ब्रिटेन के आठ उर्दू लेखकों की कहानियां हिन्दी में एक साथ छपी हैं। हिन्दी और उर्दू एक भाषा नहीं हैं, हम आज़ादी के बाद से ही इनके एक होने का भ्रम पाले रहे और दूरियां बढ़ती गईं।
एशियन कम्यूनिटी आर्ट्स की अध्यक्ष ज़कीया जुबैरी ने उपस्थित लोगों के प्रति आभार मानते हुए कहा कि मेरा सपना है कि हिन्दी और उर्दू की गंगा जमुनी तहज़ीब, शब्दों की मिठास, अपनापन, ख़ुलूस सब हमारे साहित्य और ज़िन्दगी का हिस्सा बन जाएं। हमारे रिश्ते राजनीति से संचालित न हों। हमारे रिश्ते साहित्य, कला और एक दूसरे पर विश्वास से पैदा हों। यह न तो पहला प्रयास है और न ही आख़री। हम इस मुहिम को जारी रखेंगे। हिन्दी उर्दू कहानियों की निशस्तें रखी जाएंगी, और अगला संकलन शायद उन कहानियों का हो जो कि उन नशिस्तों में पढ़ी जाएं। इस अवसर पर कथाकार सूरज प्रकाश (भारतीय प्रतिनिधि कथा यूके) की नवीनतम कृति 'दाढ़ी में तिनका' का अनूठा विमोचन भी हुआ जब एक युवा पाठिका हेमा कंसारा ने मंच पर आकर उनकी कृति का लोकार्पण किया। सूरज प्रकाश ने अपने लम्बे लेखकीय सन्नाटे के बारे में बात करते हुए लेखक की न लिख पाने की छटपटाहट का विस्तार से ज़िक्र किया। सूरज प्रकाश पिछले बारह वर्षों से कथा यूके से जुड़े हैं।
कार्यक्रम में अन्य लोगों के अतिरिक्त उर्दू कहानीकार जितेन्द्र बिल्लु, सफ़िया सिद्दीक़ि, मोहसिना जीलानी, बानो अरशद एवं फ़हीम अख़्तर, फ़िल्मकार यावर अब्बास, बीबीसी हिन्दी सेवा के पूर्व अध्यक्ष कैलाश बुधवार, हिन्दी कथाकार दिव्या माथुर, उषा राजे सक्सेना, कादम्बरी मेहरा एवं महेन्द्र दवेसर, कवि निखिल कौशिक, शिक्षाविद वेद मोहला, नाटककार इस्माइल चुनारा, अयूब औलिया, हिन्दी एवं संस्कृति अधिकारी आनंद कुमार, भारत से आए फ़िल्म आलोचक विनोद भारद्वाज, लदंन और आसपास के शहरों के हिंदी और उर्दू के रचनाकार बड़ी संख्या में मौजूद थे।