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नई दिल्ली। डलास की टैक्सास यूनिवर्सिटी में पढ़ते समय, 20 साल के युवा, नवीन जिंदल ने अपने अध्ययन के दौरान अमेरिका के लोगों को अपने झंडे पर गर्व से इठलाते हुए देखा था। उनका घर हो या पहनने के कपड़े सभी पर उनके झंडे पर बने तारे और पट्टियां नजर आती थीं और अमेरिका के लोगों का गर्व अपने देश में उनके राष्ट्रीय झंडे के रूप में स्वतः प्रकट होता है।
इस प्रवृति को देखकर नवीन जिंदल ने सोचा कि ऐसा हमारे देश में क्यों नहीं हो सकता है? उच्चतम न्यायालय ने 2004 में उनको इसका जवाब दिया, जब अपने ऐतिहासिक फैसले में उसने व्यवस्था दी कि आदर और गरिमा के साथ स्वतंत्र रूप से राष्ट्रीय झंडे को फहराना प्रत्येक भारतीय नागरिक का मौलिक अधिकार है। यूएसए के डलास की टैक्सास यूनीवर्सिटी के छात्र जीवन के प्रारंभ में ही राष्ट्रीय झंडे के लिए नवीन जिंदल के मन में बेहद श्रद्धा का भाव है, वहां पर वे छात्रों की अधिसभा के अध्यक्ष के रूप में अपने राष्ट्रीय झंडे का प्रदर्शन बड़े ही गर्व के साथ करते थे।
यूएस में अपनी उच्च शिक्षा को पूरी करने और 1992 में भारत वापस आने के बाद भी नवीन जिंदल ने छत्तीसगढ़ (उस समय का मध्य प्रदेश) में रायगढ़ की अपनी फैक्ट्री के परिसर में भारत के राष्ट्रीय ध्वज को सम्मानजनक तरीके से फहराकर अपने कर्तव्य और सम्मान को प्रदर्शित करना जारी रखा। उस समय, बिलासपुर के तत्कालीन आयुक्त ने इस पर यह कह कर आपत्ति जताई थी कि भारत के ध्वज संहिता के अनुसार, किसी भी गैर-सरकारी नागरिक को निश्चित दिनों को छोड़कर भारतीय ध्वज को फहराने की अनुमति नहीं है।
नवीन जिंदल ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत, सरकारी पदाधिकारी द्वारा उन्हें राष्ट्रीय ध्वज को फहराने से मना करने की कार्रवाई के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका प्रस्तुत की। किसी गैर-सरकारी व्यक्ति के झंडा फहराने पर रोक लगाने का कोई कानून नहीं था और ऐसा करने से रोकना संविधान के अनुच्छेद 19 (1) के तहत प्रदत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन था, यह अनुच्छेद सभी भारतीय नागरिकों को बोलने और अभिव्यक्ति की आज़ादी प्रदान करता है। केन्द्रीय सरकार ने इसकी व्याख्या दी थी लेकिन दिल्ली उच्च न्यायालय की खंड पीठ ने 22 सितंबर, 1995 को नवीन जिंदल की रिट याचिका को अनुमति दे दी थी। यह संघर्ष लगभग एक दशक से भी अधिक समय तक चलता रहा और अन्ततः 23 जनवरी, 2004 को उच्चतम न्यायालय ने नवीन जिंदल और भारत के नागरिकों के पक्ष में एक ऐतिहासिक निर्णय दिया।
इस प्रकार एक दशक पुरानी कानूनी लड़ाई में जीत हासिल हुई और भारत के नागरिकों को भारतीय तिरंगे का प्रदर्शन कर अपनी राष्ट्रवादी भावनाओं को अभिव्यक्त करने की आजादी मिल गई। यह जीत सभी भारतीयों और स्वतंत्र भारत की थी। आज प्रत्येक भारतीय नागरिक नवीन जिंदल के निरंतर और अथक प्रयासों के फलस्वरूप उचित सम्मान के साथ अपना ध्वज फहरा सकता है।
जिंदल का दूसरा अभियान भी सफल रहा था जब दिसंबर, 2009 में गृह मंत्रालय ने स्मारकों/विशाल खंभों पर रात्रि में पर्याप्त रोशनी के साथ ध्वज को फहराने के उनके प्रस्ताव पर अपनी सहमति जताई थी। इसके बाद, उन्होंने अपने अभियान को आगे बढ़ाया और फरवरी, 2010 में लोकसभा अध्यक्ष के माध्यम से भारतीय संसद की नियम समिति से संसद सदस्यों को सदन में बैठने के दौरान लेपल पिन से राष्ट्रीय ध्वज को प्रदर्शित करने की अनुमति प्राप्त की।
नवीन जिंदल का अगला कदम तिरंगे को देशभक्ति के अगले मुकाम पर ले जाना था। उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज को 100 फीट से अधिक ऊंचे खंभे पर फहराना शुरू किया और उन्होंने हरियाणा प्रदेश के सोनीपत जिले में सबसे ऊंचे खंभे, जो कि 207 फीट ऊंचा था, पर तिरंगा फहराया। संयोग से यह विश्व में कहीं भी भारतीय ध्वज को सबसे अधिक ऊंचाई पर फहराने की घटना है।
उच्चतम न्यायालय के निर्णय से प्रेरित होकर नवीन जिंदल ने 'फ्लैग फाउंडेशन ऑफ इंडिया' की स्थापना की थी जिसके माध्यम से वे प्रत्येक भारतीय को तिरंगे से अपने आप को जोड़ना चाहते हैं और गर्व की महान अनुभूति के साथ तिरंगे के प्रदर्शन को अधिक से अधिक भारतीयों में लोकप्रिय बनाना चाहते हैं। फ्लैग फाउंडेशन आज के युवा वर्ग को इस तिरंगे से जोड़ने के लिए पूरी निष्ठा से प्रयास कर रहा है ताकि आजादी के लिए हमारे संघर्ष का यह शक्ति का प्रतीक बन सके और उन करोड़ों भारतीयों के लिए प्ररेणा के महान स्रोत के रूप में सेवा कर सकें जो पूरे विश्व में अपने-अपने कार्यक्षेत्र में देश का नाम रोशन कर रहे हैं।
फ्लैग फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने हरियाणा में झंडा फहराने के लिए पांच विशाल खंभों की स्थापना पहले ही कर दी है। इनका वज़न 12.5 टन है और इनको इस प्रकार से बनाया गया है कि इन पर लगभग 325 वर्ग मीटर के आकार वाले झंडे को फहराया जा सकता है। झंडे को सभी मौसमों में सुरक्षित रहने वाले 'डेनियर पॉलिस्टर' नामक विशेष सामग्री से तैयार किया जाता है जो तूफान हो या कोई अन्य मौसम सभी में पूरी तरह से सुरक्षित रहता है।
जब हम राष्ट्रगान की धुन के साथ हवा में अठखेलियां करते राष्ट्रीय ध्वज को देखते हैं तो हम रोमांचित हो उठते हैं। यह ध्वज हमारे दिमाग और दिल पर जो अमिट छाप छोड़ता है वह अतुलनीय है। हमारी देशभक्ति उस समय ऊंचाइयों को छूने लगती है जब हम विजेन्द्र सिंह या अभिनव बिन्द्रा को उनके पदक को लेने के लिए ओलंपिक के मंच पर ऊपर चढ़ते समय भारतीय तिरंगे का फहराया जाना देखते हैं। राष्ट्रीय ध्वज, चैंपियन और सैनिक दोनों को आनंद से झूमने पर मजबूर कर देता है। आज जब भारत आर्थिक महाशक्ति बनने और वैश्विक परिदृश्य में महत्वपूण भूमिका निभाने के लिए अपने विकास पथ पर निरंतर आगे बढ़ रहा है तो राष्ट्रीय ध्वज को स्वच्छन्दता से लहराते देखकर और भी अच्छा लगता है।
स्वतंत्रता दिवस के पावन मौके पर, आओ अपने मौलिक अधिकारों का सदुपयोग करें और अपने राष्ट्रीय ध्वज को इतनी ऊंचाई पर फहराएं जितनी ऊंचाई पर हम इसे लहराता देखना चाहते हैं। अपने देश के महान प्रतीक के माध्यम से गर्व के साथ अपने अनुराग को व्यक्त करने का समय आ गया है और जैसा कि 14 अगस्त, 1947 को जवाहर लाल नेहरू ने भी कहा था कि 'विकास के भावी कार्यक्रमों की रूपरेखा तैयार करके और अपने अनूठे देश के लिए राष्ट्रवाद की भावना को जगा कर हमें अपनी नियति को पहले से ही निश्चित कर लेना चाहिए।'
नवीन जिंदल का कहना है 'राष्ट्रीय ध्वज फहराने से व्यक्ति धर्म, जाति, भाषा और क्षेत्रवाद के संकीर्ण विचारों से ऊपर उठ जाता है और भारतीय होने की गर्व की भावना से ओत-प्रोत हो जाता है। हमारा तिरंगा प्रत्येक भारतीय के धर्म, भाषा, संस्कृति और क्षेत्रीयता का प्रतिनिधित्व करता है और यह सच है कि यह 'विविधता में एकता' का महान प्रतीक है।' भारतीयों के लिए तिरंगा फहराने का अधिकार जीतना जनमानस के लिए एक बड़ी उपलब्धी है। सोनीपत (हरियाणा) में विश्व का सबसे ऊंचा तिरंगा फहरा रहा है, जो 207 फीट ऊंचा है, कुरूक्षेत्र, कैथल, लडवा और हिसार में 206 फीट ऊंचा झंडा, दिल्ली और गुड़गांव, में 100 फीट ऊंचा झंडा, रायगढ़ छत्तीसगढ़ में 100 फीट ऊंचा झंडा, अंगुल ओडीसा में 206 फीट ऊंचा झंडा। यह तो अभी केवल ध्वजारोहण यात्रा की शुरूआत भर ही है। झंडा ऊंचा रहे हमारा!