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पुरस्कारों से नवाज़े गए साहित्यकार

द्वितीय प्रमोद वर्मा स्मृति समारोह-2010

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साहित्यकार

रायपुर।प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान ने हिंदी आलोचना में उल्लेखनीय योगदान के लिए 2010 का प्रमोद वर्मा सम्मान प्रख्यात कथा-आलोचक मधुरेश और युवा आलोचक ज्योतिष जोशी को प्रदान किया। इसके अलावा प्रमोद वर्मा रचना सम्मान से वरिष्ठ ललित निबंधकार डॉ शोभाकांत झा को अंलकृत किया गया और वाणी परमार को एक वर्ष की शोधवृत्ति प्रदान की गई। प्रेमचंद जयंती के अवसर पर आयोजित समारोह में प्रतिष्ठित रचनाकार-आलोचक द्वय डॉ धनंजय वर्मा और नंदकिशोर आचार्य ने क्रमश: 21, 11 और 7 हज़ार रुपये की नगद राशि, स्मृति चिन्ह, अलंकरण पत्र प्रदान कर रचनाकारों का सम्मान किया। इस प्रतिष्ठित सम्मान के चयन समिति के सदस्य थे– केदार नाथ सिंह, विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, विजय बहादुर सिंह, डॉ धनंजय वर्मा और विश्वरंजन। इसके पूर्व यह सम्मान श्रीभगवान सिंह और कृष्ण मोहन को मिल चुका है।
सन् 1965
से आलोचना कर्म में सक्रिय मधुरेश ने कहा कि उनकी सोच साहित्य में सकारात्मकता से है, रचना और आलोचना में ईमानदारी पर बल दिये बग़ैर जो कार्य होता है वह स्थायी नहीं होता। समय उसका नोटिस नहीं लेता। युवा आलोचक जोशी ने कहा कि संस्कृति आलोचना साहित्य तक ही सीमित नहीं होती। रचना की समीक्षा भावप्रक्रिया की उपज है। आलोचना पाठक को मार्ग दिखाती है। आज हम बाज़ारवाद की राजनीतिक समस्या से घिरे हुए हैं, इसीलिए भाषा की गति बुरी हो रही है। मुख्य अतिथि आचार्य ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि साहित्य ज्ञानार्जन है। साहित्य, कला में अनुभूति की अहमियत होती है। साहित्य को जानने के लिए अनुभूति के साथ विचार भी आवश्यक है।
अलंकरण
समारोह में 20 से अधिक किताबों का विमोचन भी विभिन्न विद्वान साहित्यकारों के हाथों संपन्न हुआ जिसमें नई त्रैमासिकी पांडुलिपि, अज्ञेय पर केंद्रित कृति ‘कठिन प्रस्तर में अगिन सुराख’ (विश्वरंजन), शमशेर पर केंद्रित कृति ‘ठंडी धुली सुनहरी धूप’ (विश्वरंजन), ‘शिलाओं पर तराशे मज़मून’ (डॉ धनंजय वर्मा पर एकाग्र), मीडिया- नये दौर, नयी चुनौतियां (संजय द्विवेदी, भोपाल),‘पक्षी-वास’ (अनुवादक-दिनेश माली, उड़ीसा), झरोखा (पंकज त्रिवेदी, अहमदाबाद),विष्णु की पाती– राम के नाम (विष्णु प्रभाकर के पत्र- जयप्रकाश मानस), ‘कहानी जो मैं नहीं लिख पायी’ (कुमुद अधिकारी, नेपाल), डॉ केके झा, बस्तर की 11 किताबें और लघु पत्रिका ‘देशज’ (अरुण शीतांश, आरा) प्रमुख हैं।
अंलकरण
समारोह के पश्चात अज्ञेय और शमशेर की जन्मशताब्दी वर्ष के परिप्रेक्ष्य में 'अज्ञेय की शास्त्रीयता' विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में डॉ कमल कुमार, दिल्ली डॉ आनंदप्रकाश त्रिपाठी-सागर, डॉ देवेन्द्र दीपक-भोपाल, डॉ रति सक्सेना-त्रिवेंन्द्रम, डॉ सुशील त्रिवेदी-रायपुर, बुद्धिनाथ मिश्र-देहरादून, महेन्द्र गगन-भोपाल प्रकाश मिश्र-इलाहाबाद, माताचरण मिश्र-भोपाल,संतोष श्रेयांस-आरा आदि ने अपने आलेखों का पाठ किया। संगोष्ठी के अध्यक्ष मंडल में थे नंदकिशोर आचार्य,  डॉ धंनजय वर्मा और मधुरेश। द्वितीय सत्र केंद्रित था–‘शमशेर का कविता-संसार’ विषय पर। वक्ता थे डॉ रोहिताश्व-गोवा, प्रभुनाथ आजमी-भोपाल, ज्योतिष जोशी-दिल्ली, नरेन्द्र पुंडरीक-बांदा, बक्सर, संतोष श्रीवास्तव-मुंबई, दिवाकर भट्ट-हलद्वानी,  मुकेश वर्मा-भोपाल, कुमार नयन-बक्सर,  डॉ सुधीर सक्सेना-दिल्ली। सत्र को अपनी अध्यक्षीय गरिमा प्रदान की दिविक रमेश, डॉ त्रिभुवन नाथ शुक्ल, डॉ धनंजय वर्मा ने।

अलंकरण समारोह की पूर्व संध्या 30 जुलाई को कविता पाठ से दो दिवसीय राष्ट्रीय समारोह का प्रारंभ हुआ जिसमें देश के प्रतिष्ठित कवि- नंदकिशोर आचार्य, दिविक रमेश,  बुद्धिनाथ मिश्र, श्रीप्रकाश मिश्र, नरेंद्र पुंडरीक, अनिल विभाकर, रति सक्सेना सुधीर सक्सेना अरुण शीतांश, संतोष श्रेयांश, शशांक शेखर, कुमुद अधिकारी(नेपाल), कुमार नयन, जयशंकर बाबु आदि ने अपनी श्रेष्ठ कविताओं का पाठ किया। इसमे भी सत्रों का संचालन क्रमशः अशोक सिंघई, संजय द्विवेदी, मिर्जा मसूद और गिरीश पंकज ने किया। इस अवसर पर टैगोर, शमशेर, अज्ञेय, फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ एवं प्रमोद वर्मा की कविताओं की प्रदर्शनी भी आयोजित की गई। आयोजन में देश एवं राज्य के लगभग 500 साहित्यकारों, लेखकों, पत्रकारों एवं शिक्षाविदों की भागीदारी रही।

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