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लंदन। लन्दन के नेहरू केंद्र में दीपों से जगमगाते सभास्थल में डॉ लक्ष्मीशंकर बाजपेई को अंतर्राष्ट्रीय वातायन कविता सम्मान– 2110 से सम्मानित किया गया। डॉ सत्येन्द्र श्रीवास्तव की अध्यक्षता में हुए इस कार्यक्रम में ब्रिटेन की बैरोनेस श्रीला फ़्लैदर और भारत के वरिष्ठ राजनेता केशरीनाथ त्रिपाठी ने डॉ बाजपेई को सम्मानित किया। इस मौके पर नेहरू केंद्र की निदेशक मोनिका कपिल मोहता ने कहा कि केंद्र की वरिष्ठ कार्यक्रम अधिकारी दिव्या माथुर एक ओर नेहरु केंद्र के कार्यक्रमों के सफल आयोजनों की प्रस्तुति और दूसरी ओर वातायन संस्था के श्रेष्ठ गोष्ठियों का आयोजन कर अत्यंत प्रशंसनीय भूमिका निभा रही हैं।
यूके हिंदी समिति के अध्यक्ष एवं पुरवाई और प्रवासी टुडे के सम्पादक डॉ पद्मेश गुप्त ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए कहा कि वातायन हिंदी एवं अंग्रेज़ी साहित्य के बीच एक महत्वपूर्ण सेतु है, जो हिंदी साहित्य और संस्कृति को अंतर्राष्ट्रीय मंच दे रहा है और इसके लिए दिव्या और वातायन के अन्य सदस्य बधाई के पात्र हैं। कार्यक्रम में शैली विलियम्स ने पावर पॉइंट प्रज़ेंटेशन के माध्यम से वातायन की गतिविधियों एवं उपलब्धियों का परिचय दिया।
बीजा नृत्य संस्था की अनुषा सुब्रमण्यम के निर्देशन में उनकी दो शिष्याओं, रीना और श्वेता ने डॉ बाजपेई के एक गीत, ‘पूछा था रात मैंने ये, पागल चकोर से, पैग़ाम कोई आया है, चंदा की ओर से?’, पर आधारित नृत्य प्रदर्शन बहुत सराहनीय रहा। डॉ बाजपेई की रचनाओं पर आधारित लन्दन के संगीतकार जटानिल बैनर्जी ने अपने संगीत संयोजन से सभागार में बैठे सभी अतिथियों को अचम्भित कर दिया। ब्रिटेन की एक महत्वपूर्ण कवियत्री, इंडिया रस्सेल ने डॉ बाजपेई की रचनाओं का अंग्रेज़ी अनुवाद प्रस्तुत किया।
डॉ बाजपेई के काव्य संसार पर प्रकाश डालते हुए लन्दन के कहानीकार तेजेन्द्र शर्मा ने डॉ बाजपेई को हिंदी ग़ज़ल का एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर बताते हुए कहा कि वह एक सच्चे लेखक एवं कवि हैं। बाथ से पधारे ब्रिटेन के एक नौजवान कवि मोहन राणा ने डॉ बाजपेई के सम्मान में प्रशस्ति पत्र प्रस्तुत किया। डॉ बाजपेई ने अपने उद्गार में हिंदी ग़ज़ल के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं पर प्रकाश डॉलते हुए अपनी कुछ श्रेष्ठ रचनाओं का पाठ किया। ‘अपने ही हाथों में पतवार संभाली जाए, तब तो मुमकिन है, कि ये नाव बचा ली जाए।', ‘याद बरबस आ गई मां, मैंने देखा जब कभी मोमबत्ती को पिघलकर, रोशनी देते हुए।' और खूब नारे उछाले गए, लोग बातों में टाले गए’ जैसे शेरों और ग़ज़लों नें अतिथियों को भावविभोर कर दिया। अध्यक्षीय संबोधन में डॉ सत्येन्द्र श्रीवास्तव ने वातायन की स्थापना एवं लन्दन के साउथ बैंक के साहित्यिक महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने वातायन को साउथ बैंक की ससून लाइब्रेरी से जोड़ते हुए ब्रिटेन में भारतीय साहित्य के सुनहरे भविष्य की कामना की।
ब्रिटेन की यात्रा कर रहे भारत के कविगण गजेन्द्र सोलंकी, महेन्द्र अजनबी, रामेन्द्र मोहन त्रिपाठी, शशि तिवारी के अलावा इस आयोजन में ब्रिटेन के वरिष्ठ लेखक प्रोफ़ेसर श्याम मनोहर पांडे, नरेश भारतीय, उषा राजे सक्सेना, विजय राणा, कैलाश बधवार, प्रकाशक रोज़मरी हडसन, सनराइज़ रेडियो के रवि शर्मा, भारतीय विद्या भवन के डॉ नन्दाकुमारा, फ़िल्म निर्माता संगीता दत्ता, वरिष्ठ कलाकार जेरु रॉय और सू स्नैल, अख़्तर गोल्ड, कृति यू की तितिक्षा शाह सहित अनेक गणमान्य लोग उपस्थित थे। ध्यान रहे कि सन 2003 से वातायन विजेताओं के लन्दन आने का हवाई ख़र्चा भारतीय संस्कृति सम्बन्ध परिषद प्रायोजित करती है।