स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
देहरादून। योजना आयोग राज्यों को केन्द्रीय सहायता देते समय पर्यावरण संरक्षण में किये जा रहे प्रयासों को भी वेटेज देगा। इस दिशा में योजना आयोग ने उत्तराखण्ड को देश में प्रथम स्थान पर रखा है। हिमाचल प्रदेश दूसरे तथा चण्डीगढ़ तीसरे स्थान पर है। इस लिहाज से उत्तराखण्ड अधिक केन्द्रीय सहायता का हकदार बन गया है। मुख्यमंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश से मिल कर पर्यावरण संरक्षण के एवज में ग्रीन बोनस दिये जाने की मांग की। मुख्यमंत्री ने अवगत कराया था कि उत्तराखण्ड आठ राष्ट्रीय पार्को, 12 हजार वन पंचायतों सहित 65 प्रतिशत वन भू-भाग के माध्यम से देश को प्राण वायु प्रदान करता है। इसके लिए उत्तराखण्ड सरकार अपने स्तर से वनों के रख-रखाव का कार्य करती है। इस योगदान के बदले में प्रदेश को सीधे तौर पर कोई लाभ नहीं मिलता है, बल्कि विकास कार्यो में वन अधिनियम की वजह से अड़चन ही पैदा होती है।
राज्य के प्रमुख वन संरक्षक आरबीएस रावत ने योजना आयोग की रिपोर्ट को उत्साहजनक बताते हुए कहाकि इससे प्रदेश में पर्यावरण संरक्षण की दिशा में किये जा रहे प्रयासों को और बल मिलेगा। रावत ने बताया कि पिछले दस वर्षो में उत्तराखण्ड में वन क्षेत्रफल के साथ-साथ वन घनत्व में भी वृद्धि हुई है। उन्होंने बताया कि प्रदेश में वन संरक्षण की दिशा में जन सहभागिता बढ़ाने के प्रयासों के सकारात्मक परिणाम नजर आने लगे हैं। हाल ही में लगभग 20 लाख निःशुल्क पौधों को विभिन्न विभागों के माध्यम से रोपित करने का निर्णय लिया गया है। जलवायु परिवर्तन में उत्तराखण्ड को प्रथम स्थान प्राप्त होने पर रावत ने बताया कि प्रदेश में वनाग्नि की घटनाओं को रोकने के प्रयासो से मीथेन सहित अन्य ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने में मदद मिली है। जल की गुणवत्ता में अपेक्षाकृत कम अंक मिलने पर रावत कहते हैं कि योजना आयोग की रिपोर्ट में सीवरेज जल ट्रीटमेंट को अधिक महत्व दिया गया है जो कि सभी राज्यों के लिए बड़ी चुनौती है। उन्होंने कहा कि इस दिशा मे राज्य सरकार के स्पर्श-गंगा अभियान से आने वाले समय में अच्छी प्रगति होगी।
केन्द्रीय योजना आयोग की रिपोर्ट में पर्यावरण संरक्षण की दिशा में राज्यों एवं केन्द्र शामिल प्रदेशों के प्रयासों को योजना आयोग के अध्ययन में पांच श्रेणियों में बांटा गया है। पहली श्रेणी वन संरक्षण की है जिसमें उत्तराखण्ड शतप्रतिशत के साथ प्रथम स्थान पर है। इसी प्रकार जलवायु परिवर्तन की दूसरी श्रेणी में उत्तराखण्ड शतप्रतिशत अंक के साथ प्रथम स्थान पर है। एबिएंट एअर क्वालिटी सूचकांक (व्यापक वायु गुणवत्ता सूचक) की श्रेणी में उत्तराखण्ड 0.8486 अंको के साथ 15वें स्थान पर है जबकि इस श्रेणी में हिमाचल प्रदेश 0.869 अंक के साथ 14वें स्थान पर है। गोवा, केरल, मिजोरम और पांण्डिचेरी संयुक्त रूप से प्रथम स्थान पर है। जल गुणवत्ता की चौथी श्रेणी में उत्तराखण्ड 0.478 अंक के साथ 28वें स्थान पर है। कूड़ा प्रबंधन में राज्य 0.823 अंकों के साथ 9वें स्थान पर है। कुल मिलाकर उत्तराखंड राज्य 0.8086 अंकों के साथ देश में प्रथम स्थान पर है। वायु गुणवत्ता सूचकों में सल्फर डाइ ऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, आरएसपीएम आदि को ध्यान में रखा गया है। जल गुणवत्ता में सीवरेज जल डिस्पोजल नदियों में ऑक्सीजन तथा मल की उपस्थिति आदि मानक रखे गये हैं।