डॉ मलय पानेरी
उदयपुर। प्रसिद्ध जन नाट्यकार शिवराम के निधन पर एक श्रद्धांजलि सभा में विभिन्न विद्वानों ने विचार प्रकट करते हुए कहा कि शिवराम सचमुच एक क्रांतिधर्मी नाटककार थे। उनके नाटक लोकप्रियता की कसौटी पर भी खरे उतरे और श्रेष्ठता के सभी मापदण्ड भी पूरे करते हैं।वरिष्ठ कवि और चिन्तक नन्द चतुर्वेदी ने शिवराम के साथ विभिन्न अवसरों पर अपनी मुलाकातों को याद करते हुए कहा कि शिवराम ने नाटकों के नये स्वरूप को विकसित किया। उनका सदैव ही यह प्रयास रहा कि नाटक दर्शकों के साथ-साथ आम प्रेक्षक वर्ग तक भी पहुंचे। इस दृष्टि से उनके नाटक पूर्ण सफल रहे हैं। शिवराम ने लुप्त होती जन नाट्य शैली को पुनः विकसित किया था। उनका मुख्य उद्देश्य नाटकों को जनप्रिय बनाये रखने का था, इसीलिए उनके नाटक विभिन्न आस्वादों से युक्त रहते थे। नन्द चतुर्वेदी ने उनके 'जनता पागल हो गई है', 'पुनर्नव', 'गटक चूरमा' नाटकों का जिक्र करते हुए कहा कि ये नाटक बहुत लोकप्रिय रहे। शिवराम के कवि कर्म को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि उनकी कविताएं भी एक विनम्र और शालीन कवि का आभास कराने के साथ व्यवस्था में बदलाव की बेचैनी दर्शाती है।प्रसिद्ध आलोचक प्रोफेसर नवल किशोर ने कहा कि शिवराम सच्चे मायने में एक सफल नाटककार होने के साथ-साथ अच्छे रंगकर्मी थे। रंगकर्म के साथ-साथ उनका नाट्य सृजन अनवरत चलता रहा। इनके नाटक उत्तरोत्तर नवप्रयोग को सार्थक करते रहे। प्रोफेसर नवलकिशोर का कहना था कि शिवराम ने इस प्रदर्शनकारी विधा का जनता के पक्ष में सदुपयोग किया। उन्होंने नाट्य साहित्य को जनसामान्य तक पहुंचाने का श्रेयस्कर कार्य किया। श्रमजीवी महाविद्यालय में हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ मलय पानेरी ने शिवराम के विभिन्न नाटकों की चर्चा करते हुए कहा कि उनके नाटक नाट्य रूढ़ियों को तोड़ने वाले थे जिनका मूल उद्देश्य जन-जन तक पहुंचना था। इस दृष्टि से उन्होंने नाटकों के साथ कोई समझौता नहीं किया चाहे तात्विक दृष्टि से कोई कमजोरी ही क्यों न रह गई हो। शिवराम के नाटक आम प्रेक्षक के नाटक सिर्फ इसलिए बन सके कि उनमें सार्थक रंगकर्म हमेशा उपस्थित रहा है। हिन्दू कालेज, नई दिल्ली के हिंदी सहायक आचार्य डॉ पल्लव ने शिवराम के कृतित्व को वर्तमान सन्दर्भों में जोखिम भरा बताया। उन्होंने कहा कि शिवराम ने लेखकीय ग्लैमर की परवाह किये बिना साहित्य और विचारधारा के संबंधों को फिर बहस के केंद्र में ला दिया।जन संस्कृति मंच के राज्य संयोजक हिमांशु पंड्या ने शिवराम की संगठन क्षमता को प्रेरणादायक बताते हुए कहा कि वे नयी सांस्कृतिक हलचल में सफल रहे। लोक कलाविद डॉ महेंद्र भानावत ने कहा कि नाटकों को लोक से जोड़े रखना वाकई मुश्किल है और शिवराम ने अपने नाटकों के साथ हमेशा लोक-चिन्ता को सर्वोपरि रखा। उनकी यही खासियत उन्हें अन्य रचनाकारों से पृथक पहचान देती है। श्रमजीवी महाविद्यालय में हिन्दी प्राध्यापक डॉ ममता पानेरी ने कहा कि शिवराम नाटककार के साथ-साथ अच्छे रंगकर्मी भी थे। रंगकर्म की उनकी समझ आज के संदर्भ में ज्यादा संगत लगती है। राजेश शर्मा ने उन्हें जन नाटकों का भविष्य बताया। सार्थक रंगकर्मी के साथ ही अच्छा नाटककार होना शिवराम ने ही प्रमाणित किया है।