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बरेली। बरेली कॉलेज में इन दिनों साड़ी पहनने को लेकर बवाल मचा हुआ है। कॉलेज प्रशासन और वहां पढ़ाने वाली शिक्षिकाएं आमने-सामने हैं। वैसे तो ये कॉलेज अपनी पढ़ाई के लिए जाना जाता है, लेकिन बरेली कॉलेज के प्रशासन ने विभिन्न विभागों के विभागाध्यक्षों को सर्कुलर भेजकर सुझाव दिया है कि कॉलेज में बेहतर शैक्षणिक माहौल बनाने के लिए शिक्षिकाएं साड़ी पहनकर आएं। पत्रकारिता विभाग की शिक्षिका वंदना शर्मा ने कहा यह पूरी तरह से तर्कहीन बात है और शिक्षिकाओं पर ड्रेस कोड लागू करके परिसर में शैक्षणिक माहौल बेहतर नहीं बनाया जा सकता।उन्होंने कहा कि हर शिक्षक उनकी इस बात पर सहमत होगा कि कॉलेज में शैक्षणिक माहौल बेहतर बनाने के लिए शिक्षण पद्धति और अन्य पहलुओं पर ध्यान दिया जाना चाहिए न कि शिक्षकों के पहनावे पर। वंदना शर्मा की बात का समर्थन करते हुए अंग्रेजी विभाग की शिक्षिका पूर्णिमा अनिल ने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि महिला शिक्षकों के सलवार सूट और जींस छोड़कर साड़ी पहनकर आने से शैक्षणिक विकास में सकारात्मक परिवर्तन आ जाएगा। वे सभी इसका विरोध करेंगी। अगर महिला शिक्षकों पर ड्रेस कोड लागू करके उन्हें साड़ी पहनकर कॉलेज आने की बात कही जा रही है तो पुरुष शिक्षकों पर ड्रेस कोड लागू करके उन्हें भी धोती-कुर्ता पहनकर कॉलेज में आने के लिए क्यों नहीं कहा जाता?कॉलेज के प्राचार्य आरपी सिंह का इस बारे में कहना है कि कॉलेज में अभी यह ड्रेस कोड लागू नहीं किया गया है। उन्होंने शिक्षिकाओं और खासकर जो शिक्षिकाएं तदर्थ आधार पर कॉलेज में पढ़ा रही हैं उनके लिए सर्कुलर भेजकर साड़ी पहनकर आने का सुझाव दिया गया है। बरेली कॉलेज में इस मामले पर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं हैं। कुछ लोगों का कहना है कि साड़ी पहनना या उसके लिए प्रेरित करना शैक्षणिक माहौल के विपरीत कैसे हो सकता है? कुछ कह रहे हैं कि कॉलेज में इस प्रकार के सर्कुलर की कोई आवश्यकता नहीं थी और यह सुझाव सामान्य तौर पर दिया जा सकता था। कॉलेज में छात्र-छात्राओं के ड्रेस कोड पर भी यदा कदा विवाद उठे हैं और जहां तक शिक्षिकाओं के साड़ी पहनकर आने की बात है तो इस पर विरोध के स्वर मुखर करने का कोई बड़ा कारण नहीं है। यह एक अनुशासन से जुड़ा पक्ष है और इस पर विरोध की प्रतिक्रिया का अच्छा संज्ञान नहीं लिया जा सकता।