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लखनऊ। भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता और विधान परिषद सदस्य हृदयनारायण दीक्षित ने सरकार में जानबूझकर उपेक्षा से क्षुब्ध होकर विधान परिषद की आवास समिति से इस्तीफा दे दिया है। यह इस्तीफा उन्होंने परिषद के सभापति को भेजा जिसमें उन्होंने उन कारणों का उल्लेख किया है जिनके कारण उन्हें इस्तीफा देने को मजबूर होना पड़ा।सभापति को भेजे इस्तीफे में हृदयनाराण दीक्षित ने कहा है कि उन्होंने 7 जुलाई को सदस्य विधान परिषद की शपथ लेने के दूसरे दिन ही राज्य सम्पत्ति अधिकारी को दारूलशफा ए/बी ब्लाक में आवास आवंटित करने का पत्र भेजा था। राज्य सम्पत्ति अधिकारी एसके सिंह से वार्ता भी हुई थी, मगर उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री कार्यालय ने उनके इस प्रस्ताव को 'बिना सहमति ही वापिस' कर दिया है। दीक्षित ने जब मुख्यमंत्री के सचिव नवनीत सहगल से बात की तो उन्होंने बताया कि आवास आवंटन अतिशीघ्र हो जाएगा और एसके सिंह की सूचना निराधार थी। इसके बाद उन्होंने राज्य संपत्ति अधिकारी से वार्ता के लिए कई प्रयास किए किंतु उन्होंने फोन नहीं उठाया। इसी बीच उन्हें विधानमण्डल के सदस्यों के आवासीय सम्बंधी जांच समिति का सदस्य भी मनोनीत कर दिया गया। समिति की बैठकों में राज्य सम्पत्ति विभाग की अकर्मण्यता और लापरवाही के कई मसले आये। दीक्षित का कहना है कि राज्य सम्पत्ति अधिकारी समिति के प्रति अपने दायित्व निर्वहन में निष्ठावान नहीं दिखाई पड़े। समिति के कई सदस्यों और सभापति के हस्तक्षेप के बाद भी आरएसए ने उनसे कभी कोई संवाद नहीं बनाया। इससे उन्होंने अनुभव किया कि आवास सम्बंधी समिति के सदस्यों को भी राज्य सम्पत्ति विभाग आवास देने में कोई रूचि नहीं रखता है इसलिए अपने मान-सम्मान को आहत होते देखते हुए उन्होंने इस समिति से इस्तीफा दे दिया है।हृदयनारायण दीक्षित ने अपने पत्र में लिखा है कि भारतीय संसद में सदस्यों को आवास आवंटन की एक सुनिर्धारित प्रक्रिया है। संसद की समिति वरिष्ठता, बुढ़ापा, बीमारी आदि का भी विचार करती है, दूसरी, तीसरी बार निर्वाचित सदस्यों को विशेष प्रकार के आवास भी देती है।लेकिन उत्तर प्रदेश में यह अधिकार अधिकारियों को मिला हुआ है जबकि विधानमण्डल के सदस्यों की आवासीय सुविधा राज्य सरकार की अनुकम्पा नहीं है बल्कि यह एक कानूनी अधिकार है। पैर की चोट के कारण दीक्षित स्थिति संदर्भित आवास चाहते थे लेकिन सरकार ने इस मामले में भी संवेदनहीनता दिखाई। उन्होंने यह भी लिखा है कि उन्हें पूर्व सदस्य के रूप में भी मांगी गई सुरक्षा डीएम, एसपी की प्रबल संस्तुति के बावजूद नहीं दी गयी। तत्कालीन प्रमुख सचिव गृह जेएन चैम्बर ने इशारों में इसे मुख्यमंत्री की इच्छा बताया था। उन्होंने लिखा है कि 4 बार विधानसभा का सदस्य, प्राक्कलन और सार्वजनिक उपक्रम समिति का सभापति, पंचायती राज, संसदीय कार्य मंत्री रहा हूं। विधान परिषद के वर्तमान सदस्य के रूप में पांचवी बार विधानमण्डल का सदस्य हूं। लेकिन अपमानित होने की परिस्थिति में हूं इसलिए इन तथ्यों के आलोक में विचार करने के बाद आवास समिति की सदस्यता से स्वहस्तलिपि में तत्काल त्याग पत्र भेज रहा हूं।