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मायावती सरकार के खिलाफ गुस्सा फूटा

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मायावती-mayawati

लखनऊ। महेंद्र सिंह बहुजन समाज पार्टी का एक निष्ठावान और वरिष्ठ कार्यकर्ता है, उसकी अपने क्षेत्र में सार्वजनिक छवि भी बहुत अच्छी है लेकिन उसे ग्राम प्रधान के चुनाव में मायावती सरकार के खिलाफ गैरदलितों के गुस्से का सामना करना पड़ा। गांव के लोगों ने उसके मुकाबले जुलाहा जाति के प्रत्याशी को वोट देकर प्रधान बना दिया। विधान सभा में विपक्ष के नेता शिवपाल सिंह यादव के गृह क्षेत्र में उनके पुत्र अंकुर यादव के मुकाबले दूसरे सजातीय दुष्यंत यादव उर्फ भूरे को जिता दिया। कई बाहुबलियों और बसपा सरकार के ताकतवर नेताओं के पुत्र, पुत्रवधु, भाई-भजीते और परिजनों को एक प्रतिक्रियाजनित और शर्मनाक पराजय का सामना करना पड़ा है।
बसपा और सपा, दोनों की ही इस चुनाव में गहरी दिलचस्पी थी, भले ही यह चुनाव दलीय आधार पर नहीं कराए गए। सत्ता में रहने के कारण बसपा जो भी दावे करे लेकिन वास्तविकता यह है कि इस चुनाव में उसे भारी झटका लगा है। दलीय चुनाव से दूर रहने का उसका निर्णय उसी के खिलाफ गया है। सार यही है कि लोगों में मायावती सरकार के खिलाफ भारी गुस्सा है। कुछ अपवादों को छोड़कर जनता ने ग्राम प्रधान, बीडीसी और जिला पंचायत चुनाव में बसपा समर्थित प्रत्याशियों को हराया है। सुरक्षित या सामान्य सीट पर दलित के मुकाबले जो भी खड़ा हुआ उसी को जिताने की कोशिश की गई है।
इन पंचायत चुनाव पर शुरू से ही विवाद और धांधली का साया रहा है। बसपा नेतृत्व ने इन चुनावों को दलीय आधार से इसलिए दूर रखा था ताकि सभी जीते हुए प्रत्याशी बसपा में गिन लिए जाएं लेकिन बसपा अब इस स्थिति में नहीं है। चुनाव में सत्ता दल के नेताओं और बाहुबलियों ने मायावती के इन चुनावों से दूर रहने के दिशा निर्देशों की खुलकर धज्जियां उड़ाई हैं। सरकार के मंत्री, विधायक और बसपा के पदाधिकारी खुलकर अपने परिजनों को चुनाव लड़ा रहे थे तबभी अधिकांश को पराजय का सामना करना पड़ा है। राज्य के किसी एक क्षेत्र में नहीं बल्कि सभी जगहों पर मोर्चेबंदी थी और धांधलियों का तो कोई तोड़ नहीं था। बसपाईयों ने प्रशासन का खुलकर सहयोग लिया।
गोरखपुर में वनमंत्री फतेह बहादुर सिंह के खिलाफ चुनाव आचार संहिता की धज्जियां उड़ाने की रिपोर्ट का जिलाधिकारी ने संज्ञान नहीं लिया। हर जगह अराजकता रही। सुल्तानपुर में कानूनगो रामकुमार को पत्नी को सामने चुनाव में उतारने के कारण बसपा के विधायक चंद्रभद्र सिंह उर्फ सोनू सिंह ने मौत के घाट उतरवा दिया। इस चुनाव में चंद्रभद्र सिंह के प्रत्याशी को पराजय का सामना करना पड़ा। गोरखपुर में बसपा विधायक अम्बिका सिंह की पत्नी जानकी देवी को मतदाताओं ने नकार दिया। वनमंत्री फतेह बहादुर सिंह ने अपने जनसंपर्क अधिकारी और अपने प्रतिनिधि के परिजनों को चुनाव में उतरवाया था लेकिन वे बुरी तरह से हार गए। अम्बेडकर नगर में बसपा सरकार के मंत्री लालजी वर्मा की पत्नी शोभावती वर्मा जरूर चुनाव जीत गईं।
जिलों से जो रिपोर्ट आ रही हैं वे बसपा के लिए भारी निराशाजनक हैं। पश्चिम उत्तर प्रदेश में कैराना की सांसद तबस्सुम मुनव्वर की माँ अख्तरी बेगम और बहन शगुफ्ता बसपा और प्रशासन की भरपूर ताकत इस्तेमाल करने के बाद भी चुनाव हार गई। सहारनपुर और मेरठ मंडल में कई बसपा दिग्गजों को मुंह की खानी पड़ी है। देवबंद की विधायक मनोज चौधरी अपनी पत्नी को नहीं जिता पाए। सहारनपुर जिला पंचायत के अध्यक्ष चौधरी इरशाद की पत्नी खुर्शीद बेगम चुनाव हार गईं। बाहुबली नेता डीपी यादव के भतीजे की पत्नी मोनिका यादव चुनाव हार गईं। बसपा नेताओं ने अपने-अपने प्रत्याशी खड़े किए हुए थे और कहा जाता है कि दूसरे प्रत्याशियों से दलित वोटों के लिए भारी भरकम धनराशि भी ली थी लेकिन दलितों ने ही उनकी नहीं सुनी।
एक-एक सीट पर कई-कई दलित खड़े हो गए। सामान्य सीटों पर भी दलितों ने भारी पैमाने पर पर्चे दाखिल किए थे लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। फैजाबाद में मित्रसेन यादव के लड़के की पत्नी चुनाव हार गई। सोनभद्र और मिर्जापुर जिलों में बसपा को भारी नुकसान हुआ है। राबटर्सगंज के बसपा सांसद पकौड़ी लाल अपने पुत्र के‍ लिए क्षेत्र पंचायत सदस्य का वोट हासिल नहीं कर पाए जबकि उन्होंने अपनी पूरी ताकत लगा रखी थी। ऐसे ही सोनभद्र के बसपा नेता और पूर्व सांसद नरेंद्र कुशवाहा की पत्नी मालती देवी जिला पंचायत सदस्य का चुनाव हार गई। इस क्षेत्र में कई माओवादी समर्थक प्रत्याशी बुरी तरह चुनाव हारे हैं।

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