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संकट में है दुर्लभ कस्‍तूरी मृग

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कस्‍तूरी मृग

चमोली। दुर्लभ कस्‍तूरी मृग का अस्‍तित्‍व खतरे में है। इसके संरक्षण के स‌रकारी प्रयास धराशायी हो रहे हैं। अकेले सीमांत चमोली जिले के कांचुला खर्क स्‍थित कस्‍तूरी मृग अनुसंधान केंद्र में पिछले पच्‍चीस वर्षों के दौरान 56 कस्‍तूरी मृगों की अवैध शिकार एवं बीमारियों के कारण मौत हो चुकी है। चमोली का कस्‍तूरी मृग प्रजनन एवं अनुसंधान इनके लिए अभिशाप बनता जा रहा है। कस्‍तूरी पाने ‌के लिए इनकी हत्‍याएं और घातक बीमारियों के चलते इनका जीवन संकट में है। हत्‍यारे इन्‍हें खोज ही लेते हैं और न्‍यूमोनिया, सर्पदंश, चारा न चबा पाना, अर्जीण, हृदयाघात, टाक्‍सीमिया, सेप्‍टिक, मृत बच्‍चा पैदा होना या मादा का अपने बच्‍चे को दूध न देना, सैमिक शॉक, गेस्‍ट्रो एंटीराइटिस और अपच जैसी घातक बीमारियां इन्‍हें घेरे रहती हैं।
इनके संरक्षणदाताओं और देखभाल करने वालों को मानों इनसे कोई मतलब नहीं है। पच्‍चीस सालों में छप्‍पन मौतें। अधिकांश मौतें बरसात में हुई हैं। ग्‍लोबल वार्मिंग के कारण वातावरण भी इनके अनुकूल नहीं रहा है। आबादी बढ़ाने के लिए मृगों को दूसरी जगह स्‍थानांतरित करने के प्रयास भी असफल साबित हुए हैं। कस्‍तूरी मृगों के अवैध शिकार को रोकने एवं इनके संरक्षण के लिए चमोली और पिथौरागढ़ के उच्‍च हिमालयी क्षेत्रों में कस्‍तूरी मृग अनुसंधान केंद्र खोले गए। पिथौरागढ़ में वर्ष 1974 में मरहुडी कस्‍तूरी मृग अनुसंधान केन्‍द्र तथा चमोली में वर्ष 1981-82 में कस्‍तूरी मृग प्रजनन एवं अनुसंधान केंद्र कांचुला खर्क मंडल, यूनेस्‍को की सहायता से स्‍थापित किया गया। इसके अलावा डीडीहाट धारचूला एवं मुनस्‍यारी के कुछ क्षेत्रों को अस्‍कोट कस्‍तूरी मृग विहार घोषित किया गया।
इन केंद्रों की स्‍थापना का उद‍्देश्‍य इस दुर्लभ प्राणी की संख्‍या में वृद्घि कर इसे विलुप्‍त होने से बचाना था। लगभग 2500-3000 मीटर से अधिक की ऊंचाई में पाया जाने वाला यह खूबसूरत प्राणी, अपनी खुशबू के खजाने कस्‍तूरी से सदियों से लोगों के मध्‍य आकर्षण का केंद्र रहा है। इसमें पाए जाने वाली कस्‍तूरी का प्रयोग सौन्‍दर्य प्रसाधन एवं दवाइयों को बनाने में किया जाता है। यह मुख्‍य रूप से दमा, मिरगी, निमोनिया, टाइफाइड, हृदय रोग जैसी कई अन्‍य बीमारियों के इलाज के लिए बनाई जाने वाली दवाईयों को बनाने में किया जाता है। कस्‍तूरी मृग का वजन 10-15 किलोग्राम होता है और नर और मादा दोनों का रंग एक जैसा होता है। अंतर सिर्फ इतना होता है कि नर मृग में दो नुकीले दांत होते हैं जो बाहर निकलते हैं। इसमें सींग नहीं होते हैं। कस्‍तूरी केवल नर मृग में पायी जाती है जो एक वर्ष की उम्र से बननी शुरू होती है। नर और मादा केवल सहवास के समय साथ रहते हैं अन्‍य समय में वे अलग-अलग रहते हैं।
पृथक राज्‍य गठन के बाद इस हिमालयन मस्‍क डियर अर्थात कस्‍तूरी मृग को राज्‍य पशु का दर्जा दिया गया है, परन्‍तु इसके संरक्षण के पुख्‍ता इंतजाम नहीं किए गए। इस कारण वर्ष 1982 से वर्ष 2006 के मध्‍य 56 से अधिक कस्‍तूरी मृगों की विभिन्‍न कारणों से मौतें हो गईं। कारणों का पता लगाने के लिए वन विभाग ने कस्‍तूरी मृग के अवयवों को भारतीय पशु अनुसंधान केन्‍द्र देहरादून, पंतनगर विश्‍वविद्यालय नैनीताल, भारतीय पशु अनुसंधान केन्‍द्र बरेली आदि स्‍थानों पर परीक्षण के लिए भेजा। कई परीक्षणों के बाद ही कस्‍तूरी मृग की मृत्‍यु के ठोस कारणों का पता लग पाया। कांचुला खर्क में 1981 में 1 नर व दो मादा कस्‍तूरी मृग लाए गए थे। मृगों के प्रजनन के बाद यहां 66 मृगों का जन्‍म हुआ। वर्ष 2004 में 4 कस्‍तूरी मृग दार्जिलिंग भेजे गए, जिसके पश्‍चात वर्तमान समय में इस केन्‍द्र में मात्र एक ही कस्‍तूरी मृग शेष रह गया है। कस्‍तूरी मृग में सामान्‍यतया 30-45 ग्राम की कस्‍तूरी पाई जाती है जिसकी बाजार में अत्‍यधिक मांग है। अंतरराष्‍ट्रीय बाजारों में 1 ग्राम कस्‍तूरी की कीमत 50 से 60 डालर आंकी गयी है। परिणामस्‍वरूप इसका अवैध शिकार किया जा रहा है।
इससे इसकी संख्‍या में भारी कमी होती जा रही है। ग्‍लोबल वार्मिंग के कारण यहां का प्रजनन एवं वैज्ञानिक अनुसंधान केन्‍द्र कस्‍तूरी मृगों के लिए अनुकूल नहीं माना जाता है। परिणामस्‍वरूप ये यहां अपने को असहज महसूस कर रहे हैं। पूर्व में इनको अन्‍यत्र स्‍थानान्‍तरित करने की कवायद हुई थी परन्‍तु यह कयावाद परवान न चढ़ सकी। विभाग ने इस केन्‍द्र को अन्‍यत्र स्‍थानान्‍तरित करने के लिए दो स्‍थलों का चयन किया है। केन्‍द्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण नई दिल्‍ली के सदस्‍यों ने इस संबंध में बताया कि स्‍थलों का निरीक्षण करने के उपरान्‍त ही आवश्‍यक कार्यवाही की प्रक्रिया शुरू हो पाएगी। यह एक दुखद विषय है कि जिस उद्देश्‍य के लिए इस प्रजनन एवं वैज्ञानिक अनुसंधान केन्‍द्र की स्‍थापना की गई थी आज वही केन्‍द्र अपने उद्देश्‍य से कहीं दूर भटकता नज़र आ रहा है। वन्‍यजीव प्रेमियों का कहना है कि उत्‍तराखण्‍ड सरकार एवं वन्‍य जीव प्रभाग के उच्‍च अधिकारियों को यहां की सुध लेनी चाहिए। वह विलुप्‍त के कगार पर पहुंची इस हिमालयी अनमोल धरोहर को बचाने की हर सम्‍भव कोशिश करे, तब जाकर कहीं यह केन्‍द्र अपनी उपयोगिता को सिद्घ कर पाएगा।
केदारनाथ वन्‍य जीव प्रभाग गोपेश्‍वर के वन्‍य जीव प्रतिपालक के अनुसार अधिकांश कस्‍तूरी मृगों की मौत निमोनिया, सर्पदंश एवं अन्‍य कारणों से हुई। कई कस्‍तूरी मृगों के मौत के ठोस कारणों का पता नहीं लग पाया है। कई बार इनके अवयवों को परीक्षण के लिए उच्‍च संस्‍‌थानों में भेजा जाता रहा है, परन्‍तु इसके पश्‍चात भी किसी ठोस कारण का पता नही लग पाया। कांचुला खर्क की जलवायु इनके लिए अनुकूल नहीं है। विभाग ने इन्‍हें अन्‍यत्र स्‍थानान्‍तरित करने का प्रस्‍ताव भी भेजा। देखिए आवश्‍यक कार्रवाई की प्रक्रिया कब तक शुरू हो पाएगी। केवल घास-पत्‍तियों पर निर्भर कस्‍तूरी मृग न सिर्फ भारत ‌‌मे बल्‍कि विदेशों में भी खतरे में है। हाल के सर्वक्षणों के अनुसार रूस एवं चीन में भी इसकी संख्‍या में भारी कमी हुई है। सन 1999-2000 अवधि में रूस में लगभग 400 से 450 किलोग्राम अवैध कस्‍तूरी की तस्‍करी हुई। अंदाज लगाया जा सकता है कि 23 ग्राम कस्‍तूरी प्रति मृग के लिए लगभग 17 से 20 हजार कस्‍तूरी मृगों को मारा गया होगा। दुनिया के चीन, मंगोलिया एवं रूस आदि देशों में कस्‍तूरी मृगों की तस्‍करी हो रही है, विश्‍व समुदाय के लिए यह खासा चिंता का विषय है।

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