संवाददाता
लखनऊ। ‘बिहारी’ ने जैसे ही अपना नाम रामप्रकाश यादव बताया तो एलडीए के इलाके के पाल नाम के एक अधिकारी के तेवर चढ़ गए-‘बीस लाख की जमीन पर मौज मार रहा है?’ इस अधिकारी के लिए राज्य के इस निजाम में एक ‘यादव’ को ठिकाने लगाना उसके अनुकूल लगा। उसने तुरंत ही ठेकेदार से उसकी करीब बीस साल पुरानी चाय की गुमटी को वहां से उठवाकर फिकवा दिया और उसकी जगह पर समतामूलक समाज की पुरोधा और उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती के किसी खास आदमी की रातों-रात दुकान चुनवा दी। यह नजारा देखने वाले बताते है कि उस समय वह अधिकारी एलडीए के किसी मिश्रा से बार-बार मोबाइल पर बात करके बता रहा था कि क्या-क्या हो रहा है। कोई वहां मुंह मारने की हिम्मत न कर सके इसलिए यह खबर भी इस इलाके में आग की तरह फैला दी गई कि मायावती के खास जानने वाले की यह दुकान चुनी जा रही है। पाल नाम के उस अधिकारी ने बिहारी को बता दिया कि ज्यादा मत उछलना नहीं तो ‘अंदर’ हो जाएगा।
लखनऊ विकास प्राधिकरण का यह कारनामा लखनऊ में केडी सिंह बाबू स्टेडियम के गेट नंबर 19 के सामने का है, जहां करीब बीस वर्ष से बिहारी एक छोटी सी गुमटी लगाकर खिलाड़ियों को चाय और बिस्कुट बेचता आ रहा है। जिस जगह बिहारी की गुमटी थी, वह वीआईपी दुकानदारों की लेन कहलाती है। स्टेडियम के सामने इस लेन में प्रदेश के कई मुख्यमंत्रियों और नौकरशाहों के नौकरों, नाईयों और अनुयायियों की दुकानें हैं जो कि इसी तरह से ऊपर से सिफारिश लेकर आने वालों के लिए तामीर की गई हैं। बिहारी की कोई सिफारिश नहीं थी, इसलिए उसकी गुमटी खिसकते-खिसकते शुलभ शौचालय के गेट के पास आकर रूक गई। उसे लगा कि अब वहां कुछ बचा ही नहीं है इसलिए उसे वहां से कोई क्या हटाएगा। लेकिन इस जगह के लिए भी सिफारिश आ ही गई और रातों रात बिहारी का सामान फिकवाकर दुकान खड़ी कर ली गई। बिहारी अब फुटपाथ पर है और उसकी कोई मदद करने को तैयार नहीं है, क्योंकि जिसकी दुकान बनवाई गई है वह मायावती के यहां का सिफारिशी कहलाता है।
राम प्रकाश यादव बिहार का रहने वाला है और बचपन में ही लखनऊ आ गया था। उसने स्टेडियम के सामने पहले अपनी चाय का ठेला लगाया। बाद में उसने उस जगह औरों की तरह दुकान एलाट करने के लिए नगर निगम में दरखास्त लगाई और फिर एलडीए में आवेदन किया। उसे किसी ने घास नहीं डाली। पांच साल पहले उसने उस जगह पर लोहे की गुमटी बनवा ली थी। गुमटी में उसके नाम से बिजली का कनेक्शन भी है। किन्तु किसी एसके नंदा ने उसको वहां टिकने नहीं दिया और उसकी दुकान हटवाकर अपने लड़के के नाम खड़ी करवा दी। उसने इतने साल इस उम्मीद में एक गुमटी पर गुजारे कि उसको भी वहां औरों की तरह दो गज जमीन मिल जाएगी, जिससे वह स्थाई रूप से अपनी चाय की दुकान चला सकेगा।
राम प्रकाश उर्फ बिहारी ने इस दौरान न जाने कितनी बार अपनी दरखास्तें नगर निगम लखनऊ और लखनऊ विकास प्राधिकरण में दीं। उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई क्योंकि बिहारी का कोई सोर्स नहीं था, जिन-जिन लोगों के सोर्स थे, स्टेडियम के सामने उनकी लाइन से दुकानें बनती चली गईं। आज उस लेन में तिल रखने को भी जगह नहीं है। आप वहां पर जिससे पूछेंगे तो कोई अपने को प्रधानमंत्री का जानने वाला तो कोई मुख्यमंत्री का जानने वाला, कोई किसी माफिया के जानने वाला तो कोई किसी बड़े अफसर या नेता का रिश्तेदार बताएगा। इससे नीचे वहां कोई दुकानदार नहीं है। अब यह कोई मायावती का जानने वाला आ गया है।
बिहारी ने लखनऊ के आयुक्त को अपनी व्यथा लिखकर बताया है कि उसने नगर आयुक्त को प्रार्थना पत्र दिया था और उसके प्रार्थना पत्रों पर कुछ कार्रवाईयां भी हुईं थीं। लेकिन वह कार्रवाईयां अंजाम तक नहीं पहुंचीं और बार-बार उसकी फाइल दाखिल दफ्तर होती रही। उसके पास विभिन्न अधिकारियों के जमीन आवंटन की संस्तुतियां लिखे पत्रों की प्रतिलिपियां भी हैं। लेकिन आज उन पत्रों की महत्ता बिल्कुल प्रभावहीन हैं क्योंकि वर्षों से वह जहां पर जीवन यापन कर रहा था उसे वहां से उजाड़ दिया गया है। उसके पास अगर सबूत के तौर पर कोई दस्तावेज है तो वह एक बिजली के बिल की कापी है जो यह साबित करती है कि वह कितने समय से उस जगह पर अपनी दुकान चला रहा था।
उसने मुख्यमंत्री के यहां भी कई बार दरखास्त दी जो कि लखनऊ विकास प्राधिकरण में ऊपर से होते हुए नीचे तक जाकर फाइल में दफन हो गई। बिहारी क्या करे? उसको लगभग सभी छोटे-बड़े खिलाड़ी और स्टेडियम में आने वाले बड़े-बड़े नौकरशाह नेता, पत्रकार जानते पहचानते हैं लेकिन वह बेबस हैं और बिहारी की कोई भी मदद करने में नाकाम हैं, क्योंकि उसकी दुकान को हटाकर वहां जिसकी दुकान चुनवाई गई है उसकी मुख्यमंत्री तक पहुंच बताई जाती है। इसीलिए एलडीए वाले रामप्रकाश बिहारी को कह गए हैं कि चुपचाप होकर यहां से खिसक जाओ, नेतागिरी नहीं करना और न ही इस दुकान के खिलाफ दरखास्तबाजी करना। नहीं तो तुम जानते हो कि किसकी सरकार है। वैसे तुम यादव हो जिससे तुम्हें इस समय कोई शरण देने वाला भी नहीं मिलेगा।
बिहारी सबसे मनोहार करता फिर रहा है वह स्टेडियम के गेट पर फुटपाथ पर चाय का चूल्हा रखकर चाय बनाते हुए देखा जा सकता है लेकिन किसी दिन उसे वहां से भी खदेड़ दिया जाएगा। उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री के निर्बल को बल देने की यह अनोखी मिसाल है जिसमें एक को रोजगार दिलाने के लिए दूसरे को उजाड़ दिया गया है। ऐसा केवल यही नहीं हो रहा है और जगहों पर भी ऐसा सुनने को मिल रहा है।