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गुर्जर आंदोलन: अराजकता में सबकुछ खोया

एहतिशाम ‌सिद्दीकी

किरोड़ी सिंह बैंसला

जयपुर। भारतीय सेना में कर्नल जैसे महत्वपूर्ण पद पर रहकर जिस किरोड़ी सिंह बैंसला ने देश की रक्षा के लिए सीमा पर और जरूरत पड़ी तो देश के भीतर भी कानून व्यवस्था स्थापित करने में अराजक तत्वों और सरकारी एवं गैर सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने वालों के खिलाफ कार्रवाई में हिस्सा लिया, उसी बैंसला की गुर्जर फौज अपने ही गृह राज्य में अपनी बात मनवाने के लिए हिंसक तरीके इस्तेमाल करके देश की जीवन रेखा रेल की पटरियां उखाड़ते हुए, रास्ते रोकते हुए, सरकारी और जनसामान्य की अरबों रुपए की संपत्तियों को आग लगाते हुए देखी गई तो उसका अनुसरण देश के दूसरे भागों में भी होने लगा है। पंजाब में डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख राम रहीम की गिरफ्तारी की मांग को लेकर पंजाब के लोगों ने रेल पटरियों और रेल गाडि़यों को निशाना बनाया। बिहार में हिंसक माओवादी भी ऐसा ही कर रहे हैं। आंदोलनों के इन हिंसक तौर तरीकों को लेकर जन सामान्य में तीखी प्रतिक्रिया हुई है। बहरहाल हिंसात्मक रूप में लंबा चले राजस्थान के गुर्जर आरक्षण आंदोलन से गुर्जरों को राजनीतिक, सामाजिक या आर्थिक रूप से क्या हासिल हुआ, यह अभी भी अनिश्चित और अनुत्तरित सवाल है। राजनीतिक दलों में विधानसभा या लोकसभा क्षेत्रों के नए दावेदार नेताओं की संख्या बढ़ने के अलावा गुर्जरों के हाथ में कुछ नहीं आया है।
राजस्थान सरकार से अपने लिए विशेष आरक्षण हासिल करने के लिए यहां के गुर्जर किस तरह से कई दिन तक गंभीर अराजकता और हिंसा पर उतारू रहे, पूरे देश में और देश के बाहर भी देखा गया। राजस्थान की वसुंधरा राजे सिंधिया सरकार वोटों के लालच में फंसी खड़ी दिखाई दी और गोली चलवाकर भी इस आंदोलन निपटने में विफल साबित हुई है। इस संघर्ष में तीन दर्जन से ज्यादा लोग मारे गए हैं। किरोड़ी सिंह बैंसला अड़े हुए थे कि चाहे जो हो, जब तक उन्हें आरक्षण में मीणाओं जैसा विशेष दर्जा नहीं मिलता वह अपना आंदोलन जारी रखेंगे। गुर्जर आंदोलन में राजस्थान सरकार यह कथन सही साबित हुआ कि इस आंदोलन में डकैत और अराजक तत्व जनसामान्य को ढाल बनाकर अराजकता और हिंसा फैलाते हुए सुरक्षा बलों पर हमले करते रहे। जाना-माना जगन गुर्जर डकैत कर्नल बैंसला के साथ खड़ा, मीडिया के कैमरों की नजरों से अपने को छिपाने का असफल प्रयास करता देखा गया। जगन गुर्जर ने तो खुलेआम वसुंधरा राजे सिंधिया के धौलपुर के पुश्तैनी घर तक को बम से उड़ाने की धमकी दे डाली। मजे की बात यह भी रही कि आर्ट आफ लीविंग के सूत्रधार आध्यात्मिक गुरू रविशंकर जैसों ने भी इस आंदोलन का समर्थन किया जिसकी लेकर जन सामान्य में तीखी प्रतिक्रिया हुई। 
राजस्थान इस अकारथ आंदोलन के कारण पिछले छह महीनों से रेगिस्तान की गर्म रेत की तरह धधकता रहा है। चुनावी जमीन तैयार करने के लिए इस आंदोलन की आड़ में सबकुछ हुआ। राजस्थान सरकार ने गुर्जरों की मांग पर एक आयोग का गठन किया था जिसकी रिपोर्ट आने के बाद वसुंधरा सरकार ने केंद्र सरकार को गुर्जरों को आरक्षण देने के लिए पत्र लिखा था। राजस्थान सरकार ने गुर्जरों को आश्वासन दिया था। लेकिन गुर्जरों ने समझा कि वसुंधरा सरकार धोखा दे रही है इसलिए वह फिर से आंदोलन पर उतर आए और उनका आंदोलन हिंसात्मक हो गया। लोकसभा चुनाव सर पर हैं इसलिए कोई भी राजनीतिक दल राजस्थान की इस आग में कूदने की हिम्मत नहीं जुटा सका, क्योंकि इसमें सबको अपने वोटों की चिंता थी। भारतीय जनता पार्टी इस संघर्ष में फंसी हुई है जिससे अब तय है कि उसे राजस्थान में अगर एक का वोट पाना है तो दूसरे समुदाय का वोट गंवाना है। बाकी राजनीतिक  दल मीणा और गुर्जर समुदाय के बारे में खुलकर कोई भी बात कहने से डर रहे हैं।
इस आंदोलन से भारत की जीवन रेखा भारतीय रेल को भारी नुकसान हुआ और राजस्थान का पर्यटन तबाह हो गया। भरतपुर में लोग लोहे के बड़े-बड़े सभ्भल लेकर ऐसे रेल की पटरियां उखाड़ रहे थे जैसे उस जगह पर अब कभी रेल चलनी ही नहीं है। मीडिया के कुछ कैमरामैन भी वहां उन्हें अपने ब्रेकिंग शॉट के लिए गुर्जरों को हिंसा के लिए उकसाते देखे गए ताकि यह आंदोलन और उग्र तरीके से उनके टीवी चैनल पर देश दुनिया को दिखाया जा सके। मीडिया के कुछ अति उत्साही और तथा कथित विशेषज्ञ विश्लेषणकर्ताओं का रोल इस आंदोलन के बारे में केवल तथ्यहीन और अपने भड़काऊ विचार प्रकट करना, खबरों को ब्रेकिंग न्यूज के रूप में पेश करना भर दिखाई दिया। मानो उनका सामाजिक जिम्मेदारियों से कोई सरोकार नहीं है। वे चैनलों पर बैठकर आग लगाते रहे और फोर्स उग्र लोगों और अराजकता से निपटती रही। इस आंदोलन में जो लोग मौत के मुंह में चले गए, अब कोई चैनल या नेता उनके परिवारों का हाल जानने या उनकी मदद को नहीं जा रहा है। इसमें राजस्थान के नागरिक सामाजिक संगठनों और राजनीतिक दलों के नेताओं का जैसे कोई भी मतलब और कोई भी जिम्मेदारी नहीं है। उस वक्त अपने चश्मे से देखने और बयानबाजी करने के लिए यहां झुंड के झुंड खड़े दिखाई दिए हैं।
देश के गुर्जर समाज का उसकी देशभक्ति और वीरता का एक इतिहास है। राजस्थान से लगी भारत की सीमाओं पर गुर्जर समाज के लोग रहते हैं और उनके परिवारीजन आए दिन विदेशी हमलावरों और अराजक तत्वों का भी मुकाबला करते हैं। राजस्थान में जिस कौम के नाम वीरता और देश के लिए मर मिटने के हजारों किस्से और बलिदान दर्ज हैं वह अपनी मांग के लिए अपने ही देश में एक ऐसी हिंसा जनित कार्रवाई को अंजाम दें जिससे देश में सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान हो तो उसे उचित नहीं कहा जा सकता। ऐसी स्थिति में गुर्जरों से संयम बरतते हुए राजनैतिक रूप से अपनी समस्या के समाधान के तरीके अपनाने जाने चाहिए थे। यह दुखद स्थिति बन रही है कि जो गुर्जर सीमाओं पर और सेना में रहकर देशद्रोहियों से मोर्चा लेते रहे हैं उन्होंने आज अपने ही देश में अपनों से ही मोर्चा खोल दिया है।

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