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असमंजस मे हैं पटवारी परीक्षा के आवेदक

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भोपाल। बेरोजगारी जैसी ज्वलंत समस्या का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि छोटी सरकारी नौकरियों में आवेदकों की बढ़ती संख्या वैसी ही है जैसे एक अनार सौ बीमार। मप्र शासन की जिला स्तर पर आयोजित होने वाली पटवारी परीक्षा की जिम्मेदारी व्यापम को सौंपी गई। व्यापम की पटवारी परीक्षा में विद्यार्थी असमंजस से ग्रस्त हैं। वास्तव में उन्हें आज तक जानकारी नहीं है कि पटवारी परीक्षा में कौन सा प्रमाणपत्र मान्य है और कौन सा नहीं।
आवेदक के लिए निर्धारित पात्रता में सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि वह किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से 1 वर्षीय डिप्लोमाधारी हो या डोएक द्वारा ओ लेवल कोर्स किया हो। सो आवेदक इसी पशोपेश में नजर आये कि वास्तव में कौन सी संस्थाए मान्य है और कौन सी नहीं? इस तफ्तीश के लिए आवेदक विभिन्न कंप्यूटर केंद्रों पर निकल पड़े हैं और जुगत में लग रहे हैं कि कैसे बनाए जाएं फर्जी प्रमाण पत्र। मरता क्या नहीं करता वाली स्थिति से गुजरते आज के बेरोजगार नौजवान ने बीड़ा उठाया किसी भी हाल में पटवारी की या कोई भी सरकारी नौकरी प्राप्त करनी है।
विभिन्न आरक्षित एवं अनारक्षित वर्गो हेतु आयोजित पटवारी परीक्षा हेतु हजारों की संख्या में आवेदनों की बिक्री हुई और कई कंप्यूटर सेंटरों से फर्जी प्रमाण पत्र बनवाने को सिलसिला जारी रहा। इस बार आयोजित होने वाली पटवारी की परीक्षा का जिम्मा व्यापम को सौपा गया था। इस कारण लग रहा था कि पिछले वर्षो की तरह इस वर्ष विद्यार्थी असुविधा से बच जाएंगे, परन्तु इस वर्ष और भी ज्यादा असुविधा एवं अस्पष्टता नजर आई। क्योंकि व्यापम की जानकारी में ये स्पष्ट नहीं होता है कि किस कम्प्यूटर सेंटर के प्रमाण पत्र मान्य होंगे ।
पिछले वर्ष भी पटवारी परीक्षा असमंजस की स्थिति में थी और शासन को परीक्षा स्थगित करनी पड़ी थी। इस बार भी कई विद्यार्थियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ होता दिख रहा है, पर शासन का इस ओर कोई ध्यान नहीं है। इस वर्ष की परीक्षा में डोएक का ओ लेवल या यूजीसी का मान्यता प्राप्त, संबंधित संस्था से जारी डीसीए प्रमाण पत्र मांगा गया था और इस हेतु उन्होंने कई इंस्टीट्यूट के नाम भी लिखे थे जो डोएक का ओ लेवल कोर्स कराते है परन्तु ये स्पष्ट नहीं किया गया था कि इंस्टीट्यूट द्वारा खोली गई शाखा का प्रमाण पत्र मान्य होगा या नहीं। यही स्थिति आज भी जस की तस है और कई विद्यार्थी असमंजस की स्थिति में आवेदन फार्म भर चुके हैं और उन शाखाओ द्वारा प्रमाण पत्र बेचे जा रहे थे।
अब फार्म तो विद्यार्थियों ने भर दिया पर जब उन्हें पता चलेगा की उनका लगाया गया प्रमाण पत्र वैध नहीं है तब की स्थिति का जिम्मेदार कौन होगा? जानकारी के अभाव में विद्यार्थियों के भविष्य के साथ होते खिलवाड़ को देख प्रशासन शायद अब जागे।

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