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नई दिल्ली। ईरान में क्रांति के बाद सिनेमा को जो नई दिशा और ऊर्जा मिली उसे अनेक अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर सराहा गया है और विभिन्न समारोहों में उसने स्वयं को स्थापित किया है। ईरानी सिनेमा की इसी सृजनात्मकता को सम्मानित करने के लिए इफ्फी ने ईरान की कुछ बेहतरीन फिल्मों को एक पैकेज़ के तहत प्रदर्शित किया है। इस पैकेज़ का नाम है समकालीन ईरानी सिनेमा की झलक।इसमें दिखाई जा रही फिल्में हैं-मेहदी रहमानी की दिगारी, विजान मीरबागेरी की थर्ड फलोर, मुज्तबा राई की इराक, शर्रम असादी की शब-ए-वाघेइ, इब्राहिम फुरुज़ेस की द फर्स्ट स्टोन, ओमिद बोनाकर और किवान की द डे गोज़ एण्ड नाइट कम्स, शबनम ओरफिनेज़ाद की देयर इज़ नथिंग बिहाइंड द डोर, नादिर हुमायूं की तेहरॉन और मोहसिन अब्दुलवहाब की प्लीज़ डू नॉट डिस्टर्ब। समारोह में ईरानी फिल्मों के पैकेज़ को प्रस्तुत करने के लिए वहां के 4 प्रमुख निर्देशक मौजूद होंगे-शर्रम असादी, मुज्तबा राई, नादिर हुमायूं और नस्तारान खेरंदसिह। इसके अलावा द फर्स्ट स्टोन के प्रमुख कलाकार मोहसिन तनाबंदेह और फिल्म के निर्माता अलीरज़ा सब्तअहमदी भी उपस्थित रहेंगे।इफ्फी 2010 में कन्ट्री फोकस खंड में जॉर्जिया, र्मैक्सिको और ताइवान के साथ अन्य संकेन्द्रित देशों में श्रीलंका भी शामिल है। वर्ष 2000 से 2010 तक पुरस्कार विजेता श्रीलंकाई फिल्मों का सिंहावलोकन श्रीलंकाई सिने प्रेमियों के लिए एक उपहार होगा। इस पैकेज में दिखाई जाने वाली 9 फिल्में हैं—सरोजा (2000), मी मागे संडाई (2001), अग्निदाहाया (2002), सुडु कालूवारा (2003), मिल्ले सोया (2004), इरा मदियामा (2005), उडुगन यामया (2006), अगन्थुकाया (2007) और वालापताला (2008)। देश के प्रसिद्ध फिल्म निर्माताओं की समारोह में उपस्थितिअपेक्षित है।समसामयिक होने के साथ-साथ डच सेना के आधिपत्य के दौरान राजनीतिक अशान्ति का चित्रण (अग्निदाहाया) और अंग्रेजों के इस द्वीप पर आधिपत्य के दौरान की कहानी (सुडु कालूवारा) फिल्म में शामिल किए गए विषय हैं। इस पैकेज में सिविल वार से लगभग 20 वर्ष तक पीड़ित और आन्दोलित समाज का चित्रण करने वाली इरा मदियामा और उडुगन यामाया जैसी फिल्में शामिल हैं।