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नई दिल्ली। सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्यमंत्री डी नेपोलियन ने बताया कि 6 राष्ट्रपति आदेशों में यथावर्णित 1206 जातियों को किसी राज्य-संघ राज्य क्षेत्र के संबंध में अनुसूचित जाति के रूप में निर्दिष्ट किया गया है और उनकी संख्या अनुबंध-1 में दी गई है। इसी प्रकार 28 संकल्पों में यथावर्णित 2173 जातियों को अन्य पिछड़े वर्गों के रूप में निर्दिष्ट किया गया है, जिनके ब्यौरे अनुबंध-2 में वर्णित 28 संकल्पों में समाविष्ट है।
उन्होंने लोकसभा में बताया कि अनुसूचित जातियों की सूची में, जातियों इत्यादि को शामिल करने के संबंध में संबंधित राज्य सरकारों-संघ राज्य क्षेत्र प्रशासनों से प्रस्तावों की प्राप्ति एक सतत प्रक्रिया है और उन पर अनुमोदित क्रियाविधियों के अनुसार कार्रवाई की जाती है। अन्य पिछड़ा वर्गों की केन्द्रीय सूची में जातियों के समावेश के प्रस्ताव और मौजूदा सम्पन्न तबकों के लिए आर्थिक सीमा बढ़ाने संबंधी अनुरोध समय-समय पर प्राप्त होते रहते हैं और उन पर राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिशों के अनुसार कार्रवाई की जाती है।
सामाजिक न्याय राज्य मंत्री के अनुसार अनुसूचित जाति के मामलों में अस्पृश्यता की परम्परागत प्रथा के परिणामस्वरूप अत्यधिक सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक पिछड़ापन, अन्य पिछड़ा वर्ग (केन्द्रीय सूची) के मामलों में सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक पिछड़ापन एवं केन्द्र सरकार के पद और सेवाओं में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व जैसे मानदंडों का पालन किया जाता है।