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आरटीआई में खुली शासन के पत्रों की पोल

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लखनऊ। नेशनल आरटीआई फोरम की संयोजक नूतन ठाकुर ने उत्तर प्रदेश शासन के विरोधाभासी पत्रों को सार्वजनिक किया है जिनमें यह स्पष्ट होता है कि इतने बड़े स्तर पर किस प्रकार की कार्यप्रणाली विकसित हो चुकी है और जब इतने बड़े स्तर पर अधिकारियों का यह हाल है तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रदेश में कैसा शासन चल रहा होगा। नूतन ठाकुर ने कहा है कि आरटीआई एक्ट से सम्बंधित एक प्रकरण काफी गंभीर है जिसमें मुख्य सचिव कार्यालय और उसके अधीनस्थ गृह, राजस्व और आवास विभाग एक दूसरे के सीधे विरोधाभाषी बात कह रहे हैं।

नूतन ठाकुर ने बताया कि उन्होंने 15/10/2008 को मुख्यसचिव को अपनी जमीन से सम्बंधित एक शिकायती पत्र भेजा था, जब उन्हें इस सम्बन्ध में कोई कार्रवाई होती नहीं दिखी तो उन्होंने 19/02/2009 को एक अनुस्मारक भेजा, उस पर भी जब किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं हुई तो 24/05/2010 को सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत मुख्यसचिव के जन सूचना अधिकारी को प्रार्थना पत्र दिया गया। उन्होंने उसमें मूल रूप से यह जानना चाहा कि उनके ये पत्र उन्हें कब-कब प्राप्त हुए और उनमे क्या कार्रवाई हुई। इसी बीच पोस्टल विभाग के पीआईओ से भी इन दोनों रजिस्टर्ड पत्रों की मुख्यसचिव कार्यालय में प्राप्ति के तारीख मालूम कर ली गई, जब उत्तर नहीं मिला तो अपीलीय अधिकारी को पत्र भेजा गया।

नूतन ठाकुर ने बताया कि इस पर उन्हें आवास और नगर विकास विभाग का एक पत्र मिला जिसमें यह कहा गया कि दिनांक 15/10/2008 का कोई पत्र प्राप्त नहीं हुआ है अतः उसे भेजा जाए। उन्होंने अपने दोनों पत्रों की छायाप्रति मुख्यसचिव कार्यालय को प्रेषित कर दी। मुख्यसचिव के पीआईओ की ओर से 18/08/2010 का एक पत्र आया जिसमे लिखा था- उनका 15/10/2008 का पत्र दिनांक 24/10/2008 को आवश्यक कार्रवाई के लिए प्रमुख सचिव गृह को भेजा गया। दिनांक 19/02/2009 का मेरा पत्र 25/02/2009 को प्रमुख सचिव आवास विभाग और प्रमुख सचिव राजस्व विभाग को भेजा गया जिसमें आवास विभाग की प्राप्ति भी 26/02/2009 को मिल गयी। मुख्य सचिव के पीआईओ ने राजस्व, आवास और गृह विभाग के पीआईओ से समस्त वांछित सूचना दिए जाने के आदेश दिए।

इस पर गृह विभाग का उत्तर आया है कि मेरा 15/10/2008  का जो पत्र मुख्यसचिव कार्यालय भेजा जाना बताया गया है, वह गृह विभाग को प्राप्त नहीं हुआ है। उन्होंने एक अगला पत्र लिख कर मुझे यह भी नसीहत दे दी कि इस प्रकार के मामलों में मैं भविष्य में वरिष्ठ अधिकारियों से पत्राचार नहीं किया करूं। आवास विभाग ने अपने पत्र में कहा है कि उसे 19/02/2009 का उनका पत्र मुख्यसचिव कार्यालय से नहीं मिला है बल्कि अब जा कर मुख्यसचिव कार्यालय से वह पत्र जरूर प्राप्त हुआ है, उन्होंने वह पत्र लखनऊ विकास प्राधिकरण को भेजा है पर मुझे वहां से भी कोई उत्तर अभी तक नहीं मिला है।

नूतन ठाकुर ने बताया कि राजस्व विभाग ने दो पत्र भेजे हैं, पहले पत्र में यह कहा गया है कि मुख्यसचिव कार्यालय से अब यह पत्र पात्र हुआ है जिसे जिलाधिकारी लखनऊ को आवश्यक कार्यवाही हेतु भेजा गया है, फिर दूसरे पत्र में यह लिख दिया गया कि मामले से उनका कोई सम्बन्ध नहीं है और इस विषय में सूचना आवास विभाग देगा। राजस्व विभाग ने भी 19/02/2009 का पत्र प्राप्त होना स्वीकार नहीं किया है। इस तरह इस मामले में जहां मुख्यसचिव कार्यालय में शुरू में भेजे गए पत्रों में कोई कार्रवाई नहीं हुई वहीँ अब आरटीआई में सूचना मांगे जाने पर इन चार विभागों से पूर्णतया विपरीत सूचनाएं प्राप्त हो रही हैं। नूतन ठाकुर ने कहा है कि इस सम्बन्ध में समस्त तथ्यों से अवगत कराते हुए मुख्यसचिव को एक पत्र लिख कर सत्यता जान कर उचित कार्रवाई करने का अनुरोध किया गया है, साथ ही राज्य सूचना आयोग को इस मामले के सूचना प्रदान कराने और गलत सूचना देने वालों के विरुद्ध दंडात्मक कार्रवाई करने का अनुरोध भी किया गया है।

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