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लखनऊ से अटल ही लड़ेंगे चुनाव !

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अटल बिहारी वाजपेई-atal bihari vajpayee

नई दिल्ली। आप देखिएगा! भारतीय जनता पार्टी के पितामह अटल बिहारी वाजपेयी लखनऊ लोकसभा सीट से चुनाव लड़ेंगे-भारी अटकलबाजियों के बावजूद इसमें कोई संशय नहीं है कि वह यहां से चुनाव नहीं लड़ें। अटल बिहारी वाजपेयी इस समय राजनीति के वानप्रस्थ में विश्राम कर रहे हैं मगर जब लोकसभा चुनाव का अवसर आएगा तब भाजपा की इज्जत बचाने के लिए उन्हें ही लखनऊ से चुनाव लड़ाया जाएगा। यह अलग बात है कि वह चुनाव प्रचार में नहीं आएंगे। भारतीय जनता पार्टी उन्हें यहां से हर कीमत पर चुनाव लड़ाना चाहती है और वह उन्हें जिताकर भी ले जाएगी। भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं एवं नेतृत्व की इच्छा है कि अटल बिहारी वाजपेयी मृत्युपर्यंत लखनऊ लोकसभा क्षेत्र से देश की संसद में भारतीय जनता पार्टी का प्रतिनिधित्व करते रहें। लखनऊ का यह राजनीतिक इतिहास है कि उसने हर परिस्थिति में अटल बिहारी वाजपेयी को यहां से जिताकर भेजा है।
भाजपा के लिए अटल बिहारी वाजपेयी का होना अभी भी एक संजीवनी का एहसास माना जाता है। भले ही उनके लखनऊ लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने पर यह कहकर विराम लगाने की कोशिश की जाती रही है कि अब वह चुनाव नहीं लड़ेंगे। स्वयं अटल बिहारी वाजपेयी भी यह ऐलान कर चुके हैं कि अब वह कोई चुनाव नहीं लड़ेंगे। मगर भारतीय जनता पार्टी के आग्रह को वह कैसे टाल सकते हैं, इसकी संभावना कम ही लगती है। भाजपा अपने वरिष्ठतम नेता के होते लखनऊ से किसी और के बारे में सोच भी नहीं सकती है, इसीलिए जब भारतीय जनता पार्टी के नेताओं से लखनऊ लोकसभा क्षेत्र के प्रत्याशी के बारे में सवाल किया जाता है तो उसका कोई उत्तर नहीं मिलता है। अभी तो एक ही जवाब होता है कि इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता, ये ऊपर का मामला है। भाजपा जो संभावित प्रत्याशियों की सूची बनाए हुए है उसमें लखनऊ से अटल बिहारी वाजपेयी का नाम कायम है और इस सीट पर किसी और का नाम विचाराधीन भी नहीं है जिससे इस बात की पुष्टि होती है कि यहां से अटल बिहारी वाजपेयी का नाम अटल है।
अटल बिहारी वाजपेयी की राजनीतिक सफलताओं पर विश्लेषण करने वाले एक मत नहीं हैं, लेकिन इस बात पर कोई विवाद नहीं है कि आने वाले लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी का भाजपा में उतना ही महत्व बना रहेगा जितना कि पहले रहा है। उनका शरीर अब इस बात की आज्ञा नहीं देता है कि वह राजनीति में सक्रिय रहकर पहले जैसी ऊर्जा के साथ कार्य करें लेकिन उनके रहते लखनऊ लोकसभा क्षेत्र से कोई और चुनाव लड़ें भाजपा में न तो फिलहाल कोई ऐसा है और न ही ऐसा करना अटल बिहारी वाजपेयी के सम्मान के लिए उचित माना जाता हैं। भाजपा की यह जिम्मेदारी बन गई है कि वह अपने नेता का नामांकन कराने के बाद उनके लोकसभा क्षेत्र में आए बगैर उन्हें भारी मतों से जिताकर लोकसभा में पहुंचाए। यह संदेश भारतीय जनता पार्टी को और क्षेत्रों में भी लोकसभा चुनाव में अनुकूल संदेश देगा। ऐसा अवसर भी आ सकता है कि यदि देश में फिर से भारतीय जनता पार्टी गठबंधन की सरकार के गठन की स्थिति बनती है और लालकृष्ण आडवाणी के नाम पर मामला आकर अटक जाता है (जिसकी सर्वाधिक संभावनाएं हैं) तब भी अटल बिहारी वाजपेयी काम आ सकते हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि जिस मस्जिद में मुल्ला नहीं होगा उसमें अज़ान नहीं होगी लेकिन फिलहाल जब पहला मुल्ला मौजूद है तो दूसरे पर प्रश्नचिन्ह लगा ही रहेगा।
आने वाला लोकसभा चुनाव भारतीय जनता पार्टी गठबंधन के लिए करो या मरो जैसा होगा। हालांकि भाजपा में अटल बिहारी वाजपेयी के राजनीतिक परिदृश्य से बाहर रहने के बाद प्रभावशाली नेतृत्व का अभाव पैदा हो गया है जिसकी भरपाई लालकृष्ण आडवाणी के रूप में भी अभी नहीं हो पाई है। एनडीए के घटक दलों में भी नेतृत्व को लेकर असमंजस की स्थिति है भले ही गठबंधन का कोई सहयोगी नेता इस पर अभी खुलकर नहीं बोलना चाहता हो। भाजपा में भी विभिन्न स्तरों पर राजनीतिक मंथन चल रहा है और इस मुद्दे पर समाधान प्रस्तुत करने की कोशिश की जा रही है।

उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की सरकार होने के कारण भारतीय जनता पार्टी से जुड़े रहने वाले सवर्ण समुदाय में एक महत्वाकांक्षा पैदा हो रही है कि बसपा के वोटों से चुनाव जीता जा सकता है। इस महत्वाकांक्षा ने भाजपा की नींद उड़ा रखी है क्योंकि हिंदू मतों के विभाजन का भाजपा को ही सबसे ज्यादा नुकसान होगा। इसके अलावा भाजपा में नेतृत्व की अंर्तकलह भी अपना रंग दिखा सकती है। इसका शिकार भाजपा के वो मतदाता होंगे जो कमल को अपने सीने में लगाए रहते हैं मगर भारतीय जनता पार्टी के नेताओं से दूर रहते हैं क्योंकि इन दो दशकों में भाजपा नेताओं ने भाजपा के परंपरागत कार्यकर्ताओं में अपना विश्वास खोया है।
माना जा रहा है कि भाजपा को इस चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी की बहुत आवश्यकता है भले ही वह कहीं चुनाव प्रचार में न जाएं। लखनऊ में उनकी मौजूदगी बीजेपी को उत्साह में रखेगी। लखनऊ से अटल बिहारी वाजपेयी के नामांकन करने के बाद फिर उनके अपने चुनाव प्रचार में न आने पर भी लखनऊ की जनता में उनके प्रति सहानुभूति कम नहीं होगी और जनता उन्हें और ज्यादा सम्मान प्रकट करते हुए उनको और ज्यादा मतों से जिताकर लोकसभा में भेजेगी। भले ही कुछ धनबली प्रत्याशी अपने धन के बल पर लखनऊ संसदीय सीट जीतने के लिए जन-जन की जेब धन से क्यों न भर दें।

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