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नई दिल्ली। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने प्रोफेसर डीपी चट्टोपाध्याय और प्रोफेसर बालासुब्रमण्यम को भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद (आईसीपीआर) के आजीवन उपलब्धि पुरस्कार प्रदान किए। इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने प्रोफेसर चट्टोपाध्याय और प्रोफेसर बालासुब्रमण्यम को बधाई देते हुए कहा कि अस्वस्थ होने के कारण प्रोफेसर डीपी चट्टोपाध्याय के इस कार्यक्रम में मौजूद न होने पर उन्हें बहुत दुख महसूस हो रहा है। प्रधानमंत्री ने उनके शीघ्र स्वस्थ होने की कामना की।
मनमोहन सिंह ने इन दोनों प्रतिष्ठित दार्शनिकों की उपलब्धियों को सचमुच असाधारण बताया और कहा कि प्रोफेसर डीपी चट्टोपाध्याय भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद (आईसीपीआर) के पूर्व चैयरमेन रहे हैं। उनकी एक अनुकरणीय उपलब्धि भारतीय विज्ञान, दर्शन शास्त्र और संस्कृति के इतिहास पर विशाल परियोजना है, जो उन्होंने ही शुरू की थी। प्रोफेसर डीपी चट्टोपाध्याय ने केन्द्र सरकार में मंत्री के रूप में सार्वजनिक जीवन में भी योगदान दिया। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत में दर्शनशास्त्र की शानदार परंपरा रही है। दर्शनशास्त्र हमारी प्राचीन सभ्यता के वास्तुविद रहे हैं, यह ऐसी सभ्यता है, जो हमारे देश में समय-समय पर होने वाले उल्लेखनीय जनसांख्यिकीय, राजनीतिक और आर्थिक बदलावों के बावजूद हजारों वर्षों से निरंतर और अटूट रूप से जारी है। उन्होंने कहा कि हमारे देश को विपुल विविधता का देश कहा जाता है, हमें बहुत-सी भाषाओं का वरदान मिला है। दुनिया के सभी प्रमुख धर्मों के लोग अच्छी खासी संख्या में भारत में रहते हैं, फिर भी हमारा देश एक राष्ट्र है और हम सब एक हैं, हम सब की भारतीयता की साझा भावना है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि अग्रणी ज्ञान के तेजी से विस्तार और विशेषज्ञता के बहुत-से क्षेत्र होने के फलस्वरूप अंतर-विषयी अध्ययनों और एकीकृत ज्ञान की आवश्यकता बढ़ती जा रही है, इसे हासिल करने के लिए दर्शनशास्त्र महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। सभी तरह के विज्ञान का जनक होने के नाते दर्शनशास्त्र अनिवार्य रूप से अंतर विषयी है, इसलिए इसे अर्थशास्त्र या राजनीति शास्त्र की तरह सिर्फ अलग विषय के रूप में नहीं बल्कि अंतर विषयी विषय के तौर पर पढ़ाया जाना चाहिए। मनमोहन सिंह ने आशा प्रकट की कि भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद इस दिशा में किए जा रहे प्रयासों को प्रोत्साहन देगी।