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लोकगायक बालेश्वर की आवाज़ थमी

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बालेश्वर-baleshwar

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के यश भारती पुरस्कार सहित अनेक पुरस्कारों से सम्मानित भोजपुरी लोकगीतों के प्रसिद्ध गायक बालेश्वर यादव का 68 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वे कुछ दिन से बीमार चल रहे थे, उन्हें सांस लेने में तकलीफ के कारण लखनऊ के श्यामा प्रसाद मुखर्जी अस्पताल में भर्ती कराया गया था लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका। उनके परिवार में उनकी पत्नी और तीन पुत्रों सहित भरा पूरा परिवार है। बालेश्वर के नाम से विख्यात इस लोकगीत गायक के निधन पर राजनीतिक, सांस्कृतिक और संगीत जगत के लोगों ने भारी शोक व्यक्त किया है। राज्यपाल बीएल जोशी, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव, भाजपा अध्यक्ष सूर्यप्रताप शाही, उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी, अखिल भारतीय भोजपुरी समाज के अध्यक्ष प्रभुनाथ राय, भोजपुरी लोकगीतों की विख्यात गायिका मालिनी अवस्थी, भोजपुरी कलाकार और गायक मनोज तिवारी सहित मीडिया के लोगों ने अपने शोक संदेशों में कहा है कि बालेश्वर ने भोजपुरी संगीत को शिखर तक पहुंचाया है वह एक ऐसे गायक थे जिनकी गायकी और अंदाज का कोई स्थान नहीं ले सकता।

उत्तर प्रदेश के मऊ जिले के बदनपुर गांव में बालेश्वर भोजपुरी के सदाबहार गायक थे और वे सभी के लिए सहज उपलब्ध कलाकार थे। उनमें आज के गायकों जैसा कोई अहंकार नहीं था। उन्होंने भोजपुरी संगीत में जो योगदान दिया और ऊंचाईयों को छुआ उसी की बदौलत आज भोजपुरी में नए गायक और कलाकार अपनी प्रतिभाओं को निखार रहे हैं। बालेश्वर ने राजनीतिक दलों की रैलियों और पारिवारिक एवं सामाजिक उत्सवों में अपनी गायकी का जलवा कायम किया। उन्होंने इस क्षेत्र में कई कलाकारों को अवसर दिए।

लखनऊ के दारूलशफा में दाखिल होते ही गैराज में बालेश्वर ने भोजपुरी लोकगीतों को अपना सुर ओर संगीत देना शुरू किया। दारूलशफा में उनकी अक्सर महफिल लगा करती थी। उनके चाहने वालों में देश-विदेश के लोग हैं। मॉरीशस, सूरीनाम, गुयाना, फीजी जैसे देशों में उन्होंने भोजपुरी की लोकगायिकी को सम्मान दिलाया। एक समय ऐसा था जब बालेश्वर आकाशवाणी पर गाने के लिए छटपटाते थे। उन्होंने आकाशवाणी पर कई बार स्वर परीक्षा दी जिसके बाद उन्हें वहां अवसर मिला और वे आगे बढ़ते गए। उनके हज़ारों लोकगीत रिकॉर्ड हुए हैं जिन्हें पूर्वांचल में हर जगह सुना जाता है। हालाकि वे बहुत कम पढ़े-लिखे थे लेकिन उनकी भाषा शैली और ज्ञान पर बहुत अच्छी पकड़ थी। उन्होंने भोजपुरी में एक से बढ़कर एक लोकगीत की रचना की और उनको स्वरबद्ध किया। सामाजिक बुराईयों का उन्होंने अपने लोकगीतों के माध्यम से खूब प्रतिकार किया।

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