प्रवीन कुमार भट्ट
देहरादून। गंगा इन दिनों बड़ी दुविधा में है। अनियंत्रित विकास और पर्यावरण असंतुलन के कारण आए प्राकृतिक उतार-चढ़ाव उसके रास्ते और प्रवाह में बड़ी बाधा बन गए हैं। एक ओर पहाड़ों में जोरदार बर्फबारी हो रही है और दूसरी ओर टिहरी में बनाये गये भीमकाय बांध के प्रबंधकों ने अधिक पानी रोककर जलधारा को पहले से भी सिकोड़ दिया है। ठंड बढ़ने के साथ ही पहाड़ों में बर्फबारी तो खूब होती है लेकिन बर्फ के पिघलने की दर घट जाती है जिस कारण नदियां सिकुड़ जाती हैं। गंगा भी इन दिनों इसी समस्या का सामना कर रही है। एक तो नदी अपने उद्गम से ही सिकुड़ी-सिमटी चल रही है, बाकी रही-सही कसर विशालकाय टिहरी बांध ने पूरी कर दी है। असल में टिहरी हाहड्रो पावर कारपोरेशन इन दिनों बांध में जल भंडारण कर रहा है। जिससे बांध से केवल आठ से दस क्यूसेक पानी ही आगे के लिए छोड़ा जा रहा है। टिहरी परियोजना के पानी रोके जाने के बाद टिहरी से आगे नदी सिकुड़ गयी है। टिहरी परियोजना से पहले गंगा में लगभग 50 क्यूसेक पानी आ रहा है।
केन्द्रीय जल आयोग के अनुसार तीर्थनगरी ऋषिकेश में गंगा का जलस्तर 9.31 गेज तक सिमट गया है। टीएचडीसी के अनुसार हिमालयी क्षेत्र में स्नो मेल्टिंग में कमी के कारण गंगा का जलस्तर गिरा है। टिहरी परियोजना के महाप्रबंधक केएल शाह ने बताया कि बर्फ न पिघलने के कारण जलस्तर कम हो रहा है। जलस्तर में कमी के चलते विद्युत उत्पादन भी प्रभावित हो रहा है। गंगा में जलस्तर की कमी से देश-विदेशों से यहां पहुंच रहे श्रद्धालु और सैलानी भी गंगा की निर्मल धारा उसके विशाल प्रवाह को देखने से तरस रहे हैं। ऋषिकेश में तो स्थिति यह है कि गंगा अपने परंपरागत और प्राचीन घाटों से कई मीटर दूर चली गयी है। गंगा में जलस्तर घटने से न सिर्फ पर्यटकों, श्रद्धालुओं को निराश होना पड़ रहा है बल्कि अनेक जलविद्युत परियोजनाओं का जल के अभाव में उत्पादन भी घट गया है।
गंगा की जलधारा के सिकुड़ने से विद्युत उत्पादन और श्रद्धालुओं को ही नुकसान होता है ऐसा नहीं है बल्कि इससे जैव विविधता भी प्रभावित होती है। राष्ट्रीय गंगा नदी प्राधिकरण के सदस्य डॉ रवि चोपड़ा का कहना है कि विद्युत परियोजनाओं के लिए गंगा की धाराओं को रोकने का सबसे बड़ा नुकसान जैव विविधता को है। अध्ययन में पाया गया है कि जिन स्थानों पर टनल में डालने या बांध के लिए जल धाराओं को रोका गया, उसके बाद जलीय जीवों की अनेक प्रजातियां जल में नहीं देखी गईं।
आकाशवाणी के पूर्व केन्द्राध्यक्ष चक्रधर कंडवाल का कहना है कि जलधाराओं को रोककर बांध बनाने के एक नहीं अनेक गंभीर दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। जलधाराओं को रोकने से जलीय पारिस्थितिकी के साथ ही स्थानीय पर्यावरण भी प्रभावित हो रहा है। जलधाराएं रोकने से गढ़वाल में महासीर जैसी अनेक मत्स्य प्रजातियां संकट में हैं। इसी प्रकार जलधाराओं को आधार मानकर खेती करने वाले ग्रामीण भी इन परियोजनाओं के कारण खासे परेशान हैं। पहले ग्रामीण इन सेरो में खेती करते थे लेकिन अब यह मुश्किल हो गया है। इतना ही नहीं मत्स्य वैज्ञानिकों ने भी जलीय पारिस्थतिकी को लेकर अपनी चिंताएं व्यक्त की हैं।