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नई दिल्ली। राजधानी में फोर्ट विलियम कॉलेज की फारसी, अरबी और अंग्रेजी पुस्तकों की प्रदर्शनी लगाई गई। इस प्रदर्शनी का आयोजन ईरानी कल्चर सेंटर के सहयोग से राष्ट्रीय अभिलेखागार ने किया था। उल्लेखनीय है कि फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना टीपू सुल्तान पर ब्रिटेन की निर्णायक विजय की याद में मार्केस ऑफ वेलेजली ने 1800 ईस्वी में कोलकाता में की थी।
यह कॉलेज ब्रिटेन के युवा सिविल अधिकारियों के सामान्य शिक्षण और प्रशिक्षण का केंद्र था। इस कॉलेज में सेना के कनिष्ठ अधिकारियों को भी प्रवेश की अनुमति थी, बाद में यह कॉलेज प्राचीन कालीन अध्ययन कार्यों का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया, जहां भारतीय और ब्रिटिश विद्वान विभिन्न भारतीय भाषाओं के आधुनिकीकरण के लिए विभिन्न भाषायी शोध योजनाओं पर मिलकर काम करते थे, लेकिन कंपनी का निदेशक मंडल इस संस्थान को एक खर्चीले अनुभव की संज्ञा देता था, इसलिए 1806 में मार्केस ऑफ वेलेजली की स्वदेश वापसी के बाद इस संस्थान को अनेक आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ा, जिसके फलस्वरूप यह संस्था एक शिक्षण संस्था के रूप में ही कार्य कर सकी।
बाद के एक दशक के दौरान इस संस्थान ने कंपनी के सिविल अधिकारियों के परीक्षा केंद्र के रूप में भी कार्य जारी रखा, लेकिन बाद में जब शिक्षण संस्थान के रूप में इस कॉलेज की हैसियत समाप्त कर दी गई तो इसकी अधिकाश पुस्तकें और पांडुलिपि एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल के हिस्से में आ गईं, शेष पुस्तकें इम्पीरियल लाइब्रेरी (नेशनल लाइब्रेरी कोलकाता) और इम्पीरियल रिकॉर्ड डिपार्टमेंट (नेशनल आर्काइब्स ऑफ इंडिया अर्थात राष्ट्रीय अभिलेखागार) को सौंप दी गईं। राष्ट्रीय अभिलेखागार में उपलब्ध 742 दुर्लभ पुस्तकें और 199 पांडुलिपि, क्षेत्रीय साहित्यिक, ऐतिहासिक, पशुपालन, ज्योतिषशास्त्र, ऐतिहासिक यात्रा विवरणों, भौगोलिक बायोग्राफिक और आम अभिरूचि के अन्य विषयों के अध्ययन के लिए अत्यंत उपयोगी हैं। यह प्रदर्शनी इंडिया इंटर नेशनल सेंटर की ऐनक्सी में 19 जनवरी तक जारी रही।