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Sunday 31 March 2013 08:57:09 AM
देहरादून। मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने कहा कि उत्तराखंड का नैसर्गिक प्राकृतिक सौंदर्य प्रकृति प्रेमियों का सदैव ही आकर्षक का केंद्र रहा है, प्रदेश में प्रकृति से तालमेल एवं पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखते हुए विकास योजनाओं का क्रियांवयन किया जा रहा है। उन्होंने लगभग 70 प्रतिशत क्षेत्र वनाच्छादित होने के कारण राज्य की विभिन्न विकास योजनाओं के क्रियांवयन में आ रही कठिनाई को दूर करने के लिए समेकित प्रयासों की जरूरत पर बल दिया।
शुक्रवार को जेपी रेजिडेंसी मसूरी में बार एसोसिएशन आफ इंडिया और वन एवं पर्यावरण विभाग उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों के संदर्भ में ‘पर्यावरण और विकास’ पर आधारित दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमीनार का शुभारंभ करते हुए उन्होंने कहा कि प्रदेश में 6 राष्ट्रीय पार्क एवं 7 वन्य जीव विहार हैं। प्रदेश के विकास एवं वन व वन्य जीव संरक्षण के मध्य संतुलन बनाए रखते हुए इसके लिए क्या मानक अपनाए जाएं इस पर मनन किए जाने की आवश्यकता है। मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश में प्राकृतिक संसाधनों की कमी नहीं है, आवश्यकता इनके उपयोग करने की है, इसके लिए यदि वन एवं पर्यावरण से संबंधित मानकों में कुछ छूट मिल सके तो राज्य का बहुत बड़ा हित होगा। सीमांत क्षेत्र होने के कारण यहां सड़क, बिजली, पेयजल, स्वास्थ्य, शिक्षा से संबंधित योजनाओं पर विशेष ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में विकास योजनाओं के क्रियांवयन से पलायन रोकने में मदद मिलेगी। राज्यों में 27 हजार मेगावाट विद्युत उत्पादन क्षमता है। किंतु उत्पादन केवल 3400 मेगावाट ही हो पा रहा है। विद्युत योजनाओं की मंजूरी न मिलने के कारण राज्य को 1000 करोड़ की बिजली क्रय करनी पड़ रही है। पर्यावरण संरक्षण के लिए राज्य में 12 हजार वन पंचायतें गठित हैं, जिनका संचालन अधिकांशत महिलाएं कर रही हैं। उन्होंने कहा कि राज्य में पर्यटन के साथ ही उद्योगों की स्थापना में तेजी आई है, इसके लिए सिंगल विंडो सिस्टम लागू किया गया है। राज्य को वन गुजरों के पुनर्वास एवं वन्य जंतुओं से नुकसान का भी सामना करना पड़ रहा है।
समारोह में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यून के अध्यक्ष न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार ने कहा कि योजनाओं के निर्माण के लिए सभी औपचारिकताएं पहले ही पूर्ण कर ली जानी चाहिएं, एक बार योजना की स्वीकृति दिए जाने पर उसे रोकना नहीं चाहिए, इससे उसकी लागत में बढ़ोत्तरी के साथ ही समय पर उसका लाभ नहीं मिल पाता है। पर्वतीय क्षेत्र के निवासियों को उनकी आवश्यकता के अनुरूप सुविधाओं का लाभ मिले, इसके लिए प्रयास किए जाने पर भी उन्होंने बल दिया। इंडियन बार एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रवीन एच पारिख ने कहा कि पर्यावरण विकास में बाधक नहीं सहयोगी बने, इसके लिए समन्वय पर ध्यान देना होगा। पर्यावरण संरक्षण व इससे संबंधित समस्या सभी पर्वतीय क्षेत्रों की है, न्याय के साथ विकास की बात करते हुए उन्होंने समन्वित विकास और पर्यावरण संरक्षण के समन्वय पर ध्यान देने की आवश्यकता बताई।
इस अवसर पर उत्तराखंड बार एसोसिएशन के अध्यक्ष डीके शर्मा तथा सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक गुप्ता ने भी विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम में प्रमुख सचिव न्याय डीके गैरोला, प्रमुख वन संरक्षक डॉ आरबीएस रावत सहित बार एसोसिएशन के सदस्य उपस्थित थे।