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Monday 31 August 2020 05:43:13 PM
देहरादून। पहाड़ों पर विकास अपने साथ भूस्खलन जैसी आपदाएं भी ला रहा है। पहाड़ पर एक अध्ययन में यह निष्कर्ष सामने आया है। अधिकतर पहाड़ी इलाकों की तरह ही उत्तराखंड के लोकप्रिय पर्वतीय पर्यटन स्थल मसूरी में जो भूस्खलन की घटनाएं हुई हैं, उनमें कई भूस्खलन के कारण उन क्षेत्रों में विकास से जुड़ी गतिविधियां रही हैं। पहाड़ी क्षेत्र में ऐसी आपदा के बढ़ते खतरों ने वैज्ञानिकों को मसूरी और उसके आसपास के क्षेत्रों की भूस्खलन के प्रति संवेदनशीलता का मानचित्रण करने को प्रेरित किया तो उनके अध्ययन से पता चला कि इस क्षेत्र का 15 प्रतिशत हिस्सा भूस्खलन के कगार पर खड़ा है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग से जुड़े एक स्वायत्त संस्थान वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (डब्ल्यूआईएचजी) के वैज्ञानिकों ने निचले हिमालयी क्षेत्र मसूरी और उसके आसपास के 84 वर्ग किलोमीटर का अध्ययन किया और पाया कि भाटाघाट, जॉर्ज एवरेस्ट, केम्प्टी फॉल, खट्टा पानी, लाइब्रेरी रोड, गलोगी धार और हाथी पांव जैसे बसावट वाले अतिसंवेदनशील क्षेत्रों का बड़ा हिस्सा ख़तरनाक भूस्खलन क्षेत्र है, जोकि 60 डिग्री से अधिक ढलान वाले अत्यधिक खंडित क्रोल चूना पत्थर से आच्छादित हैं।
भूस्खलन संवदेनशीलता मानचित्रण पर जर्नल ऑफ अर्थ सिस्टम साइंस में प्रकाशित अध्ययन में दिखाया गया है कि क्षेत्र का 29 प्रतिशत हिस्सा हल्के भूस्खलन और 56 प्रतिशत हिस्सा बहुत बड़े स्तरपर भूस्खलन वाले अति संवेदनशील क्षेत्र में आता है। डब्ल्यूआईएसजी के शोधकर्ताओं ने इस अध्ययन के लिए भौगोलिक सूचना प्रणाली और उपग्रह से प्राप्त हाई-रिज़ॉल्यूशन चित्रों का उपयोग करते हुए द्विभाजक सांख्यिकीय यूल गुणांक विधि का उपयोग किया है। वैज्ञानिकों के अनुसार अध्ययन करते समय क्षेत्र में भूस्खलन के विभिन्न संभावित कारकों में लिथोलॉजी, लैंड्यूज-लैंडकवर, ढलान, पहलू, वक्रता, ऊंचाई, सड़क-कटान जल निकासी और लाइनामेंट आदि को शामिल किया गया। अध्ययन टीम ने भूस्खलन के कारणों के एक विशेष वर्ग का पता लगाने के लिए लैंडस्लाइड ऑक्युवेशन फेवरोबिलिटी स्कोर के आंकड़े एकत्र किए और बाद में जीआईएस प्लेटफॉर्म में लैंडस्लाइड सुसाइड इंडेक्स बनाने के लिए भूस्खलन के प्रत्येक कारक के प्रभावों की अलग-अलग गणना की।
एलएसआई को प्राकृतिक मानकों के आधार पर पांच क्षेत्रों में पुनर्वर्गीकृत किया गया है। मानचित्र की सटीकता को सक्सेस रेट कर्व और प्रिडिक्शन रेट कर्व का उपयोग करके सत्यापित किया गया है, जो एसआरसी के लिए एरिया अंडर कर्व को 0.75 के रूपमें और पीआरसी को 0.70 के रूपमें दिखाता है। यह भूस्खलन वाले विभिन्नत तरह के अति संवेदनशील क्षेत्रों और भूस्खलन की घटना वाले क्षेत्रों के बीच परस्पर संबंधों को दर्शाता है। वैज्ञानिक अध्ययन से भारत के विभिन्न हिस्सों में बड़े पैमाने पर होने वाले भूस्खलन, इसके जोखिम और इस बारे में पर्वतीय कस्बों की संवेदनशीलता का मूल्यांकन करने में काफी मदद मिल सकती है। यह अध्ययन विकास योजनाएं बनाने वालों के लिए एक बड़ी चेतावनी है, जिसमें जान और माल की बड़ी हानियां शामिल हैं। विज्ञानियों का कहना है कि ऐसा विकास किसी मतलब का नहीं है, जो भूगोल को ही खतरनाक स्तर पर बदल दे। विज्ञानी कहते हैं कि पहाड़ों पर विकास योजनाओं ने जहां सुविधाजनक स्थितियां बनाई हैं, वहीं भविष्य की दैवीय आपदाओं के भी द्वार खोल दिए हैं, आखिर उत्तराखंड के बद्रीनाथ धाम में आई दैवीय आपदा और क्या थी?