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Monday 22 February 2021 01:49:21 PM
नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर ‘शिक्षा और समाज में समावेशन के लिए बहुभाषावाद को प्रोत्साहन’ विषय पर वेबिनार का शुभारंभ किया, जिसको शिक्षा मंत्रालय, संस्कृति मंत्रालय और आईजीएनसीए ने संयुक्त रूपसे आयोजित किया था। उपराष्ट्रपति ने कक्षा 5 तक मातृभाषा को शिक्षा का प्राथमिक माध्यम बनाने की अपील की और सुझाव दिया कि किसी बच्चे को ऐसी भाषा में शिक्षा देना, जो घर पर नहीं बोली जाती, विशेष रूपसे प्राथमिक चरण में उसके सीखने में एक बड़ी बाधा हो सकती है। उन्होंने कई अध्ययनों का उल्लेख करते हुए कहा कि शिक्षा के शुरुआती चरण में मातृभाषा में शिक्षा देने से बच्चे के आत्मसम्मान में इजाफा होगा और उसकी रचनात्मक भी बढ़ेगी। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को दूरदर्शी और प्रगतिशील दस्तावेज बताते हुए उन्होंने इसको पूर्ण रूपसे लागू करने का अनुरोध किया।
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने मातृभाषा को प्रोत्साहन देने के लिए पांच प्रमुख क्षेत्रों पर जोर दिया। उन्होंने प्राथमिक शिक्षा में मातृभाषा के उपयोग, प्रशासन एवं अदालत की कार्यवाही और उनसे जुड़े फैसलों में स्थानीय भाषाओं के उपयोग पर प्रकाश डाला। वेंकैया नायडू ने कहा कि सैकड़ों भाषाओं के सह अस्तित्व के साथ भाषाई विविधता हमारी प्राचीन सभ्यता के केंद्र में है। वेंकैया नायडू ने कहा कि मातृभाषा को सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान का अहम लिंक, सामूहिक ज्ञान और बुद्धिमत्ता का भंडार बताया और इसलिए इसे सुरक्षित, संरक्षित और प्रोत्साहित किए जाने की जरूरत है। वेंकैया नायडू ने बहुभाषी समाज के लिए सरकार की राष्ट्रीय अनुवाद मिशन, भारतवाणी परियोजना जैसी सरकार की विभिन्न पहलों और एक भारतीय भाषा विश्वविद्यालय और भारतीय अनुवाद एवं व्याख्या संस्थान के स्थापना के प्रस्ताव की सराहना की।
उपराष्ट्रपति ने दोहराया कि निरंतर उपयोग से ही भाषाएं समृद्ध होती हैं और हर दिन एक मातृभाषा दिवस होना चाहिए। उन्होंने घरों, समुदाय, बैठकों और प्रशासन में खुलकर एवं आत्मविश्वास से मातृभाषा में बातचीत पर गर्व करने का आह्वान किया। उपराष्ट्रपति ने अंतर्राष्ट्रीय वर्चुअल सुलेख प्रदर्शनी का भी शुभारंभ किया। वेबिनार में शिक्षामंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, संस्कृति राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) प्रह्लाद सिंह पटेल, शिक्षा राज्यमंत्री संजय धोत्रे और सदस्य सचिव आईजीएनसीए डॉ सच्चिदानंद जोशी भी शामिल हुए। इस अवसर पर रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा कि भाषा का महत्व न सिर्फ राष्ट्रीय एकता में बल्कि देश की संस्कृति की मजबूती में निहित है। उन्होंने कहा कि अध्ययन से साबित होता है कि 90 प्रतिशत बच्चों का दिमाग 6 साल तक की उम्र में विकसित होता है और हमारे बच्चों के समग्र विकास के लिए यह आवश्यक है कि ज्ञान मातृभाषा में हासिल किया जाए।
शिक्षामंत्री रमेश पोखरियाल ने कहा कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2021 में मातृभाषाओं के विकास पर अधिकतम ध्यान दिया गया है, सरकार ने अपनी नीति के साथ बहुभाषावाद के प्रोत्साहन पर जोर दिया, जिससे हमारे बच्चे अपने देश की भाषाओं की व्यापक संपदा से परिचित हो सकें। उन्होंने कहा कि यह पहली शिक्षा नीति है, जो विद्यार्थियों को अपनी पसंद के विषय और भाषा में सशक्त करती है, नीति सिफारिश करती है कि कम से कम कक्षा 5 तक निर्देश का माध्यम मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा होगी। रमेश पोखरियाल ने कहा कि यह शिक्षा नीति कई नई पहलों की मांग करती है, जिससे भारत में एक वास्तविक बहुभाषी समाज विकसित करने में मदद मिलेगी। संस्कृति राज्यमंत्री ने कहा कि हर मातृभाषा का अपना एक शब्द, अपना स्वभाव, अपनी अभिव्यक्ति होती है, जब हम दूसरी भाषाएं सीखते हैं तो स्वाभाविक रूपसे आपके अंदर मातृभाषा विकसित होती है, जब अपनी मातृभाषा में बोलते हैं तो हर किसी को जुड़ाव और आत्मीयता महसूस होती है। उन्होंने कहा कि जिस तरह से संस्कृति हमारे व्यक्तित्व विकास को प्रभावित करती है, उसी तरह से मातृभाषा भी व्यक्ति के विकास मजबूती देती है।
शिक्षा राज्यमंत्री ने कहा कि यूनेस्को के 1999 में 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूपमें घोषणा के क्रम में 2015 से इस दिन को भव्य रूपसे मनाया जा रहा है, जिसमें देशभर के सभी उच्च शिक्षा संस्थान और स्कूलों की भागीदारी होती है और वाद-विवाद, गायन, निबंध लेखन और चित्रकला प्रतियोगिता, संगीत और नाटक प्रदर्शन, प्रदर्शनी आदि आयोजित की जाती हैं। उन्होंने कहा कि इन आयोजनों का उद्देश्य वैश्विक स्तर पर लोगों द्वारा बोली जाने वाली सभी भाषाओं को संरक्षण और सुरक्षा को बढ़ावा देना तथा भाषाई और सांस्कृतिक जागरुकता व भाषाओं के बहुभाषावाद को प्रोत्साहन देना है। उन्होंने कहा कि भारत सरकार ने सभी भाषाओं को प्रोत्साहन और भारतीय शिक्षा प्रणाली में मातृभाषा को मजबूती देने के लिए एक सक्रिय रणनीति अपनाई है। वेबिनार में वक्ताओं ने मातृभाषा के महत्व और उसके संरक्षण पर विस्तार से बात की, जो भावी पीढ़ियों के लिए एक खजाना होंगी।