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Friday 7 May 2021 01:49:20 PM
नई दिल्ली। ट्राइफेड के प्रबंध निदेशक प्रवीर कृष्ण ने एक ऑनलाइन परिचर्चा में कहा है कि वन धन विकास केंद्र ग्रामीण जनजातीय वन अर्थव्यवस्था की कायापलट करने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। उन्होंने कहा कि आदिवासी आबादी का सशक्तिकरण ट्राइफेड का मुख्य उद्देश्य है, हमारे सभी प्रयास चाहे उनकी उपज के लिए उन्हें बेहतर मूल्य दिलाना हो, मूल उपज के मूल्यवर्धन में मदद करना हो या बड़े बाजारों तक उनकी पहुंच सक्षम बनाना हो, इसीको पाने के लिए लक्षित हैं। उन्होंने कहा कि वन धन योजना विशेष रूपसे ग्रामीण आदिवासी अर्थव्यवस्था की कायापलट करने में एक परिवर्तनकारी भूमिका निभा रही है। प्रवीर कृष्ण मुख्य अतिथि के रूप में ग्रामीण परिवर्तन: प्राकृतिक से सांस्कृतिक तक विषय पर 5 मई 2021 को अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे।
ग्रामीण परिवर्तन: प्राकृतिक से सांस्कृतिक तक विषय पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन को सेंटर फॉर रूरल डेवलपमेंट एंड इनोवेटिव सस्टेनेबल टेक्नोलॉजी, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान खड़गपुर ने आयोजित किया था और 5 व 6 मई को एक ऑनलाइन सम्मेलन भी कराया गया। इस दो दिवसीय ऑनलाइन सम्मेलन में जिन विषयों पर चर्चाएं हुईं, उनमें ग्रामीण रोजगार सृजन, भौतिक और सेवाओं संबंधी बुनियादी ढांचे का नियोजन और कार्यान्वयन, सामाजिक कल्याण के लिए पारंपरिक और आधुनिक तकनीकी ज्ञान का उपयोग, टिकाऊ प्राकृतिक संसाधनों जल जंगल जमीन का नियोजन और ग्रामीण स्वास्थ्य और स्वच्छता शामिल हैं। प्रवीर कृष्ण ने ग्रामीण वनाश्रित जनजातीय अर्थव्यवस्था में बदलाव लाने में वन धन योजना की परिवर्तनकारी भूमिका पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने वन धन ट्राइबल स्टार्ट-अप कार्यक्रम के पीछे के तर्क और दृष्टिकोण को समझाया। वन धन ट्राइबल स्टार्ट-अप कार्यक्रम या वन धन योजना, न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) और लघु वनोपज के लिए वैल्यू चेन के विकास के जरिए लघु वनोपज की मार्केटिंग के लिए बनाई गई प्रणाली का हिस्सा है।
जनजातीय मामलों के मंत्रालय की एक फ्लैगशिप योजना अपनी ताकत 2005 के वन अधिकार अधिनियम से लेती है का उद्देश्य वन उपजों के आदिवासी संग्रहकर्ताओं को लाभकारी और उचित मूल्य दिलाना है, जो कि बिचौलियों की ओर से उन्हें दिए जानेवाले मूल्य से लगभग तीन गुना अधिक होगा, जो उनकी आय को तीन गुना बढ़ाएगा। वन धन ट्राइबल स्टार्ट-अप इसी योजना का हिस्सा है, इसमें वनों पर आश्रित जनजाति आबादी के लिए स्थायी आजीविका सृजित करने सुविधा देने के लिए वन धन केंद्रों की स्थापना करके लघु वनोपजों में मूल्यवर्धन, उनकी ब्रांडिंग और मार्केटिंग पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। यह एमएसपी में भी बखूबी मदद करता है, क्योंकि यह आदिवासी संग्रहकर्ताओं, वनाश्रितों और आदिवासी कारीगरों के लिए रोज़गार सृजन के एक स्रोत के रूपमें सामने आया है। पिछले 18 महीने में वन धन विकास योजना ने देशभर में राज्यों की नोडल और कार्यांवयन एजेंसियों की सहायता से अपने त्वरित अनुकूलन और व्यवस्थित कार्यांवयन के साथ जबरदस्त जमीनी आधार हासिल किया है।
ट्राइफेड ने 31 मार्च 2021 तक 33360 वन धन विकास केंद्र प्रत्येक में 300 वन संग्रहकर्ता के 2224 वन धन विकास केंद्र कलस्टर्स को मंजूरी दी है। एक वन धन विकास केंद्र में 20 आदिवासी सदस्य होते हैं। ऐसे 15 वन धन विकास केंद्र मिलकर एक वन धन विकास केंद्र क्लस्टर बनाते हैं। ट्राइफेड के अनुसार वन धन विकास केंद्र क्लस्टर्स, वन धन विकास केंद्रों के उत्पादन को बढ़ाते हुए लागत को कम करने, आजीविका और बाजार से संपर्क उपलब्ध कराने के साथ-साथ लगभग 23 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों में लगभग 6.67 लाख आदिवासी वन संग्रहकर्ताओं को उद्यमशीलता का अवसर प्रदान करेंगे। ट्राइफेड ने कहा ही है कि अबतक वन धन स्टार्ट-अप कार्यक्रम ने सभी तरह से 50 लाख आदिवासियों को प्रभावित किया है। मणिपुर विशेष रूप से विजेता राष्ट्र के रूपमें उभरा है, जहां स्थानीय आदिवासियों के लिए वन धन कार्यक्रम रोज़गार के प्रमुख स्रोत के रूपमें सामने आया है। अक्टूबर 2019 में मणिपुर में कार्यक्रम को शुरू करने से अब तक 100 वन धन विकास कलस्टर्स बनाए गए हैं, जिनमें से 77 संचालित हैं। ये कलस्टर्स 1500 वन धन विकास केंद्र बनाते हैं, जो 30000 आदिवासी उद्यमियों को लाभ पहुंचा रहे हैं।
कलस्टर्स लघु वनोपज का संग्रह करने, प्रोसेसिंग, पैकेजिंग और लघु वनोपज से बने मूल्यवर्धित उत्पादों की मार्केटिंग करने में शामिल हैं। योजना के कार्यांवयन प्रारूप के मापनीयता और प्रतिकृति एक सकारात्मक बिंदु है, जिसने इसे पूरे भारत में विस्तार दिया है। पूर्वोत्तर 80 प्रतिशत वीडीवीके की स्थापना के साथ सबसे आगे चल रहा है। महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश ऐसे अन्य राज्य हैं, जहां पर इस योजना को व्यापक नतीजों के साथ स्वीकार किया गया है। इसके अलावा इस पूरी पहल की सुंदरता यह है कि यह बाजार से संपर्क बनाने में सफल रहा है। इनमें से कई आदिवासी उद्यम बाजारों से जुड़े हैं। फलों की कैंडी (आंवला, अनानास, जंगली सेब, अदरक, अंजीर, इमली), जैम (अनानास, आंवला, आलूबुखारा), रस और शरबत (अनानास, आंवला, जंगली सेब, आलूबुखारा, बर्मी अंगूर) मसाले (दालचीनी, हल्दी, अदरक), अचार (बांस के अंकुर, राजा मिर्च), प्रोसेस्ड गिलोय तक उत्पादों की एक लंबी सूची है, ये सभी वन धन विकास केंद्रों में प्रोसेस्ड और पैक होकर बाजार में पहुंचते हैं, और यहां तक कि ट्राइब्स इंडिया डॉट कॉम (TribesIndia.com) और ट्राइब्स इंडिया के आउटलेट्स के माध्यम से इनकी बिक्री की जा रही है।
प्रवीर कृष्ण ने संकल्प से सिद्धि-विलेज और डिजिटल कनेक्ट ड्राइव के बारे में भी विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि 1 अप्रैल 2021 से शुरू हुए इस 100 दिन के अभियान में 150 टीमें शामिल हैं जो प्रत्येक क्षेत्र में 10-10 गांवों का दौरा कर रहीं हैं, अगले 100 दिन में प्रत्येक क्षेत्र में 100 गांव और देशभर में 1500 गांव इसके दायरे में आ जाएंगे। उन्होंने कहा कि इस अभियान का मुख्य उद्देश्य इन गांवों में वन धन विकास केंद्रों को सक्रिय करना है, वन धन इकाइयों से अगले 12 महीने में 200 करोड़ रुपये की बिक्री प्राप्त करने का लक्ष्य है, गांवों का दौरा करने वाली टीमें ट्राइफूड, स्फूर्ति इकाइयों को बड़े उद्यमों के तौर पर क्लस्टर बनाने के लिए जगह चिन्हित करने और संभावित वीडीवीके को चुनने का भी काम करेंगी। उन्होंने विभिन्न मंत्रालयों और संगठनों के अभियानों के साथ ट्राइफेड के जुड़ाव के बारे में भी बात की। उन्होंने बताया कि कार्यक्रम को एमएसएमई, एमओएफपीआई और ग्रामीण विकास मंत्रालय जैसे विभिन्न मंत्रालयों की योजनाओं के अनुरूप बनाने के लिए एमओयू किए गए हैं। यह एमएसएमई की स्फूर्ति, ईएसडीपी, एमओएफपीआई के फूड पार्क और ग्रामीण विकास मंत्रालय के भीतर आने वाले एनआरएलएम के साथ वन धन विकास केंद्रों और इसके कलस्टर्स के जुड़ाव के तौरपर सामने आ रहा है।