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ऑनलाइन फरेबी पकड़ेगा 'फेक-बस्टर'

किसी वेबिनार या वर्चुअल बैठक में घुस जाते हैं ये फरेबी

भारत व ऑस्ट्रेलियाई अनुसंधानकर्ताओं ने किया विकसित

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Wednesday 19 May 2021 03:12:11 PM

fakebuster

नई दिल्ली। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रोपड़ पंजाब और मॉनाश यूनिवर्सिटी ऑस्ट्रेलिया के अनुसंधानकर्ताओं ने ‘फेक-बस्टर’ नाम से एक ऐसा अनोखा डिटेक्टर ईजाद किया है, जो किसी भी ऑनलाइन फरेबी का पता लगा सकता है। विदित हो कि ऐसे फरेबी बिना किसी जानकारी के वर्चुअल सम्मेलन में घुस जाते हैं। इस तकनीक के जरिए सोशल मीडिया में भी फरेबियों को पकड़ा जा सकता है, जो किसी को बदनाम करने या उसका मजाक उड़ाने के लिए उसके चेहरे की आड़ लेते हैं। मौजूदा महामारी के दौर में ज्यादातर कामकाज और आधिकारिक बैठकें ऑनलाइन हो रही हैं। इस अनोखी तकनीक से पता लगाया जा सकता है कि किस व्यक्ति के वीडियो के साथ छेड़छाड़ की जा रही है या वीडियो कॉंफ्रेंस के दौरान कौन घुसपैठ कर रहा है। इससे पता चल जाएगा कि कौन फरेबी वेबिनार या वर्चुअल बैठक में घुसा है, ऐसी घुसपैठ अक्सर आपके सहकर्मी या वाजिब सदस्य की फोटो के साथ खिलवाड़ करके की जाती है।
फेक-बस्टर तकनीक विकास करने वाली चार सदस्यीय टीम के सदस्य डॉ अभिनव धाल ने कहा है कि बारीक कृत्रिम बौद्धिकता तकनीक से मीडिया विषयवस्तु के साथ फेरबदल करने की घटनाओं में नाटकीय इजाफा हुआ है, ऐसी तकनीकें दिन प्रतिदिन विकसित होती जा रही हैं, इसके कारण सही-गलत का पता लगाना मुश्किल हो गया है, जिससे सुरक्षा पर दूरगामी असर पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि इस टूल की सटीकता 90 प्रतिशत से अधिक है। डॉ अभिनव धाल का कहना है कि फेक न्यूज़ के प्रसार में मीडिया विषयवस्तु में हेरफेर की जाती है, यही हेरफेर पोर्नोग्राफी और अन्य ऑनलाइन विषयवस्तु के साथ भी की जाती है, जिसका गहरा प्रभाव पड़ता है। टीम में एसोसिएट प्रोफेसर रामनाथन सुब्रमण्यन और दो छात्र विनीत मेहता तथा पारुल गुप्ता हैं। ‘फेक-बस्टरः ए डीपफेक्स डिटेक्शन टूल फॉर वीडियो कॉंफ्रेंसिंग सीनेरियोज़’ को पिछले महीने अमेरिका में इंटेलीजेंट यूजर इंटरफेस के 26वें अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में पेश किया गया था।
डॉ अभिनव धाल ने कहा कि इस तरह का हेरफेर वीडियो कॉंफ्रेंसिंग में भी होने लगा है, जहां घुसपैठ करने वाले उपकरणों के जरिए चेहरे के हावभाव बदलकर घुसपैठ करते हैं। यह फरेब लोगों को सच्चा लगता है, जिसके गंभीर परिणाम होते हैं। वीडियो या विजुअल हेरफेर करने को डीपफेक्स कहा जाता है, जिसका ऑनलाइन परीक्षा या नौकरी के लिए होनेवाले साक्षात्कार के दौरान भी गलत इस्तेमाल किया जाता है। यह सॉफ्टवेयर वीडियो कॉंफ्रेंसिंग सॉल्यूशन से अलग है और इसे ज़ूम और स्काइप एप्लीकेशन पर परखा जा चुका है। डीपफेक डिटेक्शन टूल फेक-बस्टर ऑनलाइन और ऑफलाइन, दोनों तरीके से काम करता है। इसे मौजूदा समय में लैपटॉप और डेस्कटॉप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
एसोसिएट प्रोफेसर सुब्रमण्यन का कहना है कि हमारा उद्देश्य है कि नेटवर्क को छोटा और हल्का रखा जाए, ताकि इसे मोबाइल फोन और अन्य डिवाइस पर इस्तेमाल किया जा सके। उन्होंने कहा कि उनकी टीम इस वक्त फर्जी ऑडियो को पकड़ने की डिवाइस पर भी काम कर रही है। टीम का दावा है कि फेक-बस्टर सॉफ्टवेयर ऐसा पहला टूल है, जो डीपफेक डिटेक्शन प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करके लाइव वीडियो कॉन्‍फ्रेंसिंग के दौरान फरेबियों को पकड़ता है। इस डिवाइस का परीक्षण हो चुका है और जल्द ही इसे बाज़ार में उतार दिया जाएगा।

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