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Friday 25 June 2021 02:10:13 PM
नई दिल्ली। केंद्रीय पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) मनसुख मंडाविया ने वीडियो कॉंफ्रेंस के माध्यम से समुद्री राज्य विकास परिषद (एमएसडीसी) की 18वीं बैठक में कहा है कि एमएसडीसी का उद्देश्य राज्यों और केंद्र दोनों केलिए फायदेमंद समुद्री क्षेत्र के विकास के लिए एक राष्ट्रीय योजना विकसित करना और क्षेत्र के लिए सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाना है। उन्होंने कहा कि देश का विकास राज्यों के विकास पर निर्भर करता है और एमएसडीसी सहकारी संघवाद का सबसे अच्छा उदाहरण है। उन्होंने कहा कि अलग-अलग होकर हम विकास नहीं कर सकते, विकास केलिए एकजुट होना बेहद जरूरी है। भारतीय बंदरगाह विधेयक-2021 की आवश्यकता पर बल देते हुए उन्होंने राज्य सरकारों से अनुरोध किया कि वे इस अधिनियम को राजनीतिक मुद्दे के रूपमें न देखें, बल्कि इसे विकास के मुद्दे के रूपमें देखें।
मनसुख मंडाविया ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारतीय बंदरगाह विधेयक-2021 केंद्र सरकार और समुद्री क्षेत्र वाले राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की भागीदारी से समुद्र तट के बेहतरीन प्रबंधन और उपयोग की सुविधा प्रदान करेगा। उन्होंने राज्यों को आश्वासन दिया कि पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय एक व्यापक बंदरगाह विधेयक विकसित करने के लिए राज्यों के सभी सुझावों का स्वागत करेगा। जलमार्ग राज्यमंत्री ने बैठक में समुद्री क्षेत्र की समग्र प्रगति से संबंधित बहुत महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि केंद्र और राज्य सरकार दोनों संयुक्त रूपसे समुद्री क्षेत्र के विकास पर काम करेंगे, इसमें कई बंद पड़े बंदगाहों का विकास भी शामिल है। मनसुख मंडाविया ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सोच के अनुसार विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए समयबद्ध तरीके से सामूहिक कार्रवाई की आवश्यकता है और ऐसे में एमएसडीसी इसपर चर्चा करने केलिए एक सक्रिय मंच है।
बैठक में जिन प्रमुख बिंदुओं पर चर्चा की गई वे हैं-भारतीय बंदरगाह विधेयक-2021, राष्ट्रीय समुद्री विरासत संग्रहालय, बंदरगाहों के साथ रेल और सड़क संपर्क, समुद्री संचालन और समुद्री विमान संचालन के लिए फ्लोटिंग जेटी, सागरमाला परियोजनाएं और नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन परियोजनाएं। वित्तीय वर्ष 2020 में भारतीय बंदरगाहों पर यातायात का संचालन लगभग 1.2 बिलियन मीट्रिक टन है, जिसके 2030 तक बढ़कर 2.5 बिलियन मीट्रिक टन होने की उम्मीद है। भारत में केवल कुछ बंदरगाहों के पास ही सुविधा है, जिससे जहाजों के पलटने जैसे स्थितियों से निपटा जा सकता है। इसके अलावा भारत के तट पर लगभग 100 ऐसी बंदरगाहें हैं, जो चालू हालत में नहीं है। जहाजों के लगातार बढ़ते आकार केलिए डीप ड्राफ्ट पोर्ट होने अनिवार्य हैं, वास्तव में मेगा पोर्ट्स को विकसित करने की आवश्यकता है। इसी तरह बंद बंदरगाहों को भी प्राथमिकता पर विकसित करने की आवश्यकता है। मौजूदा बंदरगाहों को बढ़ाने या नई बंदरगाहों को एक कुशल और टिकाऊ तरीके से विकसित करने केलिए एक राष्ट्रीयस्तर के एकीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जो बदले में माल ढुलाई लागत को काफी हदतक कम कर देगा और व्यापार में वृद्धि लाएगा।
राष्ट्रीयस्तर की एकीकृत बंदरगाह योजना को विश्व बैंक की पोर्ट रिफॉर्म बुक और यूएनसीटीएडी की विकासशील देशों में योजनाकारों के लिए पुस्तिका आदि विभिन्न रिपोर्टों में उजागर किया गया है। बंदरगाहों ने इस तरह के सम्मेलनों में निर्धारित सभी आवश्यकताओं को लागू करने के लिए सुरक्षा और प्रदूषण की रोकथाम से संबंधित बिंदुओं को आईपी विधेयक-2021 में शामिल किया है। इसीके तहत राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर को गुजरात के लोथल में लगभग 350 एकड़ के क्षेत्र को भारत की समुद्री विरासत को समर्पित एक विश्वस्तरीय संग्रहालय के रूपमें विकसित किया जाना है। इसको एक समुद्री संग्रहालय, लाइटहाउस संग्रहालय, समुद्री थीम पार्क और मनोरंजन पार्क आदि के साथ अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थल के रूपमें विकसित किया जाएगा। एनएमएचसी के प्रमुख आकर्षणों में से एक यह है कि प्रत्येक तटीय राज्य और केंद्रशासित प्रदेश का अपनी विशिष्ट समुद्री विरासत को प्रदर्शित करने के लिए एक पवेलियन होगा। बैठक में तटीय राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से अनुरोध किया गया है कि वे अपने-अपने पवेलियन का स्वयं विकास करें।
बंदरगाहों को अन्य जगहों से जोड़ना भी महत्वपूर्ण है और मंत्रालय अपनी प्रमुख पहल सागरमाला कार्यक्रम के माध्यम से पोर्ट कनेक्टिविटी पर जोर दे रहा है। मंत्रालय ने 45,051 करोड़ रुपये की लागत वाली 98 पोर्ट-रोड कनेक्टिविटी परियोजनाएं शुरू की हैं। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय, प्रमुख बंदरगाहों, समुद्री बोर्डों और राज्य सड़क विकास कंपनियों जैसी विभिन्न कार्यांवयन एजेंसियों के साथ इन परियोजनाओं को चलाया जा रहा है, जिनमें से 13 परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं और 85 परियोजनाएं विकास और कार्यांवयन के विभिन्न चरणों में हैं। इसी तरह 75,213 करोड़ रुपए की लागत वाली 91 पोर्ट-रेल कनेक्टिविटी परियोजनाएं भी चल रही हैं। जलमार्ग मंत्रालय भारतीय रेल, प्रमुख बंदरगाहों और समुद्री बोर्डों के साथ इन्हें पूरा कर रहा है, जिनमें से 28 परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं और 63 परियोजनाएं विकास और कार्यान्वयन के विभिन्न चरणों में हैं। फंडिंग से जुड़े मुद्दों और उन परियोजनाओं से संबंधित मुद्दों का निवारण करने के लिए जो पीपीपी मोड के तहत विकसित होने के लिए उपयुक्त नहीं हैं, राज्य एवं केंद्र सरकार और निजी खिलाड़ियों के बीच एक विशेष प्रयोजन वाहन के गठन की सलाह दी गई है, जिसके लिए राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों की तरफ से रुचि जताने का अनुरोध किया गया है।
समुद्री संचालन और समुद्री विमान सेवाओं के लिए फ्लोटिंग जेटी का अन्य देशों में व्यापक रूपसे उपयोग किया जाता है। परंपरागत जेटी की तुलना में फ्लोटिंग जेट्टी के कई फायदे हैं जैसे-लागत प्रभावशीलता, त्वरित निर्माण, न्यूनतम पर्यावरणीय प्रभाव, विस्तार और स्थानांतरित करने में आसान और तेज लहरों वाले स्थानों के लिए उपयुक्त आदि। बंदरगाहों, जलमार्गों और तटों के लिए राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी केंद्र आईआईटी मद्रास को भारतीय तटरेखा में 150 से अधिक फ्लोटिंग जेटी विकसित करने के लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने का आदेश दिया गया था और काम प्रगति पर है। फ्लोटिंग जेट्टी का मुख्य रूपसे फिशिंग हार्बर्स/ फिश लैंडिंग सेंटर्स और सीप्लेन संचालन के लिए उपयोग करने का प्रस्ताव है। पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय ने बताया कि राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को अपनी परियोजना के लिए फ्लोटिंग जेटी/ प्लेटफॉर्म का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है और राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से फ्लोटिंग जेटी विकसित करने के लिए अधिक स्थानों की पहचान करने का अनुरोध किया गया है। प्रस्ताव के उचित अनुमोदन के बाद परियोजनाओं पर सागरमाला से फंडिंग के लिए विचार किया जा सकता है।
पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय में विभिन्न बुनियादी ढांचा परियोजनाएं हैं, जो सागरमाला कार्यक्रम और नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन के तहत की जाती हैं। पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय ने सागरमाला कार्यक्रम के तहत कार्यांवयन के लिए 5.53 लाख करोड़ रुपये के निवेश की 802 परियोजनाओं को विकसित करने का प्रस्ताव रखा है, इनमें से 87,000 करोड़ रुपये की लागत वाली 168 परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं, 2.18 लाख करोड़ की लागत वाली 242 परियोजनाएं चालू हैं। इसी तरह जलमार्ग मंत्रालय 1.28 लाख करोड़ की लागत वाली 123 परियोजनाओं को एनआईपी के तहत 2020 से चला रहा है। समुद्रतट समृद्धि योजना के तहत तट आधारित समृद्धि के लिए 1226 परियोजनाएं हैं, जिनमें से 192 परियोजनाओं पर काम चल रहा है। जलमार्ग मंत्रालय ने तटीय राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से उन परियोजनाओं के कार्यांवयन में तेजी लाने का अनुरोध किया है, जहां राज्य सरकार कार्यांवयन एजेंसी है और जिन परियोजनाओं को मंत्रालय से अनुदान के माध्यम से या सागरमाला डेवलपमेंट कंपनी लिमिटेड के माध्यम से इक्विटी फंडिंग के रूपमें सेंट्रल फंडिंग पर विचार किया जा सकता है।
जलमार्ग मंत्री ने बुनियादी ढांचे के विकास के लिए प्रासंगिक और तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने चाहे यह बंदरगाहों को मजबूत करना हो, रेल या सड़क बुनियादी ढांचे के माध्यम से बहुआयामी कनेक्टिविटी लानी हो या फिर सागरमाला, एनआईपी और सागरतट समृद्धि योजना के माध्यम से की गई विभिन्न परियोजना पहल हों सभी के विकास पर जोर देने की कही। बैठक में केरल के बंदरगाह मंत्री अहमद देवरकोइल, तमिलनाडु के लोकनिर्माण मंत्री तिरुईवी वेलु, महाराष्ट्र के कपड़ा, मत्स्य पालन एवं बंदरगाह विकास मंत्री असलम शेख, गोवा के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री, अपशिष्ट प्रबंधन, आरडीए और बंदरगाह मंत्री माइकल लोबो, आंध्र प्रदेश के उद्योग, वाणिज्य, सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री मेकापति गौतम रेड्डी, ओडिशा के योजना और अभिसरण, वाणिज्य और परिवहन मंत्री पद्मनाभ बेहरा, एडमिरल डी के जोशी (सेवानिवृत्त), उपराज्यपाल अंडमान और निकोबार द्वीप समूह सहित राज्यों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। संबद्ध मंत्रालयों के प्रतिनिधियों और अधिकारियों ने भी भाग लिया।
गौरतलब है कि समुद्री राज्य विकास परिषद समुद्री क्षेत्र के विकास के लिए एक शीर्ष सलाहकार निकाय है, इसका उद्देश्य प्रमुख और गैर-प्रमुख बंदरगाहों के एकीकृत विकास को सुनिश्चित करना है। एमएसडीसी का गठन मई 1997 में राज्य सरकारों के परामर्श से संबंधित समुद्री राज्यों ने या तो सीधे या कैप्टिव यूजर और निजी भागीदारी के माध्यम से मौजूदा और नए छोटे बंदरगाहों के भविष्य के विकास का आकलन करने के लिए किया था। इसके अलावा एमएसडीसी समुद्री राज्यों में छोटी बंदरगाहों, कैप्टिव बंदरगाहों और निजी बंदरगाहों के विकास की निगरानी भी करता है, ताकि प्रमुख बंदरगाहों के साथ उनके एकीकृत विकास को सुनिश्चित किया जा सके और सड़कों, रेल या आईडब्ल्यूटी जैसी अन्य बुनियादी सुविधाओं की आवश्यकताओं का आकलन किया जा सके और संबंधित मंत्रियों को सिफारिशें दी जा सकें।