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Tuesday 10 August 2021 06:23:00 PM
नई दिल्ली। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने संसदीय राजभाषा समिति की 36वीं बैठक में कहा है कि आज हम सबके लिए बहुत ही हर्ष का विषय है कि हमने समिति के 10वें प्रतिवेदन को राष्ट्रपति के पास भेजने की मंजूरी दे दी है। अमित शाह ने कहा कि कल अगस्त क्रांति का दिन था और इस बार 9 अगस्त का विशेष महत्व है, क्योंकि इसी वर्ष हम आज़ादी के 75वें साल में प्रवेश कर रहे हैं, एक लंबे समय की गुलामी के बाद हमारा देश 15 अगस्त 1947 को आज़ाद हुआ था। उन्होंने कहा कि अगर कोई इन 75 वर्षों का मूल्यांकन करे तो वह कह सकता है कि इन 75 साल में सभी ने मिलकर लोकतंत्र की जड़ों को गांव और कस्बों तक पहुंचाया है और लोकतंत्र को हमारा स्वभाव बनाया है। अमित शाह ने कहा कि उन्हे बहुत सारे देशों में लोकतंत्र आने के बाद के इतिहास का अनुभव है, भारत में बहुपक्षीय संसदीय प्रणाली स्वीकार करने के बाद इसे नीचे तक पहुंचाने में हमें कोई परेशानी नहीं हुई, यह बहुत स्वाभाविक तरीके से हुआ, कोई संघर्ष भी नहीं हुआ।
गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि न जाने कितने राजे रजवाड़े थे, एक अलग प्रकार की शासन व्यवस्था थी, जो सदियों से चलती थी, अलग-अलग निहितस्वार्थ वाले समूहों की रचना थी और न जाने कितने समय तक उन्होंने समाज का शोषण भी किया, लेकिन एक ही दिन में बिना किसी रक्तपात के सब बदल गया। अमित शाह ने कहा कि आज़ादी के बाद बहुत सारे सत्ता परिवर्तन भी हुए उस वक्त भी कहीं रक्तपात नही हुआ, इससे पता चलता है कि दिन-प्रतिदिन हमारे लोकतंत्र की जड़ें गहरी और मज़बूत होती जा रही हैं तथा लोकतंत्र का वटवृक्ष काफी विशाल हो रहा है। गृहमंत्री ने कहा कि मुझे मालूम नहीं है कि देश स्वतंत्रता सेनानियों के स्वप्न पूरे कर पाया है या नहीं, शायद हमारी गति थोड़ी धीमी हो, परंतु मैं इतना निश्चित कह सकता हूं कि हमारा पथ सही व लक्ष्य की ओर है और हम लक्ष्य तक अवश्य पहुंचेंगे। अमित शाह ने कहा कि इसमें हमारी स्थानीय भाषाओं और विशेषरूप से राजभाषा हिंदी का सबसे बड़ा योगदान है। उन्होंने कहा कि हमारे यहां लोकतंत्र के संस्कार नए नहीं हैं, दुनिया में सबसे पहला लोकतंत्र हमारे यहां ही था और इस संस्कार और संस्कृति को भाषा के बिना हम संजो कर नहीं रख सकते।
अमित शाह ने कहा कि स्वाधीनता आंदोलन के दौरान हमारे नेताओं ने भाषाओं को जो महत्व दिया और अंग्रेजी का यहां आधिपत्य न पड़ जाए, उसकी सजगता दिखाई, इसी कारण आज हमारी भाषाएं समृद्ध हैं, स्थानीय भाषाएं भी समृद्ध हैं और दिन-प्रतिदिन राजभाषा हिंदी भी समृद्ध हुई है। गृहमंत्री ने कहा कि बहुत सारे देशों की न लिपि बची है और न ही भाषा बची है, लेकिन मैं गर्व के साथ कह रहा हूं कि आज़ादी के बाद जितनी बोलियां थीं, उनको भी हमने संरक्षित और संवर्धित रखा है और जितनी भाषाएं थीं उनको भी बचाकर रखा है, साथ ही जितनी लिपियां थीं, वे भी देवनागरी के तत्वावधान में आगे बढ़ रही हैं, स्थानीय भाषाओं और राजभाषा ने देश को एक करने का काम किया है, इस वजह से ही राजभाषा समिति संसद की सबसे महत्वपूर्ण समिति है। अमित शाह ने समिति के सदस्यों से अनुरोध किया कि हमें एक ऐसे वातावरण का निर्माण करना चाहिए, जिसमें राजभाषा हिंदी का विकास सहज रूपसे स्थानीय भाषाओं की सखी के रूपमें हो। उन्होंने कहा कि थोपा होता तो हिंदी अस्वीकार और कालबाह्य हो गई होती, हिंदी अगर कालबाह्य नहीं हुई है तो इसका यही कारण है कि हमने इसे कभी थोपने का प्रयास नहीं किया जैसे-गुजराती और हिंदी व कन्नड़ और हिंदी व अन्य भाषाओं के बीच स्पर्धा नहीं हो सकती, क्योंकि ये दोनों सखियां या बहनें हैं।
केंद्रीय गृहमंत्री ने कहा कि तकनीकी शिक्षा और औषधीय शिक्षा का भी संपूर्ण अभ्यासक्रम राजभाषा में भाषांतरण कराने का काम शुरु किया है। उन्होंने कहा कि यदि तकनीकी शिक्षा और औषधीय शिक्षा का अभ्यासक्रम राजभाषा में भाषांतरण हो जाएगा, अनुवाद हो जाएगा तो हिंदी में पढ़े हुए बच्चे मेडिकल एग्जाम और डॉक्टर बनने की पूरी प्रक्रिया हिंदी में ही कर सकते हैं, इसके बाद अनुसंधान भी कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि तकनीकी शिक्षा में इंजीनियरिंग की सभी विधाओं का अभ्यासक्रम का भी भाषांतरण किया जाएगा, ज्ञान का अनुसंधान भी स्थानीय भाषाओं में करने से आचार्य विनोबा भावे का सपना साकार होगा। अमित शाह ने कहा कि आजादी के आंदोलन में महात्मा गांधी, सरदार वल्लभभाई पटेल, पंडित जवाहरलाल नेहरू, राजेंद्र बाबू, विनोबा भावे मिशन प्रमुख थे, उन्होंने राजभाषा के पहलुओं को हर राज्य की जनता के सामने रखा, देवनागरी लिपि को हर राज्य में रखा। अमित शाह ने कहा कि राजभाषा देश को जोड़ने की कड़ी है, लेकिन साथ में स्थानीय भाषाओं का महत्व भी कम नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी ने राजभाषा को राष्ट्रीयता के साथ जोड़ा। अमित शाह ने कहा कि हमारी आजादी के आंदोलन की स्वभाषा, स्वदेशी और स्वराज तीन नींव थीं, स्वराज के संस्कार की कल्पना, स्वभाषा और स्वदेशी से ही हो सकती है।
अमित शाह ने कहा कि स्वराज की कल्पना 15 अगस्त 1947 को आजादी के रूपमें परिवर्तित हुई थी। उन्होंने कहा कि राजेंद्र बाबू ने कहा था कि हमारी राजभाषा हिंदी राष्ट्र की सामूहिक चेतना की मां है, यह संकल्पना आज सच हो रही है। अमित शाह ने कहा कि न्यायिक व्यवस्था में भी हिंदी का प्रयोग होना चाहिए, इसके लिए न्यायविदों के साथ चर्चा करनी पड़ेगी। उन्होंने कहा कि आजादी के 75 साल होने पर होने वाले कार्यक्रमों में 'आजादी के आंदोलन में राजभाषा हिंदी की भूमिका' थीम होनी चाहिए, देश की संसद के सामने उसको उपस्थित करना चाहिए कि हमारी स्थानीय भाषाओं और राजभाषा ने देश के आंदोलन में कितना बड़ा योगदान दिया है। गृहमंत्री ने कहा कि स्थानीय साहित्यकारों ने आजादी के आंदोलन को गति देने केलिए अनेक साहित्य लिखे। उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय इतिहास का भी राजभाषा में अनुवाद होना चाहिए, लाल बहादुर शास्त्री ने इस दिशा में विशेष प्रयास किया था, किंतु उसके बाद वह प्रयास मंथर गति से चल रहा है, एक उदाहरण बताया कि अगर गुजरात के एक बच्चे को विजयनगर साम्राज्य के बारे में पढ़ना है तो अंग्रेजी के अलावा कोई विकल्प नहीं है, ऐसे अन्य कई राज्यों के उदाहरण हैं।
गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि इतिहास पढ़ने वाले बच्चों केलिए अगर राजभाषा में देश के हर कोने का इतिहास उपलब्ध हो जाएगा कश्मीर से कन्याकुमारी तक का इतिहास तो अपने आप राजभाषा का प्रचार बढ़ाएगा और इससे बच्चों के शब्दों की जानकारी का भंडार भी समृद्ध होगा। गृहमंत्री ने कहा कि हमारी भाषाओं के बीच साम्यता है, एक ना दिखाई देने वाला संवाद भी है और इसकी अनुभूति करने पर ही इसके बारेमें जाना जा सकता है। उन्होंने कहा कि हर भाषा के ढेर सारे शब्द किसी दूसरी भाषा के साथ जुड़े हुए हैं, व्याकरण का मूल भी एक ही है। अमित शाह ने इस बात पर बल दिया कि हिंदी की स्वीकृति सहमति से होनी चाहिए और तभी राजभाषा को राष्ट्रीय एकता का सूत्र जो हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने बताया था, उसे सफल कर पाएंगे। उन्होंने सभी से सामूहिक प्रयासों से हिंदी को अधिक लोकभोग्य बनाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भी हिंदी में बोलकर हमारी भाषा का प्रचार-प्रसार किया है। अमित शाह ने कहा कि टोक्यो ओलिंपिक में पहलीबार हिंदी में कॉमेन्ट्री की व्यवस्था की गई थी, हिंदी कॉमेंट्री देखने-सुनने वाले लोग 72 प्रतिशत थे और ये हमारे लिए बहुत उत्साहवर्धन वाली बात है।