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नई दिल्ली। यद्यपि वैश्विक तपन और जलवायु परिवर्तन के प्रत्याशित प्रभावों का अभी भली-भांति अंदाजा नहीं लगाया जा सका है, तथापि यह निश्चित मानिए कि भविष्य में पानी की समस्या का एक विकराल रूप सामने आने वाला है। भारत में पिछले कुछ दशकों में तेजी से बढ़ती जनसंख्या की निरंतर बढ़ती मांग के कारण वैसे भी जल संसाधनों पर काफी दबाव बढ़ गया है। एक अरब दस करोड़ की जनसंख्या वाला भारत आबादी के लिहाज से विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश है। विश्व की कुल भूमि के 2.45 प्रतिशत क्षेत्र में बसे इस देश की अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर है। विश्व की 16 प्रतिशत जनसंख्या वाले भारत में संसार के कुल जल संसाधनों का 4 प्रतिशत जल उपलब्ध है जहां भूजल स्तर में सुधार लाना एक जरूरत और चुनौती है।भूजल ने भारत की अर्थव्यवस्था के विकास में उल्लेखनीय योगदान दिया है और देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में एक प्रमुख उत्प्रेरक की भूमिका निभाई है। वित्त, बिजली और डीजल, बढ़िया किस्म के बीज, उर्वरक और सरकारी अनुदान की सहज उपलब्धता के साथ-साथ तकनीकी रूप से व्यवहारिक योजना पर क्रियान्वयन के कारण भूजल निकास संरचनाओं के विकास में जबर्दस्त वृध्दि हुई है। तीसरी लघु सिंचाई जनगणना के अनुसार 2001 में भारत में 1 करोड़ 80 लाख भूजल विकास संरचनायें थीं। अनुमान है कि यह संख्या अब बढ़कर 2 करोड़ तक पहुंच चुकी होगी। सन् 1951 से 2001 के बीच भू-जल सिचिंत क्षेत्र में नौ गुनी वृध्दि हुई है।केन्द्रीय भूजल बोर्ड ने राज्यों के साथ मिलकर सक्रिय भूजल संसाधनों का जो आकलन लगाया है, उसके अनुसार वार्षिक रूप से देश के पुनर्भरण योग्य भूजल संसाधनों के लगभग 50 प्रतिशत का ही वर्तमान में उपयोग हो रहा है। परन्तु, जमीन के नीचे के जल क्षेत्रों की मौजूदगी और वितरण को नियंत्रित करने वाली अनेक जटिलताओं के कारण देश के विभिन्न भागों में भूजल की उपलब्धता और उपयोग में भारी भिन्नता है। उदाहरण के लिए, भारत की गांगेय क्षेत्र और ब्रह्मपुत्र के व्यापक कछारों की भूगर्भीय संरचनाओं में प्रचुर भूजल संसाधन उपलब्ध हैं जबकि प्रायद्वीपीय भारत की चट्टानी संरचनाओं में अत्यन्त सीमित मात्रा में कहीं-कहीं ही पानी मिलता है।आकलन के अनुसार, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, गुजरात और तमिलनाडु में भूजल का अच्छा विकास हुआ है। मगर इन राज्यों के अधिकांश क्षेत्रों में भूगर्भीय जल स्तर काफी नीचे चला गया है और जल संसाधनों का भी ह्रास हो रहा है। दूसरी और ओडिशा, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश के कुछ भागों में और असम जैसे पूर्वी और पूर्वोत्तर के राज्यों में भू-जल का विकास अभी भी ठीक से नहीं हुआ है। जल संसाधन मंत्रालय ने आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान, तमिलनाडु, गुजरात और मध्य प्रदेश के सात राज्यों के उन स्थानों में खुदे हुए सूखे कुओं (डग वेल) को रिचार्ज करने की योजना शुरू की है, जहां पानी का अत्यधिक दोहन किया जाता रहा है और जहां पानी की गंभीर कमी है। योजना का उद्देश्य इन सूखे कुओं में इतना पानी उपलब्ध कराना है जिससे लंबे समय तक उनको उपयोग में लाया जा सके भौगोलिक संरचना, जलवायु, जलविज्ञान संबंधी और सामाजिक आर्थिक बनावटों के कारण भारत के संदर्भ में भू-जल का प्रबंधन एक चुनौती भरा कार्य है। भू-जल संसाधनों के वैज्ञानिक प्रबंधन के लिए अध्ययन के साथ-साथ पानी की उपलब्धता, आपूर्ति और जमीन से पानी निकालने के उपायों के बारे में और यह भी देखना होगा कि उपलब्ध संसाधनों का संरक्षण, नियंत्रण और सुरक्षा कैसे की जा सकती है।भू-जल के गिरते स्तर से जुड़ी समस्याओं से निपटने के उद्देश्य से महत्वपूर्ण संसाधन को लंबे समय तक उपयोग के योग्य बनाए रखने के प्रयासों को क्षेत्रीय प्रदर्शन, परियोजनाओं, नियामक उपायों आदि में श्रेणीबध्द किया गया है। क्षेत्रीय प्रदर्शन का उद्देश्य मुख्य रूप से भू-जल के कृत्रिम रिचार्ज के जरिए जलग्राही क्षेत्रों के गिरते स्तर को ऊंचा उठाना है। केन्द्रीय भू-जल बोर्ड नौवीं योजना की शुरूआत से ही देश के विभिन्न भागों में विविध प्रकार की भू-जल संरचनाओं के उपयुक्त किफायती रिचार्ज तकनीक को लोकप्रिय बनाने के उद्देश्य से वर्षा जल संचय और भू-जल के कृत्रिम रिचार्ज के प्रदर्शन की परियोजनाओं पर काम कर रहा है। बताया गया है कि ग्यारहवीं योजना के दौरान केन्द्र-प्रवर्तित योजना-भू-जल प्रबंधन एवं नियमन के तहत एक अरब रुपये का प्रावधान किया गया है। इस योजना में शहरी क्षेत्रों सहित उन क्षेत्रों में प्रदर्शन कार्यक्रम चलाने पर जोर दिया गया है जहां पानी का आवश्यकता से अधिक दोहन हो रहा होता है।जल संसाधन मंत्रालय ने देश के 5000 प्रदर्शन स्थलों में कृषक सहभागिता कार्य अनुसंधान कार्यक्रम की भी स्वीकृति दी है, जिस पर 24 करोड़ 46 लाख रुपये का खर्च किया जाएगा। यह कार्यक्रम देश के 25 राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों के 375 जिलों में लागू किया जा रहा है। इस कार्य में 60 कृषि विश्वविद्यालयों, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से संबध्द संस्थाओं, अन्तर्राष्ट्रीय अर्ध्द शुष्क-उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र फसल अनुसंधान संस्थान, जल एवं भूमि प्रबंधन संस्थान और गैर-सरकारी संगठनों का सहयोग लिया जा रहा है। प्रत्येक कार्यक्रम देश में भू-जल के विकास और नियमन हेतु पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत केन्द्रीय भू-जल प्राधिकरण (सीजीडब्ल्यूए) का गठन किया गया है। प्राधिकरण ने 43 ऐसे क्षेत्रों को अधिसूचित किया है जहां पीने के अलावा अन्य किसी कार्य के लिए पानी निकालने की संरचना के निर्माण की इजाजत नहीं है। पीने/घरेलू उपयोग के लिए पानी निकालने की अनुमति देने का अधिकार जिला मजिस्ट्रेटों को सौंपा गया है। सरकार ने भू-जल विकास और प्रबंधन पर नियंत्रण के लिए उपयुक्त कानून बनाने के लिए सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को विधेयक का एक प्रारूप भेजा है। इस प्रारूप विधेयक में वर्षा जल संचय कार्यक्रम पर अमल के लिए प्रावधान किया गया है। ग्यारह राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों ने इस विधेयक को कानून का रूप दे दिया है। अठ्ठारह और राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों में इसे कानून में बदलने की दिशा में कदम उठाए गए हैं। अब तक 18 राज्यों और चार केन्द्र शासित प्रदेशों ने भवनों की छतों पर वर्षा जल संचय को अनिवार्य बना दिया है।केन्द्रीय भू-जल बोर्ड ने एक वेब जनित भू-जल सूचना प्रणाली (डब्ल्यूईजीडब्ल्यूआईएस) का विकास किया है। इस प्रणाली से नीति निर्माताओं और नियोजकों को बड़े अथवा छोटे पैमाने पर योजना तैयार करने के लिए सभी प्रकार की आवश्यक जानकारी मिल रही है। इसमें पानी का स्तर, पानी की गुणवत्ता और क्षेत्र की अन्य सामाजिक-आर्थिक सूचनायें शामिल हैं। भू-जल प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं के हित ग्राहियों की क्षमता का विकास और जन चेतना जगाना, मंत्रालय की प्रमुख गतिविधियों में आता है। जिसमें केन्द्र/राज्य सरकारों के विभिन्न विभागों, गैर-सरकारी संगठनों, स्वयंसेवी संगठनों, निवासी कल्याण संगठनों, शिक्षा संस्थाओं, उद्योगों और व्यक्तियों की सेवायें भी ली जा रही हैं। विभिन्न स्थानों और कठिन परिस्थितियों में बोर्ड भू-जल संवर्धन के लिए हित ग्राहियों को वर्षा जल संचय की संरचना निर्माण के बारे में प्रशिक्षण का आयोजन भी करता है। इसके अतिरिक्त जन चेतना जगाने के उद्देश्य से ग्रामीण क्षेत्रों में वर्षा जल संचय, भू-जल प्रदूषण आदि के बारे में फिल्मों का प्रदर्शन भी किया जा रहा है। केन्द्रीय भू-जल बोर्ड ने व्यापक प्रचार-प्रसार के लिए संबंधित विषयों पर प्रचार सामग्री भी तैयार की है।जल संसाधन मंत्री की अध्यक्षता में 2006 में भू-जल कृत्रिम रिचार्ज सलाहकार परिषद का गठन इस दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है। परिषद में केन्द्र/राज्य सरकारों के संबंधित मंत्रालयों/विभागों, सार्वजनिक उपक्रमों, वित्तीय संस्थाओं और उद्योगों, गैर-सरकारी संगठनों और किसानों के प्रतिनिधियों के अलावा विषय विशेषज्ञ सदस्य मनोनीत किए गए हैं। परिषद की अब तक तीन बैठकें हो चुकी हैं। परिषद की सिफारिशों के अनुसार 2007 और 2010 में राष्ट्रीय भू-जल कांग्रेस का आयोजन किया गया। भारत के उथले जलग्राही क्षेत्रों में भू-जल की गुणवत्ता के बारे में केन्द्रीय भू-जल बोर्ड की रिपोर्ट का विमोचन 8 अप्रैल, 2010 को हुई परिषद की तीसरी बैठक में किया गया। मंत्रालय ने स्थापित भूमि-जल संवर्धन पुरस्कार और राष्ट्रीय जल पुरस्कार दो बार 2007 और 2010 में वितरित किए हैं।भारत में जल से संबंधित जिन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है उन्हें देखते हुए सतही और भू-जल संसाधनों के प्रबंधन के मामले पर समग्र रूप से विचार करना होगा। यह जरूरी है क्योंकि दोनों विषय एक दूसरे पर निर्भर हैं। जहां तक भू-जल संसाधनों का प्रश्न है, कृत्रिम रिचार्ज तकनीक के जरिए संसाधनों के संवर्धन को, विशेषकर अति-दोहित और गंभीर संकट वाले क्षेत्रों में, सर्वोच्च प्राथमिकता दी जा रही है। राष्ट्रव्यापी वर्षा जल संचय और कृत्रिम रिचार्ज कार्यक्रम से भू-जल के संवर्धन को बढ़ावा मिलेगा। इन कार्यक्रमों के जरिए, जल संसाधनों का बेहतर वितरण, बाढ़ नियंत्रण, मिट्टी के कटाव में कमी, और पानी के भंडारण में मदद मिलेगी। इसके लिए वाटरशेड विकास और वर्षा जल संचय कार्यक्रमों पर तेजी से अमल करना होगा। शहरी क्षेत्रों में वर्षा जल के संचय को और जोरदार ढंग से प्रोत्साहित करना होगा तथा बड़े और विशालकाय भवनों में अनिवार्य बनाना होगा इसके अलावा उपलब्ध जल संसाधनों का संयुक्त प्रबंधन, मूल्यनिर्धारण एवं नियमन, जल संरक्षण आदि जैसी कार्यनीतियों पर भी अमल करना होगा।राष्ट्रीय एकीकृत जल संसाधन विकास आयोग की रिपोर्ट (1999) के अनुसार भारत के अनुमानित 1123 अरब घन मीटर (बीसीएम) उपयोग के योग्य जल में से सतही जल की मात्रा लगभग 690 बीसीएम है और भूगर्भीय जल संसाधन 433 बीसीएम का है। इसमें यह भी कहा गया है कि सभी स्रोतों में उठती मांगों के कारण 2025 में लगभग 843 बीसीएम जल की आवश्यकता होगी, जिसमें भूजल का योगदान 35.3 प्रतिशत अथवा 298 बीसीएम का होगा। जिन क्षेत्रों में भूजल का योगदान अधिक रहने की संभावना है, वे हैं-सिंचाई, घरेलू और नगरपालिका जलापूर्ति, उद्योग एवं विद्युत क्षेत्र।